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लखनऊ। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी की मुरादाबाद में राज्य की मुख्यमंत्री मायावती के बारे में विवादास्पद टिप्पणी के बाद जो तूफान आया था वह लखनऊ में रीता बहुगुणा के घर को आग के हवाले कर देने के बाद बराबर हो गया मगर इस घटनाक्रम में रीता बहुगुणा की गंभीर धाराओं में गिरफ्तारी के बाद उठा दूसरा तूफान अपने चरम की ओर बढ़ रहा है। देखते देखते पूरा उत्तर प्रदेश इसकी चपेट में आ चुका है। मायावती और उनके सलाहकारों ने इसे जिस तरफ मोड़ने की कोशिश की थी उसमें वह असफल हो गईं हैं। कांग्रेस ने इसे मुद्दा बना लिया है जिससे राज्य में गंभीर राजनीतिक टकराव की स्थितियां पैदा हो गईं हैं। मेनका गांधी के पुत्र और पीलीभीत से भाजपा के सांसद वरुण गांधी के खिलाफ सख्त धाराओं में अभियोग दाखिल कराके मायावती ने अदृश्य रूप से सोनिया गांधी को प्रसन्न रखने की जो कोशिश की थी वह भी रीता बहुगुणा मामले में निरर्थक हो गई है। भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर मायावती एक तो यूं ही सुप्रीम कोर्ट की चपेट में आईं हुईं हैं दूसरे रीता बहुगुणा के सामने ऐसा मोर्चा खुल गया है जिसमें रीता बहुगुणा के लिए नहीं बल्कि मायावती के लिए ही और भी ज्यादा राजनीतिक मुश्किलें खड़ी होंगी।
रीता बहुगुणा जोशी और मायावती के बीच लंबे समय से खींचतान चली आ रही है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के जोरदार प्रदर्शन और केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के गठन के बाद मायावती बहुत ज्यादा बौखलाईं हुईं हैं। मायावती ने केंद्र की नई सरकार को अपना बिन मांगा समर्थन देकर यह उम्मीद की थी कि केंद्र सरकार उनके विरुद्ध लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को नजरअंदाज किए रहेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई की सक्रियता ने मायावती की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। उत्तर प्रदेश को केंद्र से मुंहमांगा धन नहीं मिलने से भी मायावती काफी तनाव में हैं। उन्हें लग रहा है कि उनका बाकी का मुख्यमंत्रित्व काल संकट में है और कभी भी उनकी सरकार में विद्रोह की स्थिति भी आ सकती है। मायावती ऐसे मुद्दों को हवा देने में लगी हुईं हैं जिनसे प्रदेश में एक बार फिर से जातीय टकराव की स्थिति पैदा हो ताकि बसपा से मोहभंग होकर दूसरे दलों में भाग रहे उनके दलित बसपा में ठहर जाएं। उन्होंने हाल ही में कुछ ऐसे कदम उठाएं हैं जिनसे इस फार्मूले ने तनाव बढ़ाने का काम किया है और राज्य में अपराधों की बाढ़ सी आ गई है। मायावती शासन पर अपना नियंत्रण खोती जा रही हैं जिसका प्रमाण यह है कि उन्होंने अपने मंत्रियों और अधिकारियों तक के प्रमुख अधिकारों को अपने अधीन कर लिया है जिससे राज्य शासन में बैठे अधिकारी भी शांत होकर बैठ गए हैं और सारी जिम्मेदारियां मायावती के पंचम तल पर बैठे उनके सलाहकारों पर डाल रहे हैं। इससे राज्य में प्रशासन और कानून व्यवस्था का लड़खड़ाना स्वाभाविक है इसीलिए सारी हवाएं मायावती के विपरीत चल रही हैं। एक नया संकट यह आ गया है जिसमे रीता बहुगुणा जोशी की मायावती पर विवादास्पद टिप्पणी और उनकी प्रतिक्रिया में गंभीर धाराओं में गिरफ्तारी और रीता बहुगुणा जोशी के लखनऊ आवास में आग लगाना शामिल है। कांग्रेस ऐसा ही चाहती थी कि कुछ हो और मायावती से निपटने का रास्ता और आसान हो जाए।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा में बसपा के निराशाजनक प्रदर्शन से बौखलाईं मायावती को कई तरफ से नुकसान हुआ है और यह नुकसान न केवल उनके विश्वासपात्रों की तरफ से हुआ बल्कि उनकी तरफ से भी धोखा हुआ जिन्होंने मायावती को देश की प्रधानमंत्री बनने का सपना दिखाया हुआ था। मायावती कुछ राजनीतिक दलों के झांसे में आ गईं और वह उत्तर प्रदेश में अपने को कामयाब मानकर दूसरे राज्यों में जनाधार बढ़ाने के लिए निकल पड़ीं। उनके नवरत्नों ने मायावती को उत्साह से भर दिया कि वह उत्तर प्रदेश में करीब साठ लोकसभा सीटें जीतकर आ रही हैं यदि बीस सीटें दूसरे राज्यों से मिल जाएं तो वह देश की प्रधानमंत्री बन गईं हैं लेकिन यहां उल्टा हुआ। मायावती उत्तर प्रदेश में केवल बीस सीटें ही जीत सकीं बाकी राज्यों में भी एक सीट को छोड़कर उन्हें कोई सफलता नहीं मिली और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर फिर से यूपीए ने हाथ साफ कर दिया। मायावती की योजना थी कि प्रधानमंत्री बनकर वह अपने खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को खत्म करेंगी और देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे कुछ मददगार लोगों को भी देश के बड़े पद सौंपकर उन्हें उपकृत करेंगी लेकिन यह योजना भी धरी रह गई है। वह उत्तर प्रदेश में भी राजनीतिक रूप से सिमटती जा रही हैं। उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा उपचुनावों में भी उन्हें अपनी हार का डर सता रहा है। उन्होंने लोकसभा चुनाव के पहले बड़े पैमाने पर बसपाइयों को राज्य सरकार के पदों से उपकृत किया था लेकिन जैसे ही लोकसभा चुनाव परिणाम निराशाजनक आए तो उन सब को पदों से हटा दिया। राज्य मंत्रिमंडल के सदस्यों के बीच भारी गतिरोध बना हुआ है और जन प्रतिनिधियों में भी भारी निराशा का भाव देखने को मिलता है। ताबड़तोड़ तबादलों से प्रशासन तंत्र में भी खलबली है जिससे कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि उत्तर प्रदेश में राजनीतिक और प्रशासनिक स्थिरता है। इसका लाभ कांग्रेस और समाजवादी पार्टी उठाने की ताक में है और यह अवसर इन दोनों के हाथ लग गया है।
उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। एक समय ऐसे ही आरोप मुलायम सिंह यादव सरकार पर थे जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना भी पड़ा लेकिन लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन को देखकर यह अनुमान सामने आया है कि मायावती सरकार उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार गंवा चुकी हैं। इस सच्चाई को वह खुद भी समझ रही हैं क्योंकि लोकसभा चुनाव में मतगणना के दौरान यह तथ्य सामने आया कि बसपा अपनी कम से कम सौ विधानसभा सीटों से बुरी तरह से चुनाव हारी है। मायावती के लिए यह स्थितियां अत्यंत निराशाजनक हैं और वह अपने राजनीतिक विरोधियों से इस तरह निपट रही हैं जैसे कि वह कोई अपराधी हों। उन्हें अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं है। रीता बहुगुणा जोशी की टिप्पणियों के मामले में भी मायावती ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर अनाप शनाप आरोप लगाए हैं और अब नसीहत दे रही हैं कि सोनिया गांधी को इन टिप्पणियों के कारण माफी मांगना चाहिए और रीता बहुगुणा जोशी को उनके पद से हटाना चाहिए। कांग्रेस को अब क्या करना चाहिए यह सलाह भी अब मायावती दे रही हैं यह अलग बात है कि मायावती बसपा को तो टूटने से बचा नहीं पा रही हैं और दूसरों को अपनी सलाह दे रही हैं। मायावती के लिए यह मामला काफी पेचीदा हो गया है वह रीता बहुगुणा जोशी के खिलाफ मनमर्जी की धाराएं लगवाने में सफल हैं और उन्हें ऐसा करने से कोई रोक भी नहीं सकता है लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में यह भी तय है कि इसके बाद बसपा और मायावती का जो राजनीतिक पराभव दिखाई पड़ता है उसे किसी धारा से तो नहीं ही रोका जा सकता।
विभिन्न समाचार चैनलों और वेबसाइट्स पर बलात्कार के मुवावजे के मामले पर भारी संख्या में मिली-जुली टिप्पणियां आ रही हैं। अनेक टिप्पणींकारों ने रीता बहुगुणा जोशी के कथन को उतने नकारात्मक दृष्टिकोण से नहीं देखा है जितने आक्रामक तेवरों के साथ रीता बहुगुणा के खिलाफ गिरफतारी की कार्रवाई की गई है। बहुतों का मत है कि मायावती ने देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति न जाने कितनी बार ऐसी टिप्पणियां की हैं जिनके कारण मायावती को चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दे देना चाहिए। बहुत से लोग इसे दोनो ओर से राजनीति में आगे बढ़ने की ओछी दौड़ मान रहे हैं तो कुछ का कहना है कि इससे समाज में राजनीतिज्ञों के प्रति सम्मान खतम हो जाएगा। समाचार पत्रों ने भी रीता बहुगुणा जोशी की टिप्पणी को छापा है और लखनऊ में जिन्होंने रीता बहुगुणा जोशी के आवास को आग लगाई है उनकी करतूत भी साफ दिखाई पड़ रही है। यह करतूत भी बसपा के खाते में ही गई है और बसपा का यह प्रयास विफल हो गया है कि इस आगजनी का आरोप अराजक तत्वों को जाए। उधर मुख्यमंत्री मायावती ने आरोप लगाया है कि सोनिया गांधी के इशारे पर उनका अपमान किया गया है और रीता बहुगुणा जोशी की टिप्पणी माफी के योग्य नही है।इस घटनाक्रम मे एक शर्मनाक पक्ष यह भी देखने को मिल रहा है कि रीता बहुगुणा जोशी को गिरफ्तार करने के बाद मीडिया से संक्षिप्त बात करने के दौरान उन्हें रोकने का प्रयास करते हुए एक महिला सिपाही कितने बेहूदे तरीके से उनका कांधा पकड़कर खींचकर ले जाने का प्रयास कर रही है।
बड़े राजनेताओं से हमेशा उम्मीद की जाती है कि वे किसी के भी बारे में अथवा किसी की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी करते हुए अपनी भी मर्यादा का ध्यान रखें और यह देखें कि उनका कथन समाज पर कोई विपरीत प्रभाव तो नही छोड़ेगा किंतु बड़े राजनेता ही इस मर्यादा की सबसे ज्यादा धज्जियां उड़ा रहे हैं। इनमें स्वयं मायावती तो सबसे आगे हैं। देश के कई बड़े राजनेताओं ने लोकसभा चुनाव में या संसद में ऐसी बातें बोली हैं जिनको कि किसी भी दशा में स्वीकार नही किया जा सकता। अब ऐसा समझा जाने लगा है कि अपने लोगों में लोकप्रिय बने रहने के लिए गालियां या चरित्र पर टिप्पणियां अथवा सच्चे-झूठे रहस्योद्घाटन शार्टकट बन गए हैं। अगर मायावती के बारे में ही बात करें तो उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का कई बार घोर अपमान ही नही किया, उनका मान ही नही गिराया बल्कि उनके बारे में अनर्गल रूप से सार्वजनिक टिप्पणियां कर उनके अनुयायियों की भावनाएं आहत की हैं। यह बात भी मायावती के सफरनामे मे ही कही गई है कि अपर कास्ट के लोग आज आपको अपनी खटिया दे रहे हैं तो कल अपनी बेटिया भी देने लगेंगे। रीता बहुगुणा जोशी ने भी जो कहा है उसे कोई मान्यता नहीं दी जा सकती लेकिन यह सब प्रतिक्रिया जनित है जिसे कोई कानून शायद ही रोक पाए।