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सूर्य ग्रहण। दुनिया के धर्म शास्त्रों में इसका विभिन्न रूपों में अद्भुत वर्णन है। विज्ञान के लिए यह सृष्टि की आयु के चरम तक जानने का एक रहस्यात्मक प्रश्न है। ज्योतिषियों ने इसकी महत्ता का बखान समस्त प्राणियों के जीवन को आधार बनाकर किया है। कुल मिलाकर चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण के बारे में जो धारणा और तस्वीर बनकर उभरती है वह मानव जाति के उत्थान और पतन के पटल पर छा जाती है। सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण सदियों की नाभिकीय और कुदरत की कलाओं के वह नज़ारे हैं जिनको जानने और समझने के लिए युग के युग निकल गए लेकिन विज्ञान की नज़रें इसके रहस्यों को अभी भी खोज रही हैं और धर्माचार्य या ज्योतिषीय विज्ञान इसमें जो खोज रहा है वह सबके सामने है यानि आध्यात्म, मोक्ष, यश, अपयश और जीवन-मरण की गणनाएं।
जिस रोज से पूर्ण सूर्यग्रहण की खबरें मानव जाति के मस्तिष्क में आई हैं इसको लेकर उत्सुकता और अफरा-तफरी अपने चरम पर है। बाइस जुलाई के सूर्य को ग्रहण होता देखने के लिए दुनिया में उत्सुकता रही और जिन क्षेत्रों में इसे पूरी तरह से देखा जाना बताया गया था वहां इसे देखने वाले विज्ञानियों, शोधार्थियों और धर्मचेतना से जुड़े विद्वानों, नर और नारियों ने खास प्रबंध किए। देश और दुनिया की बहती नदियों में नहा कर मोक्ष की तमन्ना देखी गई। सूर्यग्रहण के बाद से ही इसकी आलौकिक घटनाओं और छटाओं पर विशेषज्ञों के विचार और उससे प्रभावित होने वाले जातकों के बारे में जानकारियां दी जा रही हैं। कहते हैं कि ग्रहण जैसी घटना किसी अनहोनी का पूर्वाभास देती है क्योंकि इसके प्रतिफल को जिस प्रकार से प्रकट किया जाता है उसमें मोक्ष की ही चर्चा बार-बार होती है। यह सब मानव जाति के लिए कितना सही और गलत है यह हमेशा से विचार और अनुसंधान का विषय बना हुआ है लेकिन कुदरत का यह आलौकिक दृश्य इतना मनोहारी और चमत्कारी होता है कि उसे देखने के लिए दुनिया उमड़ती है यहां तक कि वन्य प्राणियों में भी इसकी हलचल और प्रतिक्रिया सुनाई देती है। खगोलीय विशेषज्ञों के अनुसार अब यह 123 साल बाद दिखाई देगा।