दिनेश प्रताप सिंह
जौनपुर, (उप्र)।दीवाली का त्यौहार बाबा दुबे के नाम से विख्यात उद्यमी और जनसेवा के लिए बनी बाबा मित्र परिषद के मुख्य संचालक ओमप्रकाश दुबे के लिए राजनीतिक मनोकामना सिद्धि के द्वार खोलता हुआ आ रहा है। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी बनकर विधानसभा मे पहुंचने की उनकी चिर इच्छा इस बार पूरी हो सकती है क्योंकि जौनपुर के रारी विधानसभा उपचुनाव में जो राजनीतिक समीकरण सामने आए हैं, उनको देखते हुए अभी से ही बाबा दुबे की जीत की संभावनाएं सबसे ज्यादा दिख रही हैं। हालांकि उनका मुकाबला दो शक्तिशाली लोगों से है जिनमे पहला एक प्रमुख नेता है और दूसरा माफिया सरगना है। कांग्रेस और बसपा की ओर से सामने खड़े इन दोनों सजातीय प्रत्याशियों का आपस में युद्ध बाबा दुबे के लिए हर तरह से फायदेमंद सिद्ध हो रहा है। आशय है कि रारी में जबर्दस्त त्रिकोणात्मक मुकाबला है जिससे यहां का उपचुनाव काफी दिलचस्प और प्रतिष्ठापूर्ण हो गया है।
जौनपुर में दहशतगर्दी और ठेकेदारी से अपना व्यवसाय और प्रभाव जमाने वाले रारी के बसपा विधायक और अब सांसद धनंजय सिंह के इस बार लोकसभा के लिए चुन लिए जाने के कारण रारी विधानसभा क्षेत्र का यह उपचुनाव हो रहा है। इस उपचुनाव में धनंजय सिंह ने अपने पिता राजदेव सिंह को बसपा का उम्मीदवार बनवाया है। धनंजय सिंह बसपा से पहले सपा में थे लेकिन विधानसभा के आम चुनाव की भावी संभावनाओं को देखते हुए ये अवसरवादी बसपा में आ गए। रारी विधानसभा क्षेत्र से बसपा का टिकट मिलने पर फिर विधायक बने लेकिन बाद में बसपा ने उन्हें लोकसभा का भी चुनाव लड़ाया जिसमे जीतने के कारण उन्हें रारी विधानसभा क्षेत्र की सदस्यता छोड़नी पड़ी है। इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है। देखना यह है कि धनंजय सिंह अपने पिता को यह चुनाव जितवा पाते हैं कि नहीं। इस बार समाजवादी पार्टी ने बाबा दुबे को चुनाव मैदान में उतारा है।
रारी में एक और दिग्गज चुनाव मैदान में हैं और वो हैं उत्तर प्रदेश कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष और रारी विधानसभा क्षेत्र से ही एक बार चुने जा चुके जौनपुर के शक्तिशाली कांग्रेस नेता अरुण कुमार सिंह मुन्ना के पुत्र और छात्र नेता अभिषेक सिंह। सब जानते हैं कि अरुण कुमार सिंह मुन्ना जौनपुर की राजनीति में एक ताकतवर कांग्रेसी नेता हैं और उनकी गिनती भारी भरकम छवि वाले नेताओं में होती है, साथ ही ठाकुरों में उनकी काफी मान प्रतिष्ठा है। उनके पुत्र अभिषेक सिंह भी जौनपुर में छात्र नेता के रूप में जाने जाते हैं और अभिषेक ने भी अपने समाज में और जौनपुर की राजनीति में स्वच्छ छवि के नेता के रूप में अपनी जगह बनाई है। अरुण कुमार सिंह मुन्ना के पुत्र के रूप में अभिषेक सिंह का ठाकुरों में और भी महत्व बढ़ जाता है इसलिए जौनपुर और आसपास के ठाकुरों के लिए रारी विधानसभा उपचुनाव काफी चर्चा और प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है।
जौनपुर में ठाकुरों के सामने यह प्रश्न आ खड़ा हुआ है कि वह इस उपचुनाव में रारी के बाहुबली बसपा विधायक और अब सांसद धनंजय सिंह के साथ चलें या उनसे भी ज्यादा ताकतवर और स्वच्छ छवि के ठाकुरों में अपनी जगह बनाने वाले ठाकुर अरुण कुमार सिंह मुन्ना के साथ चलें। धनंजय सिंह की छवि से और राजनीति से भी यहां सभी वाकिफ हैं। उन्होंने बदमाशी और ठेकेदारी से राजनीति में घुसपैठ की है जबकि अरुण कुमार सिंह मुन्ना ने स्वच्छ छवि के साथ राजनीति में एक मुकाम हासिल किया है जिस पर इलाके के ठाकुर काफी गर्व करते हैं। अपने पिता की ही तरह कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक सिंह ने राजनीति की शुरूआत की है। धनंजय सिंह केवल उन्हीं के नेता हैं जिन्हें अपराध की दुनिया और समाज विरोधी तत्वों से ज्यादा लगाव है। हर कोई जानता है कि धनंजय सिंह का व्यवसाय भी ऐसे तत्वों के ही भरोसे फल-फूलता है। इनके पिता राजदेव सिंह का एक ठाकुर होने के अलावा यहां और कोई पूर्व राजनीतिक वजूद नहीं माना जाता है, जो भी कुछ हैं वह केवल धनंजय सिंह ही हैं, इसलिए माना जा रहा है कि राजदेव सिंह मात्र डमी प्रत्याशी हैं। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक सिंह ठाकुरों में राजनीति के उभरते युवा नेता हैं और अपने पिता अरूण कुमार सिंह मुन्ना की राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी हैं।
इस उपचुनाव में जौनपुर और रारी के अधिकांश ठाकुरों का धनंजय सिंह से एक ही सवाल है कि जब उन्हें सांसदी दे दी गई है तो विधायकी पर वह अपनी प्रतिष्ठा क्यों अड़ाए हुए हैं? इस बार उन्हें किसी दूसरे ही सजातीय के बारे में सोचने दें जो कि अभिषेक सिंह हैं। लेकिन धनंजय सिंह को यह यकीन है कि वह इस उपचुनाव को जीतेंगे क्योंकि यहां के वही बस एक नेता और ठाकुर नेता हैं और बसपा का एक मुश्त वोट बैंक भी उनके साथ खड़ा हुआ है जिस कारण उनके इस उपचुनाव को हारने का कोई सवाल ही नहीं है। लेकिन धनंजय सिंह साथ ही यह भी भूल रहे हैं कि इस समय उनकी खुद की और उनकी नेता मायावती की खुद दलितों में ही छवि बहुत खराब है और दलित वोटों पर भी अकेले बसपा का ही अधिकार नहीं रह गया है अब और भी हैं जिनके बारे में दलितों का एक वर्ग सोचने लगा है। इन्हीं में बाबा दुबे भी हैं जिन्होंने दलितों में बहुत काम किया है और बहुत से दलित बाबा दुबे के साथ दिखाई देते हैं। ऐसी ही स्थिति अरुण कुमार सिंह मुन्ना के साथ भी है और उनका भी दलितों में कुछ न कुछ प्रभाव दिखाई देता है। जहां तक धनंजय सिंह का दलितों में प्रभाव होने या न होने का प्रश्न है तो वह केवल उनके बसपा के साथ होने तक हैं उसके बाद दलितों में उन्हें कोई नहीं जानता, बल्कि दलित उनसे नफरत ही करता है। सब जानते हैं धनंजय सिंह अपना पहला विधानसभा का चुनाव किस तरह से जीते थे।
रारी उपचुनाव में ठाकुरों की राजनीति और पालेबंदी काफी खुलकर सामने आ रही है। यदि अरुण कुमार सिंह मुन्ना के पुत्र इस चुनाव में नहीं उतरते तो एक बार समझा जा सकता था कि धनंजय सिंह का रास्ता कोई नहीं रोक पाएगा, लेकिन जौनपुर में ऐसे भी ठाकुर हैं जो अभी तक तो हर स्थिति में धनंजय सिंह का ही समर्थन करते थे लेकिन मुन्ना के पुत्र अभिषेक सिंह के चुनाव मैदान में आने से वे धनंजय सिंह के साथ नहीं जा पा रहे हैं। कुछ ऐसे प्रभावशाली ठाकुर भी हैं जो कि फैजाबाद के माफिया सरगना अभय सिंह के रिश्तेदार हैं, जैसे कि मछली शहर (जौनपुर) के भूतपूर्व सांसद राजकेशर सिंह की लड़की का पुत्र माफिया सरगना अभय सिंह ही है जिसका कि अपने पेशेवर प्रतिद्वंद्वी धनंजय सिंह से छत्तीस का आंकड़ा है, इसलिए राजकेशर सिंह किसी भी तरह से धनंजय सिंह को हरवाने की ही कोशिश करेंगे। इसके लिए वे मुन्ना के पुत्र अभिषेक सिंह के साथ या सपा के बाबा दुबे के साथ भी जा सकते हैं लेकिन धनंजय सिंह के साथ नहीं जा सकते।
जौनपुरसे ठाकुरों के एक और शक्तिशाली नेता हैं और वह हैं कुंवर वीरेन्द्र सिंह जो कि राजनीतिक रूप से सपा में हैं और जिले में ठाकुरों में अपना अच्छा प्रभाव रखते हैं। कुंवर वीरेन्द्र सिंह जिला कोआपरेटिव बैंक के अध्यक्ष और एमएलसी भी रहे हैं। वे कभी भाजपा के मजबूत नेता थे, मगर बाद में मुलायम सिंह यादव के साथ सपा में आ गए लेकिन उनके अरुण कुमार सिंह मुन्ना के साथ जो दोस्ताना संबंध हैं उनमे वह किसी भी अवस्था में मुन्ना से अलग नहीं जा सकते हैं-जौनपुर में ऐसा ही माना जाता है। कुंवर वीरेन्द्र सिंह सपा में रहते हुए खुले तौर पर मुन्ना का साथ नहीं दे सकते लेकिन अंदरूनी तौर पर वह मुन्ना के पुत्र अभिषेक सिंह को जिताने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। उनके धनंजय सिंह के साथ जाने का तो कदापि प्रश्न ही नहीं उठता। कांग्रेस ने अभिषेक सिंह को जिताने के लिए घोड़े खोल दिए हैं। पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी भी यहां ईद मिलन में आईं और मछली शहर टाउन एरिया और मुंगराबादशाहपुर नगर पालिका में उनका जोरदार स्वागत किया गया।
अरुण कुमार सिंह मुन्ना की नज़र रारी विधानसभा और ठाकुरों को अपने पक्ष में संगठित करने पर टिकी है। उनकी इस सक्रियता के बावजूद ठाकुरों में तगड़े विभाजन की स्थिति बनी हुई है। यहां पर और भी किरदार मैदान में हैं जैसे-भारतीय जनता पार्टी ने एक समरनाथ सिंह चौहान को खड़ा किया है। समरनाथ सिंह चौहान के लिए यह भ्रम पैदा होता है कि वह ठाकुर हैं लेकिन वास्तव में वह पिछड़े वर्ग से आते हैं। समरनाथ सिंह चौहान की स्थिति भाजपा प्रत्याशी होने के कारण भले ही चर्चा में हो किंतु यहां वह संघर्ष में दिखाई नहीं देते हैं। सपा प्रत्याशी बाबा दुबे के सामने भी उनका सजातीय और प्रायोजित प्रत्याशी उलेमा कॉउंसिल ने खड़ा किया है जिनका नाम है चंद्रशेखर मिश्र। ये जौनपुर को जिला पंचायत के सदस्य भी रहे हैं और जाहिर है कि पंडितों के वोटों में ही बाबा दुबे के वोटों को काटने का काम करेंगे। मुसलमान इन्हें वोट देंगे इसकी संभावना कम ही लगती है।
ठाकुरों के सजातीय मुकाबले में जो महत्वपूर्ण त्रिकोणात्मक दस्तक है वह है बाबा दुबे यानि ओमप्रकाश दुबे का सपा का प्रत्याशी होना। बदलापुर गांव के बाबा दुबे का इस क्षेत्र में व्यापक असर है और लगभग सभी जातियों में उनके चाहने वाले हैं। यहां सब जानते हैं कि निर्दलीय रूप में भी बाबा दुबे ने दिग्गजों को कड़ी टक्कर दी है, इस बार तो वह शक्तिशाली राजनीति दल समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी भी हैं। बाबा दुबे को ठाकुरों की इस लड़ाई का भारी लाभ मिलने जा रहा है। इस क्षेत्र में जातिगत समीकरणों का जहां तक सवाल है तो अगर सर्वाधिक दलित बसपा के साथ हैं तो यहां सर्वाधिक यादव सपा के साथ हैं। इस क्षेत्र में यादवों की संख्या बहुत ज्यादा है। ब्राह्मण भी कोई कम संख्या में नहीं हैं। सन् 1991 की जनगणना के अनुसार इस क्षेत्र में 45772 ब्राह्मण, 54354 राजपूत, 54350 अनुसूचित जाति (दलित), 62936 यादव, 11454 वैश्य, 8582 मुसलमान, 20025 ओबीसी और 28614 अन्य जातियां हैं।
इस अनुपातिक आधार पर आज की जातीय आबादी का आंकलन किया जा सकता है। गौर करें तो यहां पर ब्राह्मण यादव वैश्य और मुसलमान का गठजोड़ ही काफी प्रबल बनता है जबकि बाबा दुबे का सभी जातियों में असर है और उनका समर्थन मिलकर यह संख्या मिलकर डेढ़ लाख से भी अधिक हो जाती है। यही आंकड़ा बाबा दुबे के पक्ष में जाता दिखाई देता है। जातिगत समीकरणों में ठाकुर मतो के बंटवारे का सीधा लाभ भी किसी तीसरे को ही मिलता दिख रहा है जो कि सपा के प्रत्याशी बाबा दुबे ही हैं जिनके बारे में यहां की जनता को यह विश्वास है कि वह ही यह सीट निकाल ले जाएंगे और वे इसकी प्रबल पात्रता भी रखते हैं।
बाबादुबे इस क्षेत्र में एक ऐसे नेता माने जाते हैं जिनका कि सामाजिक कार्यों में काफी योगदान रहा है। मुख्यमंत्री मायावती ने बाबा दुबे के सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव का बहुत लाभ उठाया है। माफिया सरगना धनंजय सिंह के अत्याचारों से क्षुब्ध दलितों को बाबा दुबे के बसपा में आने के बाद बहुत संरक्षण मिला। वैसे भी बाबा दुबे दबे कुचलों की हर तरह से मदद के लिए जाने जाते हैं। वे जब बसपा में शामिल हुए थे तो उनके शुभचिंतकों ने उन्हें सलाह भी दी थी कि जब वे स्वयं ही इतने लोकप्रिय हैं तो उन्हें बसपा की क्या जरूरत है लेकिन उस वक्त उन्होंने मायावती के सर्व समाज लिए जबर्दस्त काम किया। बसपा की ब्राह्मण भाईचारा कमेटी के कोआर्डिनेटर के रूप में ब्राह्मणों को बसपा से जोड़ने का काम किया मगर मायावती ने इसकी कोई कीमत नही समझी जिससे कुपित होकर इन्होंने बसपा छोड़ दी और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। बाबा दुबे बाबा राजनीतिक में रहते हुए मित्र परिषद के रूप में सामाजिक कार्यों का संचालन भी करते हैं और यह उल्लेखनीय बात है कि इस समय इस परिषद के कई हजार सक्रिय सदस्य हैं। मित्र परिषद ने अनेक नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर लगवाए हैं, विकलांगों को कृत्रिम अंग उपलब्ध कराए हैं, पोलियो आपरेशन और आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों की बेटियों का शादी विवाह कराने में भी यह परिषद बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। इसीलिए लोग इन्हें बाबा कहकर भारी सम्मान देते हैं।
बाबा दुबे ने अपने शुभचिंतकों के आग्रह पर वर्ष 2002 में खुटहन विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर करीब पच्चीस हजार मत प्राप्त किए थे और वर्ष 2007 में भी इसी क्षेत्र से चुनाव लड़कर 35 हजार वोट हासिल किए थे जिससे उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है। मायावती ने उनको 2004 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाजपार्टी का उम्मीदवार बनाया था जिसमें वह करीब सवा दो लाख मत पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे। उनकी इस राजनीतिक मेहनत की मायावती ने घोर उपेक्षा की और माफिया सरगना धनंजय सिंह को बसपा का टिकट दे दिया। अपराधीकरण के खिलाफ बाबा दुबे ने तुरंत बसपा छोड़ दी और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। इस समय बाबा दुबे सपा प्रत्याशी के रूप में रारी विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़ रहे हैं।