रणवीर सिंह
चंडीगढ़। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को साथ लेकर जो गलती समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव और भारतीय जनता पार्टी ने की थी वही गलती यहां के पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल कर रहे हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए उन्होंने जिस तरह बसपा अध्यक्ष मायावती से सीटों का समझौता किया है उससे उन्हें कोई लाभ मिले या न मिले अलबत्ता हरियाणा की राजनीति में एक राजनीतिक कोढ़ की नींव जरूर पड़ गई है। ऐन वक्त पर धोखा देकर और अपने लाभ के लिए किसी से भी समझौता कर लेना, मायावती की जगजाहिर कार्य प्रणाली है। मायावती, हरियाणा में अपना जनाधार बढ़ाने और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए भजन लाल के साथ आई हैं न कि भजन लाल को हरियाणा का राजपाट सौंपने। भजनलाल ने ऐलान किया है कि बसपा और हरियाणा जनहित कांग्रेस गठबंधन को बहुमत मिलने पर उनके बेटे कुलदीप विश्नोई हरियाणा के मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन पहले तो यह ही तय हो कि इस गठबंधन को बहुमत मिल पायेगा कि नहीं और दूसरे यह कि मायावती को अगर कुछ सीटें मिल भी गईं तो वह अपने वायदे पर कायम रह पाएंगी कि नहीं। क्योंकि मायावती के बारे में ये कहा जाता है कि इन्होंने रोज-रोज समर्थन वापसी की धमकी देकर उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव का सरकार चलाना मुश्किल कर दिया था, और एक दिन समर्थन वापस ले ही लिया जिससे मुलायम सरकार का पतन हो गया। दूसरा उदाहरण यह है कि जिस भाजपा ने मायावती को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया उसी भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को लोकसभा में मायावती ने समर्थन देने का वादा करके अपने सांसदो से ख़िलाफ मतदान कराया जिससे एक वोट से वाजपेयी की सरकार गिर गयी।
बहुजन समाज पार्टी का कोई जनाधार नहीं था। उत्तर भारत में और वह भी केवल उत्तर प्रदेश में ही ज्यादा सक्रिय रही है। यूपी की राजनीति में डेढ़ दशक पहले एक ऐसा दौर आया कि मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को एक साथ झटका देने के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा से समझौता किया। उस समय बसपा के संस्थापक अध्यक्ष कांशीराम ने यह समझौता करते हुए कहा था कि बसपा को अपना जनाधार बढ़ाने के लिए किसी से भी समझौता करने में परहेज नहीं है। दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ा, जिसमें बसपा को अच्छा खासा लाभ मिला और उत्तर प्रदेश में बसपा के समर्थन से मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार का गठन किया। यह सरकार कुछ समय तक तो ठीक चली लेकिन उसके बाद बसपा की तत्कालीन महासचिव मायावती की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं इतनी तीव्र हुईं कि गठबंधन सरकार में आपस में रोजाना की तकरार शुरू हो गई। मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार को बचाने के लिए कांशीराम के सामने घुटने टेके हुए थे, लेकिन उनके सामने मायावती की बात ही ज्यादा चलती थी। कांशीराम ने अपना जनाधार बढ़ाने के लिए इस गठबंधन का भरपूर लाभ उठाया। मुलायम सिंह यादव को बसपा के साथ चलकर भारी नुकसान ही हुआ।
कांशीराम, मुलायम सिंह यादव को अपनी उंगलियों पर किस तरह नचाते थे यह सबने देखा है। उस वक्त हालात यहां तक पहुंचे कि काशीराम और मुलायम सिंह यादव के बीच दूरी बढ़ती गई और दोनों के बीच शिष्टाचार भी नहीं बच सका। आखिर बहुजन समाज पार्टी ने मुलायम सिंह यादव सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया जिसकी परिणिति सपा द्वारा लखनऊ में राज्य अतिथि गृह में मायावती के विधायकों को तोड़ने के रूप में हुई। भारतीय जनता पार्टी ने भी मुलायम सिंह यादव से अपना बदला चुकाने के अवसर का भरपूर इस्तेमाल करते हुए उत्तर प्रदेश में मायावती को मुख्यमंत्री बनाने के लिए समर्थन दे दिया। मुलायम सिंह यादव ने बसपा के साथ चुनाव लड़कर और भाजपा ने मायावती को बार-बार मुख्यमंत्री बनवाकर जो खोया-गंवाया और पाया वह आज सबके सामने है। भाजपा उसका खामियाजा भुगत रही है। वह उत्तर प्रदेश से साफ होती जा रही है। मायावती उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सत्ता में काबिज है। यह अलग बात है कि मायावती भ्रष्टाचार और प्रतिक्रियावादी राजनीति के कारण जनाधार खोती जा रही हैं जिसका प्रमाण हाल के लोकसभा चुनाव में मिल चुका है। मायावती ने उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों से मिल-जुलकर और उनका समर्थन लेकर खुद को आगे बढ़ाने और दूसरों को नुकसान पहुंचाने का ही काम किया है।
बसपा की राजनीतिक प्रगति अभी तक उत्तर प्रदेश तक ही सीमित है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी जीते हैं किंतु इन राज्यों के बसपा प्रत्याशी और नेता देर-सबेर बसपा को छोड़कर अपनी सुविधा के हिसाब से दूसरे दलों में चले गए। राजस्थान में विधानसभा चुनाव में बसपा ने छह विधानसभा सीटें जीतीं थीं लेकिन ऐन लोकसभा चुनाव के पहले ही बसपा के यह विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। बसपा में शामिल होने के बाद विधायक या एमपी बनकर कई नेताओं का बसपा अध्यक्ष मायावती से मोहभंग हुआ है और इसी कारण कई बार बसपा टूटी भी है। उत्तर प्रदेश में ही इस बार भी मायावती के कार्य व्यवहार को लेकर बसपा के भीतर काफी नाराज़गी सुनने का मिल रही है जो कभी भी विद्रोह के रूप में सामने आ सकती है। सारे परिदृश्य को हरियाणा की राजनीतिक दृष्टि से देखते हुए यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि जो भी जनाधार वाला राजनीतिक दल हरियाणा में बसपा से राजनीतिक समझौते करेगा तो उसे कोई लाभ तो मिल सकता है लेकिन जो दीर्घकालिक राजनीतिक नुकसान होगा उसकी कोई कल्पना नहीं की जा सकती। कमोवेश स्थिति उत्तर प्रदेश जैसी ही होगी जहां कभी बसपा का कोई नाम लेने वाला नहीं था, लेकिन मुलायम सिंह यादव और भारतीय जनता पार्टी ने आज मायावती को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचाकर उन्हें प्रधानमंत्री के भी ख्वाब तक पहुंचा दिया है।
हरियाणा में भजन लाल ने मायावती से राजनीतिक समझौता करके कांग्रेस को चित करने की कोशिश की है। भजन लाल कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता हुआ करते थे लेकिन हरियाणा की राजनीति में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पर्दापण से भजन लाल के राजनीतिक दिन गर्दिश में चले गए और उन्होंने अलग से पार्टी बनाकर हरियाणा में चुनाव लड़ा। थोड़ी बहुत सफलता मिली भी लेकिन यह सफलता ऐसी नहीं मानी जाती है जिससे कि भजन लाल अपने कुनबे के लिए भावी सत्ता की राजनीति का मार्ग प्रशस्त कर सकें। भजन लाल कांग्रेस में रहकर ही कुछ कर सकते थे लेकिन प्रश्न है कि कांग्रेस के बाहर जाकर राजनीति करने वाले कितने कांग्रेसी सफल हो पाए हैं। इसका आकड़ा पूरे देश के सामने है। बड़े-बड़े दिग्गज नेता कांग्रेस से अलग हुए और उन्होंने अपनी पार्टी भी बनाई लेकिन अंततः कांग्रेस में ही लौट आए। कांग्रेस के दिग्गज नेता पीए संगमा का ताजा उदाहरण सबके सामने है और वह अपनी बेटी के बहाने कांग्रेस में वापसी की तैयारी कर रहे हैं। महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार भी देर-सबेर कांग्रेस का रुख कर सकते हैं।
हरियाणा में भजन लाल और मायावती की दोस्ती को हरियाणा के लोगों ने कोई उत्साह से नहीं लिया है बल्कि यही समझा जा रहा है कि जैसी राजनीतिक एवं प्रशासनिक गंदगी मायावती ने उत्तर प्रदेश में फैला रखी है वैसी ही वह हरियाणा में फैलाना चाहती हैं जिसके लिए भजन लाल सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। हरियाणा एक विकसित राज्य है और यहां का शैक्षणिक स्तर भी और राज्यों के मुकाबले काफी बेहतर है। छोटा राज्य होने के कारण यहां पर राजनीतिक जागरूकता भी बहुत तेजी से बढ़ी है। जाट बाहुल्य इस राज्य में मायावती को जगह मिलने की गुंजाइश कम ही नजर आती है क्योंकि हरियाणा के लोग उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हालात को देखते आ रहे हैं। बताते हैं कि भजन लाल ने मायावती से विधानसभा का समझौता करते हुए अपने कुछ प्रमुख सहयोगियों से जब राय ली तो उन्होंने भी भजन लाल को यह सलाह दी कि वे मायावती से दूर ही रहें तो बेहतर होगा क्योंकि वह राजनीति की अत्यंत ही अविश्वसनीय महिला हैं और इसके साथ ही वह भ्रष्टाचार जनित विकारों से ग्रस्त हैं। हरियाणा की राजनीति पर विश्लेषण करने वालों का कहना है कि भजन लाल अपनी पारिवारिक समस्याओं से घिरे हुए हैं। उन्हें हरियाणा में अब अपने लिए कोई राजनीतिक संभावना नहीं दिख रही है इसलिए मायावती से मिलकर नफा हो या नुकसान उनके लिए बराबर है।
भजनलाल के लिए फिलहाल कांग्रेस में तो कोई जगह है ही नहीं जिससे कि वे अपने राजनीतिक भविष्य के लिए निश्चिंत हो सकें इसलिए इस बहाने वे मायावती के साथ खड़े होकर कांग्रेस पर अपना गुस्सा उतारेंगे। हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति काफी अच्छी कही जाती है। यहां लोकसभा चुनाव में भाजपा और इनेलो के अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला ने मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन इन दोनों को कोई सफलता नहीं मिली। केंद्र में यूपीए की वापसी और कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में आशा से भी दुगुनी सफलता मिलने से हरियाणा में कांग्रेस भी अपनी वापसी के प्रति आशावान है। भजन लाल और मायावती की दोस्ती का भी कांग्रेस को ही लाभ मिल सकता है क्योंकि हरियाणा की जनता के सामने फिलहाल कांग्रेस के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। जहां तक ओमप्रकाश चौटाला का प्रश्न है तो उनकी पार्टी भी अच्छी स्थिति में नजर नहीं आती है। भाजपा का तो सवाल ही नहीं है। उसे यहां ओमप्रकाश चौटाला के अलावा और कोई समर्थन नहीं दे सकता। देखना है कि मायावती और भजनलाल की राजनीतिक दोस्ती को हरियाणा की जनता किस दृष्टि से और कितना महत्व देती है।