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लखनऊ।सुप्रीम कोर्ट ने बसपा संस्थापक कांशीराम के स्मारकों पर लखनऊ में करीब ढाई हजार करोड़ रूपए से ज्यादा खर्च करने पर उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार को उस वक्त आड़े हाथों लिया जब राज्य सरकार के वकील सुप्रीम कोर्ट के सामने सरकार के पक्ष को जैसे-तैसे उदाहरण देकर सही साबित करने की चेष्टा कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के तर्कों पर भड़कते हुए यह भी कह दिया है कि सुप्रीम कोर्ट करदाताओं के पैसे को इस प्रकार खर्च करने की संवैधानिकता की जांच कर सकती है। राज्य सरकार के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के तेवर देखते ही हाथ खड़े कर लिए और यह वादा किया कि अगली सुनवाई तक स्मारकों पर और खर्च नहीं किया जाएगा। विभिन्न राजनीतिक दलों ने इसे उनके आरोपों की पुष्टि मानते हुए अपनी-अपनी तरह से प्रतिक्रियाएं दी हैं। इस घटनाक्रम से लगता है कि आने वाले दिन मायावती सरकार के लिए और ज्यादा परेशानी वाले होंगे।
भाजपा ने बसपा सरकार पर मध्यकालीन इस्लामी हमलावरों जैसा आचरण करने का आरोप लगाया है और कहा है कि जैसे विदेशी हमलावरों ने मध्यकाल में सैकड़ों मंदिर गिरवाए और उनकी जगह अपने मन के इबादतगाह बनवाए, ठीक वैसे ही राज्य सरकार बेशकीमती राज्य सम्पत्ति के ध्वस्तीकरण और अपने दल की विचारधारा वाले स्मारकों के निर्माण का काम ही कर रही है। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और प्रवक्ता हृदयनारायण दीक्षित ने संवाददाताओं से कहा कि नोयडा में ओखला पक्षी पार्क के दस किलोमीटर के दायरे में राज्य सरकार ने लगभग छः हजार पेड़ कटवा दिये और वह लगभग साढ़े पांच सौ करोड़ रूपये की अनुत्पादक परियोजना को पूरा करने में संलग्न है। उच्च्तम न्यायालय की केन्द्रीय उच्चाधिकार समिति की नोयडा के भीमराव अम्बेडकर पार्क का निर्माण कार्य रोकने की सिफारिश का स्वागत करते हुए दीक्षित ने बसपा सरकार पर सर-ए-आम नियमों को ताक पर रखकर पार्कों, स्मारकों, मूर्तियों को बनवाने का आरोप लगाया। दीक्षित ने कहा कि मायावती सरकार ने इसी तरह अपनी सनक वाला निर्माण करवाने के लिए लखनऊ जेल के ध्वस्तीकरण का कार्य भी किया है। यह सरकार राजधानी में किसी भी मजबूत इमारत को गिराने के पहले टीन शेड लगाती है, फिर ध्वस्तीकरण और निर्माण का काम चोरी-चोरी होता है। मायावती सरकार सारा काम ही चोरी-चोरी करती है। उसके ऐसे सभी निर्माण कार्यो में करोड़ों का घोटाला है। जनता की गाढ़ी कमाई से किया जा रहा सारा खर्च अनुत्पादक है। इसी धन से गरीबों, दलितों के विकास की तमाम योजनाएं चलाई जा सकती थीं लेकिन सरकार ने गरीबों की उपेक्षा है।
नोएडा अम्बेडकर पार्क प्रोजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने कहा है कि इस प्रोजेक्ट के लिए केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से पूर्व अनुमति नहीं ली गई जबकि 4 सितम्बर, 2009 को अधिसूचना के अनुसार यह जरूरी था। राज्य सरकार ओखला में यमुना से सटे क्षेत्र में हजारों पेड़ काटकर इस पार्क का निर्माण कर रही है। इससे ओखला पक्षी विहार में विदेशी पक्षियों के आने में भी भारी गिरावट आई है।
इसी प्रकार लखनऊ की ऐतिहासिक माडल जेल सन् 1867 में बनी थी जहां तमाम स्वतन्त्रता सेनानी व काकोरी काण्ड के क्रान्तिकारी बंदी रहे हैं उसे भी ध्वस्त कर दिया गया। इस जेल परिसर में चार मंदिर तोड़ने के सरकारी निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी लेकिन वो भी तोड़ दिए गए। बिस्मिल, अशफाक उल्लाह, जिस जेल में बंद रहे वहां बुल्डोजर चला दिया गया है। विधान सभा के नेता विरोधी दल शिवपाल सिंह यादव ने मायावती सरकार पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करने का आरोप लगाते हुए आगे कहा है कि उप्र में सहकारी चीनी मिलों को घाटे में दिखाकर कमीशनबाजी के लिए पूंजीपतियों के साथ सौदेबाजी हो रही है। इन मिलों की प्रबन्ध समितियों के चुनाव भी नहीं कराए गए हैं। अब पदेन सरकारी अधिकारी ही इन पर कब्जा जमाए हैं। उनकी अक्षमता के चलते हजारों चीनी मिल कर्मी बेकार हो जाएंगे। लोकायुक्त का पद संवैधानिक पद है, राज्य सरकार इसकी सिफारिशें भी नहीं मान रही है। मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों के भ्रष्टाचार पर चुप्पी साधे हुए हैं। लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने राज्य के बेसिक शिक्षा मंत्री धर्म सिंह सैनी और गोण्डा के कृपापात्र बेसिक शिक्षा अधिकारी एमपी सिंह की धांधलियों को नज़र अंदाज करने और उन्हें अपात्र होते हुये भी वाराणसी में पुनः नियुक्त करने का दोषी करार दिया है और उनके विरूद्ध कार्रवाई की सिफारिश की है। मुख्यमंत्री इन मामलों में चुप हैं।