हर्ष तेंदुलकर
आपको नहीं लगता कि भारत की एकता अखंडता और प्रभुसत्ता के लिए सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील कश्मीर मुद्दे के साथ बड़े ही सुनियोजित और सुविचारित तरीके से एक खेल हुआ है। जरा फिर से ‘फना’ फिल्म देखिए। फिल्म में बहुत स्पष्ट और गंभीर तरीके से भारतीय दर्शकों के सामने कश्मीर मामले को रखा गया है। फिल्म में कहा गया है कि कश्मीर में जो संघर्ष हो रहा है वह कश्मीर को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिए है न कि इसे पाकिस्तान में मिलाने के लिए या भारत का अभिन्न अंग बने रहने के लिए। दुनिया के सामने भारत का पक्ष बहुत ही स्पष्ट है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और कोई भी शक्ति इसे भारत से अलग नहीं कर सकती। यही नहीं बाकी कश्मीर भी भारत का ही है जिसे पाकिस्तान से हासिल करने की कोशिशें की जा रही हैं।
बहुत साफ है कि कश्मीर पर जिसे भी बात करनी है तो पहले वह वहां पर फैलाए जा रहे आतंकवाद की निंदा करते हुए शांति स्थापना पर बात करे। दूसरा पक्ष यह है कि वहां जो आतंकवादी गुट हिंसा फैला रहे हैं, वे केवल उसे पाकिस्तान में मिलना चाहते हैं। खुद पाकिस्तान कश्मीर पर अपना दावा पेश करता है, पर उन संगठनों का पाकिस्तान की नजर में कोई वजूद नहीं है जो पाकिस्तान के दावे से अलग हटकर बोलते हैं। सच तो यह है कि जितने भी आतंकवादी गुट कश्मीर में सक्रिय हैं उन्हें पाकिस्तान से मदद मिलती है। इसलिए कोई पालतू संगठन अलग देश के मुद्दे पर काम करने की कैसे हिमाकत कर सकता है? मगर फना फिल्म में यह बात प्रमुखता से उठायी गयी है कि कश्मीर में जो रहा है वह अलग देश के लिए है न कि पाकिस्तान या भारत के लिए।
फिल्म के इस शॉट से यह समझने में देर नहीं लगती कि इस विचार को जान बूझकर स्थापित करने की चालाक कोशिश की गयी है। अभी तक आम भारतीयों को यही पक्ष मालूम है कि कश्मीर भारत का अंग है, मगर पाकिस्तान उसे हड़पना चाहता है। उसे इतनी गहराई से यह मालूम नहीं है कि वहां कश्मीर के रूप में अलग देश की मांग भी कोई मुद्दा है जो यह फिल्म बड़ी बारीकी से समझा रही है। भारत और इस महाद्वीप की नई पीढ़ी के सामने एक फालतू का विवाद खड़ा करके दर्शकों को फिल्म निर्माता निर्देशक यश चोपड़ा और फिल्म अभिनेता आमिर खान ये किसके लिए बता रहे हैं कि कश्मीर में अलग कश्मीर देश के लिए आंदोलन चल रहा है। इसमें कश्मीर के महाराजा हरिसिंह से जुड़े कुछ तथ्यों को क्यों उद्घत किया गया है? अगर यह फिल्म मनोरंजन तक सीमित है तो उसमें उन बातों को क्यों उभारा गया है जो कभी की अंतिम रूप से दफन हो चुकी हैं। बड़ी हैरत की बात है कि इस फिल्म को भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड ने कश्मीर पर गंभीर टिप्पणियों को नजरअंदाज करके पास कर दिया?
भारतीय संसद कश्मीर पर कोई दूसरे विचार की आज्ञा नहीं देती, फिर क्यों उसके कानून से आगे जाकर ऐसी किसी भी बात को किसी भी प्रकार से रखने की मंजूरी देने की इजाजत दी गई? इस मुद्दे को उछालने के अलावा बाकी इस फिल्म में क्या है? बाकी ‘फना’ केवल खूबसूरत कश्मीर घाटी और बर्फबारी दिखाने तक सीमित रह जाती है या फिर उसमें एक बच्चे की चपलता को मनोरंजन के रूप में परोसा जाता है। अगर आप अपने देश के ऐसे मामलों में दिलचस्पी रखते हैं, और यश चोपड़ा निर्देशित आमिर खान की फिल्म ‘फना’ आपने नहीं देखी है तो इसलिए देखिए। किसी भी संदेश विचार या विचारधारा को प्रचारित और प्रसारित करने का सबसे मजबूत माध्यम मीडिया फिल्में हैं जिनसे बहुत कुछ कहा और समझाया जा सकता है।
मनोरंजन की आड़ में अब तक क्या कुछ होता आया है, अगर आप फिल्मों के जरिये गुजरते संदेशों को पकड़ने की प्रतिभा रखते हैं तो ऐसी फिल्म और उनके उद्देश्यों को समझिये और फिर बताइये कि आपने इसमें खास क्या देखा और आपको क्या पसंद आया। यूं तो जिन्होंने भी फना फिल्म देखी है उनमें बहुत से ऐसे होंगे जो उसे केवल इसलिए देखने गए क्योंकि वह गुजरात में आमिर खान के नर्मदा विवाद में कूदने के कारण चर्चा में आ गई। बहुतों को कश्मीर घाटी में बर्फबारी और वहां की वादियों ने लुभाया होगा। फना के कुछ दर्शक उसमें दिखाई गई कश्मीर की घाटियों में ही घूमते रहे और कुछ ने फिल्म के महत्वपूर्ण संदेश को पकड़ने में देर नहीं की। और जिनके लिए यह संदेश था, वह उन तक पहुंच गया। अब जब बात पकड़ में आ रही है तो इसे इस तरह से घुमाया जा रहा है कि यह तो मनोरंजन फिल्म है, और यश चोपड़ा और आमिर खान को अपने लाभ के सामने देश दुनिया से कोई वास्ता नहीं है। ये दर्शकों को बेवकूफ बना रहे हैं, और लोग हैं जो कि बेवकूफ बन रहे हैं।
अब समझ में आ जाना चाहिए कि फना फिल्म की इतनी जोरदार वकालत क्यों की जा रही थी और उसको रोकने का ठींकरा गुजरात की भाजपा के सर पर ही क्यों फोड़ा जा रहा था। वो इसलिए ताकि इसमें भाजपा के कूदने से ही मामला तूल पकड़ेगा और इससे फिल्म को देखने वालों की संख्या बढ़ेगी। वही हुआ। उस दौरान फिल्म अभिनेता फारुख शेख और फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी पानी पी पीकर फना का विरोध करने वालों की खबर ले रही थीं। उन्हें मालूम होना चाहिए कि उनके बयान समाज के लिए मायने रखते हैं। उनसे उन शक्तियों को ताकत मिलती है जो भारत और उसके कश्मीर को मरघट बनाने की कसम खाए हुए हैं। यह फिल्म कश्मीर मुद्दे में एक और आग लगाती दिखाई दे रही है। ऐसा मनोरंजन नहीं चाहिए जो शांति के प्रयासों को विवादास्पद बनाए।