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दिल्ली में विश्व पुस्तक मेलों का महाकुंभ

डॉ गिरिराजशरण अग्रवाल

डॉ गिरिराजशरण अग्रवाल

कुंभ इस अर्थ में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि वे हमारी अस्मिता और पहचान को स्थापित करते हैं। लाखों की संख्या में उपस्थित जनता धर्मलाभ प्राप्त करती है। इसी दृष्टि से मैं विश्व पुस्तक मेले को ज्ञान का महाकुंभ कहना चाहता हूं, जिसमें लाखों की संख्या में पुस्तक प्रेमी जनता अपने ज्ञान की भूख को शांत करती है। देश के हर कोने से आने वाले लोग, विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले लोग, साहित्य प्रेमी साहित्यकार, प्रकाश तथा पुस्तक व्यवसाय से जुड़े अनेक संस्थान अपनी भागीदारी से इस महाकुंभ को सार्थक बना देते हैं। इस आयोजन की सभी व्यवस्थाओं को संभालता है, नेशनल बुक ट्रस्ट।
नेशनल बुक ट्रस्ट की स्थापना 1957 में हुई थी। इसने पहली बार 1972 में नई दिल्ली के विंडसर प्लेस में विश्व पुस्तक मेले का आयोजन किया था। इस मेले में संसार भर के 200 पुस्तक प्रकाशकों ने भागीदारी की थी। भारत में आयोजित होने वाला यह अपनी तरह का विराट समागम था। ज्ञान और अक्षरों के संसार में रूचि लेने वाले लाखों लोगों के दिलों-दिमाग में वर्षों तक इस आयोजन की ध्वनि गूंजती रही। परिणामतः सन् 1976 में दिल्ली के प्रगति मैदान में दूसरे विश्व पुस्तक मेले का आयोजन किया गया। इसमें विश्व के 266 प्रकाशकों ने भागीदारी की। इस बार पाठकों की भागीदारी भी पहले की अपेक्षा अधिक रही। उसके बाद तो प्रत्येक दूसरे वर्ष ज्ञान के इस विशद अनुष्ठान का आयोजन नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा दिल्ली के प्रगति मैदान में निरंतर किया जा रहा है। निश्चय ही आगामी आयोजन पहले की अपेक्षा सुधरते गए और इन्होंने सफलता के नए से नए कीर्तिमान स्थापित किए।
इसी क्रम में सत्रहवां पुस्तक मेला 2006 में हुआ। 38300 वर्ग मीटर के सुसज्जित परिक्षेत्र में आयोजित इस मेले में भारत सहित विश्व भर के 1293 प्रकाशकों ने भाग लिया। कई लाख पुस्तक प्रेमी उपस्थित हुए और उन्होंने अपनी-अपनी रूचि की पुस्तकों की खरीददारी भी की। इस अवसर पर बौद्घिक विमर्श हेतु अनेक गोष्ठियां आयोजित की गई। अनेक प्रकाशकों ने अपनी पुस्तकों के विमोचन-कार्यक्रम आयोजित किए, सर्वभाषा कवि सम्मेलन हुआ, विभिन्न भाषाओं के अनुवाद तथा कॉपीराइट अधिकार पर चर्चा हुई। प्रकाशन उद्योग और उसकी संभावनाएं तथा दुविधाएं, काव्य एवं संस्कृति सरोकार, महिला-लेखन, वर्तमान परिवेश में साहित्य आदि विषयों पर संगोष्ठियां आयोजित की गई।
संसार में हर पल कुछ न कुछ नया घटित हो रहा है, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र विकसित हो रहे हैं, पुस्तक प्रकाशन की तकनीक में परिवर्तन हो रहे हैं, कंप्यूटर ने हमारे जीवन में क्रांति उत्पन्न कर दी है, विश्वभाषाओं और संस्कृतियों में सामंजस्य की संभावनाएं बढ़ रही हैं, देश निरंतर निकट आ रहे हैं, वाणिज्य और व्यापार के क्षेत्र सिमटकर पास आ गए हैं, दूरियां कम हुई हैं। इन सभी बातों को जानने और ज्ञान-संसार में गोते लगाने के लिए विश्व पुस्तक मेले में आना नितांत आवश्यक प्रतीत होता है।
पुस्तक मेला एक ऐसा द्विवार्षिक अवसर है, जबकि देश-विदेश के लेखक, प्रकाशक, पाठक, पुस्तक प्रेमी, पुस्तक-विक्रेता, समीक्षक, समालोचक, मीडियाकर्मी, विविध विषयों के विशेषज्ञ, रंगकर्मी एक स्थान पर उपस्थित होते हैं, एक-दूसरे के साथ विचारों का आदान-प्रदान होता है, संपर्क सूत्र विकसित होते हैं, भविष्य की संभावनाएं और संभावनाओं का भविष्य विस्तार पाता है।
अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार कुंभ में गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त करने के साथ-साथ साधु-महात्माओं के दर्शन, उनके धर्मोप्रदेश का अतिरिक्त लाभ और भारतीय संस्कृति के विशाल सागर में एकाकार होने का सुख प्राप्त करते हैं, उसी तरह विश्व पुस्तक मेले में उपस्थित होकर हमें आभास होता है कि हमारी संस्कृति कितनी विशद है और उसमें कितने प्रकार की संस्कृतियों का संगम हुआ है, जहां जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा और क्षेत्र की विविधता एकरूप और एकात्म हो जाती है। ज्ञान के इस कुंभ में रूचि और आवश्यकता की पुस्तकें तो मिलती ही हैं, विविध साहित्यकारों, लेखकों और विद्वानों के संपर्क का लाभ भी मिलता है।
पुस्तक मेलों को देखकर ही ज्ञात होता है कि हमारे पाठक हर गांव, हर नगर में बसते हैं। हमने गांव-गांव, शहर-शहर, रेडियो, दूरदर्शन, मोबाइल तो पहुंचा दिए, किन्तु पुस्तकें नहीं पहुंचाई, ताकि हमारे पाठक देश के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक विकास की ओर अग्रसर होते। परिणाम यह हुआ संवेदनाएं शून्य होती गई, परिवार भी एक बाजार बन गया, व्यक्ति उपभोक्ता बनता गया, सौंदर्यबोध के मानक बदल गए।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने विज्ञापनों के माध्यम से अपने उत्पाद गांव-गांव तक पहुंचा दिए, किन्तु हम अपनी पुस्तकों को हर हाथ तक नहीं पहुंचा पाए। नेशनल बुक ट्रस्ट ने विश्व पुस्तक मेले के साथ-साथ क्षेत्रीय पुस्तक प्रदर्शनियों की चेतना भी आरंभ की है। निश्चय ही इससे पुस्तकों का नया पाठक वर्ग तैयार होगा और पुराने पाठकों को नई पुस्तकें उपलब्ध होंगी। इससे पाठक पुस्तकों की तलाश करेंगे, पुस्तकें पाठकों की तलाश में नहीं भटकेंगी।
दिल्ली के प्रगति मैदान में इसी दो फरवरी को आठ दिवसीय पुस्तक मेले का उद्घाटन करते हुए प्रसिद्घ कन्नड़ लेखक प्रो यूआर अनंतमूर्ति ने कहा कि किताब पढ़ना रोमांस के समान है, यह हमारे सामाजिक संबंधों को समृद्घ करती हैं। उनका कहना था कि पुस्तक को लेकर आपस में जो टरका टिप्पणी होती है उससे भी सामाजिक दायरा बढ़ता है एक दूसरे लेखकों पर जो आरोप मढ़ते हैं उससे भी पुस्तकों का संसार समृद्घ होता है। इस मौके पर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह के संदेश को पढ़ते हुए उनके मंत्रालय के विशेष सचिव केएम आचार्य ने कहा कि कंप्यूटर और इंटरनेट के विस्तार के बावजूद पुस्तकों के प्रकाशन पर कोई असर नहीं पड़ा है। इस मौके पर नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रो विपिन चंद्र ने रूसी मंडप का उद़घाटन भी किया।बाल मंडप में बाल चित्रकारों के मौलिक चित्रों की प्रदर्शनी भी देखने काबिल थी जिसका ट्रस्ट की निदेशक नुजहत हसन ने उद्घाटन किया।
ज्ञान के इस महाकुंभ में लाखों विद्वानों प्रकाशकों और पुस्तक प्रेमियों ने अपनी सहभागिता सुनिश्चित की। आप भी हमेशा यह ज्ञान पुण्य प्राप्त कीजिए यह भी कि इस ज्ञान कुंभ से अपने साथ कोई न कोई पुस्तक ले जाना कभी मत भूलिए।

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