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भुवनेश्वर। उप-राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा है कि शिक्षकों पर एक बार फिर ध्यान केंद्रित करना ही शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की कुंजी है। भुवनेश्वर में उत्कल विश्वविद्यालय के 44वें वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए अंसारी ने कहा कि भारत में गुरू को ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर माना जाता है, हम उस सांस्कृतिक विरासत के उत्तराधिकारी हैं, जिसमें शिक्षकों को उच्च स्थान और सम्मान मिला है, यह बड़ी चिंता की बात है कि हमारा समाज आज इस शिक्षक को वह प्रमुखता और सम्मान नहीं दे पा रहा है।
उपराष्ट्रपति ने शिक्षकों की बहाली की मौजूदा व्यवस्था, पढ़ाई के तरीके, छात्रों के प्रदर्शन का आकलन और उन्हें पुरस्कृत करने के तरीके पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि आज की शिक्षा व्यवस्था में सोचने की क्षमता के विकास के बजाय पाठ्यक्रम पूरा करने पर ज्यादा जोर दिया जाता है, इसमें सुधार की जरूरत है, हमें शिक्षा को राजनीति से दूर रखना होगा और शिक्षकों की नियुक्ति को एहसान से परे रखना होगा। अंसारी ने जोर देते हुए कहा कि जब हम शिक्षक को राजनीतिक रूप से मजबूत करते हैं तो शिक्षा व्यवस्था कमजोर होती है, यह समय की मांग है कि शिक्षकों की व्यवसायिक पहचान बहाल हो और सतत शिक्षा के जरिए उनकी क्षमता का विकास होता रहे, यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि उनके काम में संवैधानिक मूल्य लक्षित हों, समाज को भी चाहिए कि वह शिक्षकों के काम की पहचान करें और उसके अनुसार उन्हें पुरस्कृत भी करे।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीन काल से ही शिक्षा सामाजिक और आर्थिक बदलाव का प्रमुख साधन रहा है, तकनीकी क्रांति और वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने न सिर्फ शिक्षा की महत्ता को बढ़ाया है, बल्कि आर्थिक विकास के लिए इसे पहली शर्त के रूप में स्थापित भी किया है, शिक्षा वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारी प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता को बढ़ाने की कुंजी है, भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास में समाज के सभी लोगों खासकर पिछड़ चुके लोगों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करना जरूरी है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सर्व शिक्षा अभियान के जरिए पिछले एक दशक के दौरान प्राथमिक शिक्षा के विस्तार में हमने अच्छी सफलता हासिल की है, इस दौरान बीच में ही स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या घटी है, शिक्षा का अधिकार कानून पास होने और इसके क्रियान्वयन से सभी बच्चों को आठ साल तक की प्राथमिक शिक्षा के मानव अधिकार को मूल अधिकार में बदल दिया गया है।
अंसारी ने कहा कि शिक्षा में गुणवत्ता बहाल करने से जुड़े चार सवाल हैं, जिनका समाधान अति आवश्यक है। पहली बात यह है कि शिक्षा के सभी स्तर पर हमें सीखने की प्रक्रिया पर पहले से ज्यादा जोर देना चाहिए, इसके साथ ही आवश्यक सुविधाएं, शिक्षकों की बहाली और संसाधनों की उपलब्धता भी बनाये रखनी होगी। दूसरी बात जो सबसे जरूरी है, वह यह की उच्च शिक्षा को ब्रांडिंग और इसे खास तबके तक ही सीमित रखने की स्थिति को बदलना होगा, औसत संस्थानों को मानव संसाधन विकास क्षेत्र में व्यापक सांस्थानिक सुधार करना होगा। तीसरा, राज्य विश्वविद्यालय और 30 हजार कॉलेजों की मजबूत व्यवस्था के लिए आर्थिक मदद बढ़ानी होगी, उनमें सुविधाएं बढ़ानी होंगी और मौजूदा अकादमिक कार्यक्रमों को समृद्ध करना होगा। चौथा, हमारे देश में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि पाठ्यक्रमों के चुनाव में छात्रों को आजादी मिल सके न कि उन्हें छंट जाने की प्रक्रिया से गुजरना पड़े, मांग और उपलब्धता में चौड़ी खाई की वजह से नर्सरी स्कूलों से लेकर आईआईटी और आईआईएम तक में नामांकन के लिए प्रवेश परीक्षाओं और इससे जुड़ी छंटनी की प्रक्रियाओं से छात्रों को गुजरना पड़ता है।
हामिद अंसारी ने उच्च शिक्षा पर यूनेस्को के विश्व सम्मेलन से निकले 1999 के ग्लिओन घोषणा पत्र का जिक्र करते हुए कहा है कि ज्ञान न तो मुफ्त में मिलने की चीज है और न ही कोई प्राकृतिक संसाधन है, बल्कि यह सिर्फ चाहत रखने वालों के पास व्यक्तिगत खोजबीन और समग्र अनुसंधान से आता है और इस काम में विश्वविद्यालय अहम भूमिका निभाते हैं।