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डिम्पल ने बढ़ाया मुलायम का आत्मविश्वास

शुभांग राज

डिम्पल यादव-अखिलेश यादव/dimple yadav-akhilesh yadav

फिरोजाबाद (उप्र)। सैनिक परिवार की पृष्ठ भूमि से राजनीतिक परिवेश में आना और घरेलू जिम्मेदारियों को निभाते हुए ऐसी राजनीतिक परीक्षा में उतरना जहां विभिन्न जातियों और विचार धाराओं के बीच संतुलन स्थापित करके चलना हो तो वह एक महिला के लिए कितनी मुश्किल परीक्षा होगी? डिम्पल यादव को कभी यह एहसास नहीं रहा होगा कि एक दिन उन्हें अपने पितातुल्य ससुर और देश के प्रमुख राजनेता, परिवार के वरिष्ठ सदस्यों की मौजूदगी और भारी जनसमूह के सामने उस लक्ष्य की ओर सफलतापूर्वक चलना होगा जो उनके परिवार की राजनीतिक सफलताओं और मान मर्यादा को आगे बढ़ाता है। डिम्पल यादव से किया जाने वाला यह महत्वपूर्ण सवाल है कि उस रोज उन्हें कैसा लगा जब भारी जन समूह उनके बोलने की प्रतीक्षा कर रहा था। डिम्पल भले ही आज एक असाधारण और खुले विचारों वाले राजनीतिक परिवार से हैं मगर उन्हें बड़ों के सामने पारिवारिक अनुशासन और लोक लिहाज और जन आकांक्षाओं को ध्यान में रखकर चलना, राजनीति के अटपटे और अंतहीन संघर्षों की चुनौती से भरा है। लेकिन डिम्पल ने इनके बीच संतुलन स्थापित करके फिरोजाबाद की जनता से शालीनता से अपनी बात कहते हुए और उन्हें जिताने की अपील करते हुए अपने तर्कों से पूरी तरह संतुष्ट करने की सफल कोशिश की कि उन्हें ही फिरोज़ाबाद से क्यों जिताया जाए?
फिरोजाबाद
के पीडी इंटर कालेज मैदान में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और डिम्पल के ससुर मुलायम सिंह यादव और उनके पति अखिलेश यादव सहित परिवार के सभी प्रमुख लोग और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मौजूद थे और सामने थी डिम्पल यादव को देखने और सुनने आई भारी भीड़। फिरोजी रंग की सुनहरे बार्डर वाली साड़ी का सिर पर पल्लू धरे सबसे अलग दिख रही डिम्पल यादव पर सभी की नज़रें थीं और सबको इस बात की प्रतीक्षा थी कि देखें कि मुलायम सिंह यादव की पुत्र-वधू पहली बार जनता के बीच में आकर क्या और कैसा बोलती है। समाजवादी पार्टी की लाल टोपी लगाए उनके पति और यहां से सपा के सांसद रहे अखिलेश यादव जनसभा के मंच पर काफी आश्वस्त दिख रहे थे लेकिन यह मुलायम सिंह यादव परिवार की दूसरी पीढ़ी की दूसरी अग्निपरीक्षा थी जिसमे डिम्पल यादव की लोकसभा सदस्य चुने जाने की पात्रता का निर्धारण हुआ। हालॉकि किसी पहली जनसभा को जीत का पैमाना नहीं माना जा सकता है, किंतु इस जनसभा से यह संदेश साफ-साफ गया कि डिम्पल यादव ने अपने प्रथम परिचय से ही फिरोज़ाबाद का मैदान मार लिया है।
यूं तो
मुलायम सिंह यादव स्वयं अपने परिवार की राजनीतिक विरासत के जन्मदाता हैं लेकिन उन्हें यह देखकर अपनी पीढ़ी के प्रति भारी विश्वास जगा होगा कि सम्बोधन के लिए नाम पुकारे जाने पर जिस समय डिम्पल यादव ने सबसे पहले फिरोजाबाद की जनता को प्रणाम किया तो वे और ज्यादा आत्मविश्वास से लबरेज हो गए क्योंकि पहली बार उनके परिवार की किसी महिला सदस्य ने इतने बड़े जनसमूह के सामने पूरे आत्मविश्वास के साथ फिरोजाबाद की लोकसभा सीट पर अपनी दावेदारी प्रस्तुत की। आमतौर पर किसी महिला के लिए इतने बड़े जन समूह के बीच पहली बार बिना संकोच और लय के अपनी बात कहना इतना आसान नहीं होता है लेकिन डिम्पल यादव का जितना स्तरीय संबोधन था वह उनके प्रतिद्वंद्वियों पर काफी भारी पड़ रहा है। फिरोज़ाबाद ही नहीं बल्कि उसके बाहर भी उसकी काफी सकारात्मक चर्चा है। यह बात बगैर लाग-लपेट के कही जा रही है कि वास्तव में ऐसी नवोदित राजनीतिक प्रतिभाओं को अवसर मिलने ही चाहिएं और ऐसे ही प्रतिनिधि जनता को बगैर जाति-भेद के चुनकर भेजने चाहिएं।
फिरोजाबाद
में इस वक्त लोकसभा चुनाव की जबरदस्त सरगर्मी है। यहां डिम्पल यादव का मुकाबला त्रिकोणात्मक और चुनौतियों से भरा है। चुनौतियां इसलिए क्योंकि यहां से मुलायम सिंह यादव के ही पुराने शिष्य और कभी उनकी सुरक्षा में तैनात रहे और उसके बाद उनके आशीर्वाद से पहले प्रोफेसर और फिर बाद में सांसद बने एसपी सिंह बघेल बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के रूप में सामने खड़े हैं। हालॉकि मुलायम सिंह यादव परिवार के सामने न तो ये पहले टिक पाए और ना ही अब कोई संभावना दिखती है, भले ही उनके साथ बसपा का एक मुश्त वोट क्यों न खड़ा हो। दूसरे प्रत्याशी जाने माने फिल्म अभिनेता और मुलायम सिंह यादव के ही शिष्य और सांसद रहे राजबब्बर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में यहां से चुनाव मैदान में हैं। तीसरे रघुवर दयाल वर्मा भाजपा से खड़े हैं। भाजपा की यहां कोई हवा नहीं दिखती है। इनके बीच में समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी डिम्पल यादव हैं जिन्होंने पहली बार इस सीट पर अपनी दावेदारी पेश की है। लोकसभा के आम चुनाव में यहां से समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव जीते थे। चूंकि उन्होंने कन्नौज से भी लोकसभा चुनाव जीता है इसलिए कन्नौज की सीट अपने पास रखकर उन्होंने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी और इस पर आज उनकी पत्नी डिम्पल यादव लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं।
राज्य
में इस समय जितने भी चुनाव हो रहे हैं उनमें मुलायम सिंह यादव की पुत्र-वधु डिम्पल यादव के आने से फिरोजाबाद का लोकसभा चुनाव काफी चर्चा में आ गया है। डिम्पल के पति अखिलेश यादव ने इस चुनाव में इस क्षेत्र के लगभग सभी विधानसभा चुनाव क्षेत्रों में बाकी प्रत्याशियों से बढ़त हासिल की थी जिससे यह समझना कोई मुश्किल नहीं है कि इस बार का मुकाबला भी स्पष्ट संकेत दे रहा है। कांग्रेस की ओर से राजबब्बर के आने से भी कोई फर्क नहीं दिख रहा है। राजबब्बर इस बार फिरोजाबाद से चुनाव लड़ रहे हैं, मीडिया के लिए यह एक मसाला खबर जरूर है। राजबब्बर एक तरह से राजनीति के बियावान में खड़े हुए हैं। फिरोजाबाद में उनका सनसनीखेज प्रचार है, जिसका इस चुनाव में कोई प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा है। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव में पहले से दुगनी सीटें जीती हैं यहां इसका कोई असर नहीं दिखाई देता है। फतेहपुर सीकरी से कांग्रेस के टिकट पर बसपा से पराजित होकर अब फिरोजाबाद आए राजबब्बर से काफी प्रश्न किए जा रहे हैं जिनमें एक यह है कि वे तो फिल्मों में और मुंबई में व्यस्त रहते हैं फिर वे फिरोजाबाद की आम जनता को क्या समय देंगे? यह भी कि उन्हें क्या इसलिए लड़ाया गया है कि उनकी अब मुलायम सिंह यादव से एक खुंदक है या उनका एकमात्र लक्ष्य लोकसभा में पहुंचने भर का है? राजबब्बर जिस प्रकार के अभिनेता और आज राजनीतिक जीवन में सक्रिय हैं, उसे देखकर उनसे आमजन के इस प्रकार के प्रश्न काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
ऐसे ही
सवाल फिरोजाबाद में मीडिया और आम जन के लोगों ने डिम्पल यादव से किए तो उनके जवाब बहुत सटीक और उनके दावे की पुष्टि करते हैं। मीडिया ने डिम्पल यादव से सवाल किया कि उनका चुनाव लड़ना क्या परिवारवाद नहीं है? इस पर डिम्पल यादव का जवाब एक परिपक्व नेता की तरह और लाजवाब था। डिम्पल ने कहा कि 'यदि परिवारवाद की बात होती तो नेताजी मुझे राज्यसभा में या किसी भी सदन में सीधे नामित कर सकते थे, मैं जनता के बीच में हूं और लोकसभा चुनाव लड़ रही हूं यदि वह मुझे मौका देती है तो इसका जवाब भी इसी में होगा। चुनकर जाना परिवारवाद की श्रेणी में नहीं आता है क्योंकि ये फैसला तो जनता को ही करना है।' बड़ी विनम्रता के साथ डिम्पल यादव का कहना था कि वह राजनीति की तिकड़म नहीं जानती हैं और पहली बार राजनीतिक जीवन की शुरूआत कर रही हैं, वह यहां सिर्फ सेवा करने आई हैं। 'मैं यहां किन्हीं की बहन हूं किन्हीं की बहूं हूं और किन्हीं की भाभी हूं।' जनसमूह में इस भावनात्मक लगाव का असर देखने को मिला। लोगों ने बहुत धैर्य से डिम्पल को सुना। यह डिम्पल की पहली राजनीतिक परीक्षा थी, जिसमें कि वह सफलता से बाहर आती हुई दिखाई दीं। उनके भाषण में न किसी पर इल्जाम थे और न ही राजनीतिज्ञों जैसी बड़बोली बातें। मंच पर परिवार के साथ बैठे सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, सपा के वरिष्ठ नेतागण और डिम्पल यादव के पति अखिलेश यादव ने डिम्पल यादव के जनसमूह को संबोधित करते हुए भारी आत्मविश्वास देखकर जरूर ईश्वर को धन्यवाद दिया होगा कि उन्होंने फिरोजाबाद की जनता में अपनी राजनीतिक उपयोगिता को सिद्ध किया है।
डिम्पल
यादव फिरोजाबाद में लोगों के बीच काम कर रही हैं और अपनी बात कह रहीं हैं तो आमजन उनके काफी करीब आ रहा है। एक युवा महिला और सुसंस्कृत राजनीतिज्ञ को अपने बीच में पाकर आमजन और महिलाओं में यह विश्वास स्थापित होना स्वाभाविक बात है कि उनका होने वाला प्रतिनिधि उनके बीच की भावनाएं रखता है और उससे उनकी कोई दूरी नहीं है। डिम्पल यादव ने अपने जनसंपर्क और कहीं कहीं पर मीडिया से मुलाकात में अपने को काफी सहज बनाए रखा हुआ है। वे न मीडिया के सवालों से विचलित होती हैं और न ही आक्रामक। उन्होंने अपने विरोधियों पर भी ऐसे कोई कटाक्ष नहीं किए हैं जो आज के नव राजनीतिज्ञों की चुनाव लड़ने की शैली बने हुए हैं। बहुत से लोगों को लगता है कि फिरोजाबाद के लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार के प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं उनके राजनीति कद काफी सशक्त हो सकते हैं लेकिन डिम्पल यादव के लिए यह कोई समस्या नहीं दिखाई देती है। लोगों का मत है कि इस चुनाव में डिम्पल यादव की पात्रता को इस दृष्टि से देखना काफी महत्वपूर्ण होगा कि जब राजनीति में सुचिता की बात हो रही हो और लोकसभा में योग्य एवं चरित्रवान लोगों और महिलाओं के प्रतिनिधित्व की आवश्यकता महसूस की जाती हो तो ऐसे राजनीतिज्ञों को अवसर देने ही चाहिएं, चाहे उनका जातिगत आधार कितना ही कमजोर क्यों न हो। माना कि राजनीति में धन बल और जाति का महत्व सबसे ऊपर है, मगर वह समय भी आएगा जब जनता ऐसे प्रत्याशियों को अवसर देगी जैसी डिम्पल यादव या उन जैसे व्यक्तित्व के योग्य प्रत्याशी होंगे।

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