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नई दिल्ली। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि निदेशकों की नियुक्ति या निदेशक/ निदेशकों को बदलने के संबंध में परस्पर विरोधी रिटर्न जारी करने के मामलों को नियंत्रित करने की कुछ प्रक्रियाएं निर्धारित करने के लिए 2 मई 2011 को जारी 2011 की परिपत्र संख्या 19 और 20 को अलग कर दिया गया है। ऐसा उन मामलों को ध्यान में रखते हुए किया गया जिनमें देखा गया कि हटाए गए/ बदले गए निदेशक की सहमति नहीं थी या कानून की सही प्रक्रिया नहीं अपनाई गई थी। इस तरह की संभावित घटनाओं से बचने के लिए, जहां भी प्रबंधन से जुड़ा विवाद हो, कंपनी को संबद्ध आरओसी के साथ फॉर्म-32 सहित नौकरी के समाप्त होने के कारण संबंधी पत्र दायर करना अनिवार्य होगा, इसमें सेवानिवृत्ति, अयोग्य ठहराना, मृत्यु, इस्तीफा, कार्यालय छोड़ना, हटाना, नियुक्ति अधिकारियों के नामांकन वापस लेना या पुर्ननियुक्ति की सूचना का न होना है।कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने यह भी कहा है यदि कोई निदेशक कंपनी में अपनी नौकरी से परेशान है तो वह निवेशक शिकायत प्रोफार्मा में शिकायत दर्ज कर सकता है। शिकायत मिलने पर संबद्ध आरओसी शिकायत की जांच करेगा और कंपनी को ‘प्रबंधन विवाद’ के रूप में चिह्नित कर देगा। साथ ही आरओसी कंपनी को एक पत्र देगा और संबद्ध पक्षों से सौहार्दपूर्ण तरीके से मामला हल करने को कहेगा या अदालत अथवा न्यायाधिकरण से आदेश/ अंतरिम आदेश प्राप्त करेगा। मामले का निपटारा होने तक कंपनी और निदेशकों के समूहों के दायर दस्तावेजों को मंजूरी/ पंजीकृत/ रिकॉर्ड नहीं किया जाएगा और यह जनता के लिए रजिस्ट्री में उपलब्ध नहीं होंगे।