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नई दिल्ली। कपास वर्ष 2011-12 के लिए कपास बजट को कपास सलाहकार बोर्ड ने तैयार किया था। एक कपास निर्यात नीति बनाने के लिए कृषकों, व्यापारियों, सूत उत्पादकों और इस उद्योग से संबंधित सभी हितधारकों के हितों का ध्यानपूर्वक समाधान करते हुए एक संतुलित निर्णय लिया गया। पिछले वर्ष कच्ची कपास का निर्यात 78 लाख गठ्ठर था और इस कपास वर्ष के पांच महीनों में ही कपास के निर्यात ने पिछले 10 वर्षों के अधिकतम स्तर 95 लाख गठ्ठरों को पार कर लिया है, हालांकि कपास की फसल अनुमान के समान ही है। कृषि, वाणिज्य और टेक्सटाइल सचिवों ने सरकार का ध्यान इस ओर खींचते हुए जानकारी दी कि निर्यात के लक्षित अनुमानों से अधिक का निर्यात किया जा चुका है और तीनों सचिवों ने घरेलू उद्योग के लिए कपास की पर्याप्त उपलब्धता की भी जानकारी दी, इसे देखते हुए सरकार ने कपास निर्यात पर प्रतिबंध का फैसला लिया था।
वित्त मंत्री की अध्यक्षता में अनौपचारिक मंत्री समूह की 9 मार्च, 2012 को हुई बैठक के दौरान स्थिति की समीक्षा करते हुए कुछ निश्चित शर्तों के साथ इस प्रतिबंध को वापस लेने का फैसला ले लिया गया। सोमवार को डीजीएफटी ने एक अधिसूचना जारी की, जिसमें स्थिति को स्पष्ट किया गया कि डीजीएफटी के साथ अब तक पहले से पंजीकृत निर्यात ऑर्डरों की शीघ्रता से जांच की जाएगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके कागजात सही क्रम में हैं और उन्हें फिर से प्रमाणित किया गया है। पहली प्राथमिकता उन माल प्रेक्षणों को दी जाएगी, जिन्हें सीमा शुल्क के हवाले किया जा चुका है। नवीन कपास बजट और इस संदर्भ में एक उचित नीति के मूल्यांकन के लिए जीओएम अगले दो हफ्तों में बैठक करेगा। इस बीच, मंडियों में मूल्यों की स्थिति पर करीब से नजर रखी जा रही है और भारतीय कपास निगम को व्यवसायिक और न्यूनतम समर्थन मूल्य दोनों अभियानों में जरूरत के मुताबिक हस्तक्षेप के लिए अधिकृत किया जा चुका है।