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मानसिक रोगियों पर दवाओं का परीक्षण

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नई दिल्ली। स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने राज्‍यसभा में एक प्रश्‍न के लिखित उत्तर में बताया है कि केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने महात्‍मा गांधी मेडिकल कॉलेज एंड मेंटल हॉस्‍पीटल (एमजीएम) इंदौर के डॉक्‍टरों द्वारा रोगियों पर उनकी सहमति के बिना औषधि के परीक्षणों से जुड़े तथ्‍यों की जांच की है। जांच से इस बात का पता चला है कि एमजीएम अस्‍पताल से जुड़े मनोचिकित्‍सकों ने अपने निजी क्‍लीनिकों में जनवरी 2008 से लेकर अक्‍तूबर 2010 की अवधि के दौरान 11 परीक्षण किए थे। केवल एक मामले में ही जांचकर्ता को वहां पर मूल सूचित सहमति प्रपत्र नहीं मिला और जैसा कि बताया गया कि यह प्रायोजक कंपनी के पास है।
ड्रग्‍स और कॉस्‍मोटिक्‍स रूल्‍स और गुड क्‍लीनिकल प्रैक्टिस गाइडलाइन की अनुसूची वाई में इस बात का उल्‍लेख किया गया है कि वैसे मानसिक रोगियों ओर मानसिक विकलांग व्‍यक्तियों को इस दृष्टि से मेघ माना गया है जो व्‍यक्तिगत रूप से सहमति देने में सक्षम नहीं हैं, हालांकि उपरोक्‍त नियमावली और मार्गनिर्देशों में किसी प्रकार का निषेध नहीं है कि ऐसे रोगियों पर क्‍लीनिक संबंधी परीक्षण नहीं किए जा सकें। ऐसे रोगियों के क्‍लीनिक संबंधी परीक्षणों के लिए पंजीकृत करने के लिए रोगियों के वैधानिक तौर पर मान्‍य प्रतिनिधि से सूचित सहमति प्राप्‍त करना जरूरी होता है। सरकार के पास रोगियों पर दवाओं के परीक्षण पर रोक लगाने का कोई प्रस्‍ताव नहीं है, क्‍योंकि सरकार यह मानती है कि ऐसे परीक्षण काफी महत्‍वपूर्ण हैं।

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