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लखनऊ। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद की शनिवार को एक आपात बैठक हुई जिसमें केंद्रीय बजट में, बिजली बजट पर विस्तार से चर्चा की गई। बैठक की अध्यक्षता करते हुए परिषद के अध्यक्ष और विश्व ऊर्जा कॉउंसिल के स्थायी सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि बजट में बिजली क्षेत्र के साथ बड़ा भेद-भाव किया गया है, जहां पिछले वर्ष देश के कुल बजट का बिजली क्षेत्र के लिए 11.20 प्रतिशत बजट आवंटित था, वहीं इस वर्ष देश के कुल विभागवार बजट परिव्यय 651509 करोड़ रूपये में मात्र बिजली क्षेत्र के लिए 62425 करोड़ रूपए ही आवंटित हैं, जो कुल बजट का केवल 9.6 प्रतिशत ही है।
अवधेश का कहना है कि बिजली क्षेत्र देश के विकास में सबसे महत्वपूर्ण है, ऐसे में इस क्षेत्र पर सबसे ज्यादा ध्यान दिये जाने की आवश्यकता थी, बजट में पूरे देश के लिए 4900 करोड़ रूपए 4800 गांव के विद्युतिकरण के लिए और 34 लाख बीपीएल परिवारों को मुफ्त विद्युत कनेक्शन के लिए आवंटित हैं, जो पूरी तरह उचित नहीं हैं। इस सीमा में कम से कम 25 प्रतिशत की वृद्धि होनी चाहिए थी, बजट में आरएपीडीआरपी योजना के तहत 15 प्रतिशत लाइन हानियों के स्तर को प्राप्त करने के लिए 3114 करोड़ रूपए पूरे देश के लिए आवंटित हैं, यह पूरी तरह मानको के विपरीत है। वर्तमान में लाइन हानियों के स्तर को 15 प्रतिशत तक लाने के लिए व्यापक बजट की आवश्यकता थी, जिसे वित्तमंत्री ने नजरअंदाज किया है, इसका लाभ जनता को मिलने वाला नहीं है औ यह मात्र कागजो में सिमट कर रह जाएगा।
उन्होंने कहा है कि इस साल के बजट में किसानों की खराब हालत को देखते हुए सभी यह आस लगाये थे, कि बिजली दरों मे कमी लाने के लिए केंद्रीय स्तर पर सब्सिडी की व्यापक व्यवस्था की जाएगी, जिससे केंद्रीय सेक्टर से राज्यों को आवंटित ऊर्जा की औसत दरो में कमी प्रस्तावित होगी, परंतु बजट में इसका कोई प्राविधान नहीं है, जहां तक कोयला नीति के बारे में बजट में प्राविधान है, चाहे वह सीबीडी से संबंधित हो या अन्य, इसका लाभ ज्यादातर निजी घराने ही उठाएंगे। बिजली उत्पादन के लिए बुनियादी शुल्क में छूट दिया जाना उचित है, परंतु इस पर गंभीरता से नीति बननी चाहिए थी, जिससे इसका ज्यादा लाभ निजी घराने न उठा पाएं। बैठक में प्रमुख रूप से सुनील कुमार, मायाराम वर्मा, पीयूष चंद्र, महेंद्र कुमार, आशाराम प्रजापति, नवीन चंद्र, महेश अग्रवाल, सहित अनेक पदाधिकारी उपस्थित थे।