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नई दिल्ली। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक मंत्रालय में राज्य मंत्री प्रोफेसर केवी थामस द्वारा लोकसभा में बताया है कि सरकार ने गुणवत्ता नियंत्रण, भंडारण आदि जैसे कार्यक्षेत्रों को सुदृढ़ बनाने के लिए वर्ष 2010 में भारतीय खाद्य निगम के संगठन में पुन: संरचना की है। कवर एंड प्लिंथ (सीएपी) के अधीन भंडारण को कम करने के लिए सरकार ने निजी उद्यमियों, केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) और राज्य भंडारण निगमों (एसडब्ल्यूसी) के जरिए भंडारण गोदामों के निर्माण की एक योजना बनाई है। इस योजना के अधीन भारतीय खाद्य निगम निजी उद्यमियों को सुनिश्चित किराए पर देने के लिए अब दस वर्ष की एक गारंटी देगी, निजी उद्यमियों, केंद्रीय और राज्य भंडार निगमों के जरिए 19 राज्यों में लगभग 151 लाख टन की क्षमता तैयार की जाएगी। इसमें से लगभग 89 लाख टन की भंडारण क्षमता निजी उद्यमियों से तैयार करने के लिए 15 फरवरी 2012 तक निविदाओं को अंतिम रूप दिया गया है। सीडब्ल्यूसी और एसडब्ल्यूसी क्रमश: 5.4 लाख टन और 14.75 लाख टन क्षमता का निर्माण कर रही हैं, इसमें से सीडब्ल्यूसी, एसडब्ल्यूसी के लगभग पांच लाख टन क्षमता के निर्माण का कार्य पूरा कर लिया गया है।
भारतीय खाद्य निगम ने खाद्यानों की क्षति की रोकथाम के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। कीड़ों, घुनों की रोकथाम के लिए प्रोफीलेक्टिक और उपचारात्मक उपाय नियमित रूप से किए जाते हैं। चूहों आदि पर नियंत्रण के प्रभावी उपाय भी किए जाते हैं। भंडारों में खाद्यान का उचित रख रखाव सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से गुणवत्ता जांच भी की जाती है। कैप (सीएपी) में रखे गए खाद्यान भंडारों की सुरक्षा के पर्याप्त उपाय किए जाते हैं। भंडारण के स्थानों को बराबर साफ किया जाता है और कीटनाशक दवाईयां छिड़की जाती हैं। सीएपी भंडारों को वर्षा और धूप आदि से सुरक्षित करने के लिए प्रत्येक बोरी पर पोलीथिन चढ़ाया जाता है। पोलीथिन थैलियों को नाइलोन की डोरियों से बांधा जाता है। राज्य सरकारों, एजेंसियों द्वारा सीएपी में रखे गए गेंहूं के भंडारों की एफसीआई और संबद्ध राज्य सरकारों, एजेंसियों के अधिकारियों द्वारा नियमित आधार पर संयुक्त रूप से निरीक्षण किया जाता है। भंडार आमतौर पर ‘पहले आएं पहले जाएं’ सिद्धांत पर जारी किए जाते हैं।