मुजफ्फर भारती
वर्तमान परिपेक्ष्य में भारतीय मुसलमान शैक्षणिक, सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़ेपन का शिकार हो रहा है। इस हकीकत को जस्टिस राजेन्द्र सच्चर की सदारत में मुसलमानों के हालात पता करने के लिऐ गठित सच्चर आयोग ने भी अपने अन्वेक्षण प्रतिवेदन में स्वीकार किया है। हालांकि अनेक सरकारों में अल्पसंख्यक उत्थान की अनेक योजनाओं का क्रियान्वयन भी किया जा रहा है, किंतु ऐसे कार्यक्रम एवं योजनाएं अपने उद्देश्य में मोटे तौर पर निष्प्रभावी रही हैं। अल्पसंख्यक कल्याणार्थ चलाई गई सभी योजनाओं की असफलता का मूल कारण यह रहा कि ऐसी सभी योजनाओं पर अमलदरामद का जिम्मा देश की नौकरशाही के हाथों में रहा है।
दरअसल मुसलमानों की बुनियादी समस्याओं से जुड़े रहकर उनके लिये आवाज़ बुलंद करने वाले संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को हमेशा इनसे दूर रखा गया। यदि सरकारें मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ताओं का दखल और महती भूमिका को इनके क्रियान्वयन में स्वीकार करतीं तो मुसलमानों का सामाजिक उत्थान कभी निष्फल नहीं होता। इसके अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण एवं मुख्य कारण ये भी हैं कि मुस्लिम उत्थान विषय को अनेक सियासी जमाअतों और कौम के कथित रहनुमाओं ने एक सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया, इसीलिये धरातल पर मुसलमानों के हालात कमोबेश पूर्वत ही बने रहे और दिनबदिन खराब होते रहे। आवेग इतना प्रखर रहा कि जहां एक और मुसलमान अपने पिछड़ेपन की जटिल समस्या से संघर्षशील है, वहीं समाज के प्रति सांप्रदायिक हिंसा प्रवृति भी दिनबदिन बलवती होती जा रही है, जो गुजरात, गोपालगढ़, सराडा, सरवाड़, के ताजा घटनाक्रमों से साफ जाहिर हुई है।
इस परिपेक्ष्य में मुसलमानों को न सिर्फ अपने शैक्षणिक, सामाजिक ताने बाने को मजबूत करने का बीड़ा उठाना चाहिए, बल्कि ऐसे हिंसक आघातों से बचाव के लिये भी सुरक्षा कवच तैयार करना जरूरी है। मुसलमानों में नेतृत्व के आभाव में यह अकसर देखने में आया है कि ऐसे संवेदनशील मु्द्दों पर सरकारों के समक्ष खुलकर अपना पक्ष रखने वाला कोई मंच प्रदेश में मुस्लिम समाज के पास नहीं है, और जो संगठन हैं, वह दलीय राजनीति के शिकार होने के कारण प्रभावी भूमिका नहीं अदा नहीं करते हैं, जिसका खामियाजा आम मुसलमानों को भुगतना पड़ता है। राजस्थान में मुस्लिम वर्ग की बुनियादी समस्याओं को चिन्हित करने तथा उनके निराकरण के लिये यह अनिवार्य हो चुका है कि मुस्लिम उत्थान के नाम पर सियासत करने वाले मौका परस्त सियासतदानों को पीछे धकेल कर निष्ठावान मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ता आएं, ताकि समाज के माथे पर लगे पिछड़ेपन के कलंक को येनकेन-प्रकरेण धोया जा सके।
इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग अब संगठित होने का प्रयास कर रहा है और इस जद्दोजहद में है कि प्रदेश स्तरीय एक ऐसे गैर राजनीतिक संगठन को खड़ा किया जाए, जिसमें केवल मुस्लिम उत्थान की ही प्रतिबद्घता हो और वह मुस्लिम सामाजिक क्रांति का सूत्रपात कर सके। यदि अन्य समाजों यथा-जैन, ब्राह्मण, जाट, गुर्जर, राजपूत, आदि की ओर दृष्टि डालें तो यह स्पष्ट रूप से विदित होगा कि इन सभी ने अपने-अपने वर्गीय-मंचों को सामाजिक ध्रुवीकरण के रूप में खड़ा करके समाज हित के लिए निर्णायक संघर्ष किया और उसमें काफी हद तक सफलता भी अर्जित की है। इन सभी वर्गों के सामाजिक आंदोलन बार-बार यह प्रेरणा देते हैं कि मुस्लिम समाज को भी ऐसे एक जागरण मंच की आवश्यकता है। यह आवश्यकता तभी पूर्ण हो पाएगी, जब मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ता एवं बुद्धीजीवी वर्ग निस्वार्थ भाव के साथ दिल में सामाजिक उत्थान के लिए निर्णायक संघर्ष के जज्बे के साथ सामने आएं और समाज की बुनियादी तकलीफों पर गहन चिंतन के उपरांत कौम की फलाह बहबूदी की शुरूआत के लिये भावी रूपरेखा तैयार करें।