स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
नई दिल्ली। ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार निर्णायक मंडल’ ने एक बैठक में सर्वसम्मति से 24वें और 25वें मूर्तिदेवी पुरस्कार घोषित कर दिए हैं। वर्ष 2010 का 24वां पुरस्कार उर्दू के प्रतिष्ठित विद्वान प्रोफेसर गोपीचंद नारंग को उनकी आलोचनात्मक कृति ‘उर्दू ग़ज़ल और हिंदुस्तानी ज़ेहनों-तहज़ीब के लिए प्रदान किया गया है। वर्ष 2011 का 25वां पुरस्कार हिंदी के मनीषी रचनाकार प्रोफेसर गुलाब कोठारी की कृति ‘मै ही राधा, मै ही कृष्ण’ के लिए दिया गया।
प्रोफेसर गोपीचंद नारंग उर्दू भाषाविद् और प्रख्यात आलोचक हैं। विविध विषयक और अनेक आयामों एवं संभावनाओं से पूर्ण ‘उर्दू ग़ज़ल और हिंदुस्तानी ज़ेहनों-तहज़ीब’ कृति की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें प्रोफेसर नारंग ने क्लासिकी एवं आधुनिक उर्दू ग़ज़ल पर शोधपूर्ण कार्य किया है। इसके अंतर्गत भारतीय दर्शन एवं संस्कृति का विकास, वैदिक संस्कृति, उपनिषद, बौद्ध संस्कृति, पौराणिक संस्कृति, गीता एवं शैव और वैष्णव मत को उर्दू भाषा विशेषकर उर्दू ग़ज़ल पर पड़ रहे प्रभाव का दर्शाया है। इसमें इस्लामी विचारधारा एवं सूफीवाद के साथ ही उर्दू ग़ज़ल के बुनियादी पहलू पर भी गंभीर चर्चा की गई है।
प्रोफेसर गुलाब कोठारी की पुरस्कृत कृति ‘मै ही राधा, मै ही कृष्ण’ में जीवन को समझने का तात्विक मार्ग सहज शब्दों में और नितांत व्यवहारिक धरातल पर दिखाया है, ताकि हम भीतर की शक्ति और शक्तिमान दोनों का साक्षात कर सकें। यह भी समझ सकें कि कृष्ण को पाना है तो राधा बनना ही पड़ेगा, जीवन के पुरूषार्थ को समझकर ही इस सृष्टि के विकास को समझा जा सकता है। टीएन चतुर्वेदी की अध्यक्षता में निर्णायक मंडल की इस बैठक में प्रोफेसर सत्यव्रत शास्त्री, डॉ प्रतिभा राय, प्रोफेसर सच्चिदानंदन, प्रोफेसर वृषभ प्रसाद जैन, साहू अखिलेश जैन (प्रबंध न्यासी) और रवींद्र कालिया निदेशक भारतीय ज्ञानपीठ सम्मिलित हुए।
चिंतक, विचारक, वेद विज्ञान के अध्एता एवं राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी को भारतीय ज्ञानपीठ ने अपने प्रतिष्ठित मूर्तिदेवी पुरस्कार के लिए चुना है जिसकी हर तरफ सराहना हो रही है। गुलाब कोठारी यह सम्मान पाने वाले राजस्थान के चौथे साहित्य साधक हैं।