शेली खत्री
विष्णुनागर पत्रकारिता और साहित्य क्षेत्र का जाना-माना नाम है। बोलचाल में अगर व्यंग्य का पुट रहता है तो लेखनी में भी व्यंग्य और उसमें पैनापन झलकता है। आम आदमी की पीड़ा को जड़ से समझने वाले विष्णु नागर करीब 37 साल से सक्रिय पत्रकारिता से जु़ड़े हैं। साहित्य से तो उनका पुराना रिश्ता है ही। एक नए अंदाज में साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सृजन में विष्णु नागर ने अपनी अलग पहचान बनाई है। साहित्य रचना को जारी रखते हुए नागर जी नई दुनिया के कार्यकारी संपादक का भी महत्वपूर्ण दायित्व संभाले हुए हैं। जबलपुर में परसाईंजी की जयंती पर आए तो उनसे बातचीत का अवसर मिला।
सक्रिय पत्रकारिता से जु़ड़े हैं, निरंतर साहित्य लेखन और चिंतन भी करते रहते हैं। यह सब कुछ कैसे संभव हो पाता है?
यह इतना मुश्किल नहीं है। पत्रकारिता में रहते हुए अनुभवों का विस्तार होता है। अगर आप चिंतन-मनन के साथ रोज अखबार प़ढ़ें तो जीवन के हर क्षेत्र की जानकारी होगी। मेरी नज़र में समाचार पत्र रोज छपने वाला महाभारत ही है। जीवन के हर पहलू दृष्टिगत होते हैं इसमें। पत्रकार होने से यह लाभ भी है कि चीजें पूर्ण रूप से सामने आती हैं। दिमाग हमेंशा चिंतनशील रखकर आप काम कर सकते हैं। यह सब विशेष मुश्किल नहीं है।
हिंदी पत्रकारिता में आम आदमी कहां है?
अंग्रेजी के पत्र-पत्रिकाएं इस मामले में कहीं अच्छी हैं। मुझे थोड़ा सा दुख है कि यह हिंदी पत्रकारिता के लिए खेद का विषय है, हिंदी पत्रकारों को समझ आएगी और लौटेगी हिंदी पत्रकारिता मुद्दों और आम आदमी की ओर। कलम की एक सीधी सत्ता होती है। पत्रकार और साहित्यकार को यह लग सकता है कि उनकी कलम से अब कुछ नहीं हो रहा, पर ऐसा नहीं है। तत्काल स्थितियां नहीं बदलतीं पर शुरूआत होने लगती है और शुरूआत दिख रही है।
पत्रकारिता और साहित्य का मूल्यह्रास हुआ है?
आज से पचास साल पहले भी यही बातें कही जाती थीं। आज भी कहीं जा रही हैं। सच्ची बात यह है कि जो लोग काम करने वाले होते हैं वे हर हाल में काम कर लेते हैं। पहले भी कई अच्छे लेखक , पत्रकार हुए, आज भी हैं। सरोकारों के आधार पर लोग उस जमाने में भी जगह पाते थे और अब भी पा रहे हैं। अच्छी चीजें आज भी आ रहीं हैं और आगे भी आएंगी। उनकी मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है, पर लोगों को सकारात्मक नज़रिया अपनाना होगा।
इन दिनों हिंदी ब्लाग आ गए हैं मगर ब्लॉग में स्तरीय साहित्य कम ही हैं...
ब्लाग बुरा नहीं है। अभी नया-नया है, इसलिए दिक्कतें तो आयेंगी ही। यहां कोई विशेष रोक-टोक नहीं है, इसलिए हर प्रकार की चीजें आ रही हैं। समय सब सिखा देता है। एक समय बाद यह हिंदी साहित्य के लिए अधिक उपयोगी होगा। इसके माध्यम से विश्व के अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचा जा सकता है।
हिंदी साहित्य के लिए आम पाठक तक पहुंचने में क्या दिक्कतें महसूस करते हैं?
इस समस्या के लिए हर मुद्दे पर सुधार जरूरी है। साहित्य ही नहीं पाठक को भी साहित्य की ओर उन्मुख होना होगा। पाठक को साहित्य की पहुंच मे आना होगा। हिंदी किताबों के मूल्य आज पाठकों की जेब से ज्यादा भारी हैं। लेखकों को भी इस विषय पर विचार करना होना होगा कि उनका साहित्य उनके पाठकों तक आसानी से पहुंच जाए। इस समस्या से निपटने के लिए प्रयास की आवश्यकता है।
विष्णु को विष्णु नागर बनाने में किसका योगदान है?
वैसे तो मैं कोई ब़ड़ी हस्ती नहीं हूं। पर मुझे बनाने में सबसे पहले मेरे कस्बे शाहजहांपुर का योगदान है, जहां मैं पला-बढ़ा और वहां के संस्कार मिले। मेरे अध्यापक और उन किताबों का योगदान रहा है जिन्हें मैंने अब तक प़ढ़ा। दिल्ली में मेरा कोई परिचित नहीं था इसके बाद भी मैं दिल्ली चला आया, मेरे उस दु:साहस और जो लोग मिले उन सबका योगदान रहा है। मेरी जीवन संगनी का भी योगदान है क्योंकि उसने मुझे घर में ऐसा वातावरण प्रदान किया कि मैं एकाग्रचित्त होकर चिंतन, लेखन कर सकूं।
आगे क्या नया लिखने की तैयारी है?
हां एक विषय मेरे दिमाग में काफी समय से है। मौका मिलते ही उस पर लेखन शुरू करूंगा। सड़क आधारित उस रचना के केंद्र में दिल्ली होगी। आज सड़क भी ताकतवर हो गई। आमआदमी के लिए वहां भी जगह नहीं। इसी चिंतन के ताने-बाने से तैयार होगी यह रचना।