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सभी देशों का जनसंख्‍या ढांचा बड़ी चुनौती

ब्रिक्‍स शिखर सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री का बयान

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नई दिल्‍ली। चौथे ब्रिक्‍स शिखर सम्‍मेलन के पूर्ण अधिवेशन में प्रधानमंत्री मनमोहन ‌सिंह ने भारत को चौथे ब्रिक्‍स शिखर सम्‍मेलन की मेजबानी करने और समूह के अध्‍यक्ष का पद संभालते हुए कहा कि आज हम जिस वैश्विक स्थिति का सामना कर रहे हैं, वह एक मिश्रित तस्‍वीर पेश करती है, एक तरफ उभरती बाजार अर्थव्‍यवस्‍था तेजी से विकसित हो रही है और वैश्विक व्‍यापार और उत्‍पादन में उनका हिस्‍सा बढ़ रहा है, दूसरी तरफ यदि आने वाले वर्षों में विकास की गति को तेज बनाए रखना है तो हमें अनेक बाधाओं को दूर करना होगा। वैश्विक आर्थिक मंदी, खाद्यान और ऊर्जा की कीमतों में उतार-चढ़ाव, पर्यावरण संबंधी उद्देश्‍यों के साथ विकास का सामंजस्‍य स्‍थापित करने की चुनौती, पश्चिम एशिया में राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद तथा उग्रवाद की घटनाओं में वृद्धि से हम सभी प्रभावित हुए हैं, इन चुनौतियों पर हमारी प्रतिक्रिया अलग-अलग हो सकती है, लेकिन बहुत से ऐसे साझा हित हैं, जो हमें एकजुट रखते हैं।
प्रधानमंत्री ने ऐसे दस विशेष मुद्दों पर अपने विचार प्रकट किए जो सभी के लिए चिंता का विषय हैं। उन्होंने कहा कि सबसे पहले, सभी देशों का अनोखा जनसंख्‍या ढांचा है, जो उसके लिए अपने तरह की चुनौतियां खड़ी करता है। उदाहरण के लिए, भारत में, अगले दशक में हमें हर साल 80 लाख से एक करोड़ नौकरियों की व्‍यवस्‍था करनी होगी, ताकि श्रमिक बल में होने वाली बढ़ोतरी को समाहित किया जा सके। हम कौशल विकास और शिक्षा के एक महत्‍वाकांक्षी कार्यक्रम पर कार्य कर रहे हैं और नौकरियों के अवसर बढ़ाने के लिए उपयुक्‍त माहौल बना रहे हैं। हम अन्‍य ब्रिक्‍स देशों के अनुभव से जानना चाहेंगे कि इस तरह की समस्‍याओं से वे किस तरह निपट रहे हैं।
दूसरा, वैचारिक विश्‍लेषण जिसने मंदी के बाद विकास में तेजी के मॉडल पर आधारित सकारात्‍मक ब्रिक्‍स का वर्णन किया है, जिसमें आपूर्ति की मजबूरियों पर पूरी तरह विचार नहीं किया गया है। आज यह स्‍पष्‍ट है कि ऊर्जा की उपलब्‍धता और उन देशों के लिए खाद्यान जो विश्‍व की कुल आबादी का 40 प्रतिशत है, जैसी मजबूरियां अड़चन डाल सकती हैं। पानी भी कमी का एक महत्‍वपूर्ण क्षेत्र है, जिसकी तरफ पहले से अधिक ध्‍यान दिये जाने की जरूरत है। हमें एक दूसरे से यह सीखना होगा कि इन समस्‍याओं का कैसे हल निकाला जा सकता है और यह भी कि अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर सहयोग कायम करने की जरूरत है।
तीसरा, हम स्‍थायी और संतुलित वैश्विक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की अपनी इच्‍छा के प्रति एकजुट है। जी-20 के सदस्‍य के रूप में, हमें मिलकर सुनिश्चित करना होगा कि यूरोप खुद की मदद कर सके, इसके लिए कुछ उचित समाधान निकालने और फिर से वैश्विक विकास के लिए नीतिगत समन्‍वय कायम करने की जरूरत है। हमें दोहा दौर में जान डालने के लिए सहयोग करना चाहिए, उन बाधाओं को दूर करना चाहिए जिनसे बातचीत की प्रगति में रूकावट आई है। चौथा, विशाल और विविध अर्थव्‍यवस्‍थाओं के रूप में हमें अंतर-ब्रिक्‍स संपूरक का काम में लाने के तरीकों का पता लगाने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। हमें अपने व्‍यावसायिक समुदायों के बीच अधिक बातचीत को बढ़ावा देना होगा। आसानी से बिजनेस वीजा देने के मुद्दे को प्राथमिकता देनी होगी। विशाल व्‍यापार देशों के रूप में, ब्रिक्‍स की व्‍यापार और निवेश प्रवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करने और संरक्षणवादी उपायों से बचने में काफी दिलचस्‍पी है।
पांचवां, वैश्विक मांग और वृद्धि को फिर से चालू करने के लिए, खासतौर से बुनियादी ढांचे के विकास के लिए, विकासशील देशों की पूंजी तक पहुंच जरूरी है। हमें विश्‍व बैंक और अन्‍य बहुउद्देशीय विकास बैंकों के पूंजी आधार के विस्‍तार के महत्‍वपूर्ण मुद्दे को हल करना चाहिए, ताकि ये संस्‍थान वित्‍तीय बुनियादी ढांचे के विकास में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकें। हम ब्रिक्स के नेतृत्‍व वाले दक्षिण-दक्षिण विकास बैंक की स्‍थापना के एक प्रस्‍ताव पर विस्‍तार से जांचने पर सहमत हो गए हैं। इसके लिए धन और प्रबंध ब्रिक्‍स और अन्‍य विकासशील देश करेंगे। छठा, ब्रिक्‍स देशों को वैश्विक शासन में कमियों को दूर करने के लिए मिलकर कार्य करना चाहिए। छह दशक से भी ज्‍यादा समय पहले गठित राजनीतिक और आर्थिक शासन के वैश्विक संस्‍थानों ने बदलते विश्‍व के साथ अपनी चाल नहीं बदली, जबकि अंतरराष्‍ट्रीय वित्‍तीय संस्‍थानों ने कुछ प्रगति की है, लेकिन राजनीतिक पक्ष में कुछ कमियां हैं। ब्रिक्‍स को महत्‍वपूर्ण मुद्दों जैसे सुंयुक्‍त राष्‍ट्र परिषद में सुधार पर एक आवाज से बात करनी चाहिए। सातवां, प्रत्‍येक देश वर्तमान जरूरतों से समझौता किये बिना ‘हरित’ विकास के रास्‍ते पर चलने के लिए जूझ रहा है। इस जटिल मुद्दे में सबसे महत्‍वपूर्ण मुद्दा जीवाश्म ऊर्जा का इस्‍तेमाल और उसके पर्यावरण पर प्रभाव से जुड़ा है।
उन्होंने कहा कि हमें ऊर्जा कुशलता को बढ़ावा देकर और स्‍वच्‍छ ऊर्जा स्रोत विकसित करके जीडीपी की ऊर्जा प्रबलता को कम करना चाहिए। इसके लिए अनुसंधान और विकास में अधिक निवेश, सर्वश्रेष्‍ठ तरीकों को बांटने और प्रौद्योगिकी के हस्‍तांतरण को बढ़ावा देने की जरूरत है। ऊर्जा बाजार में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए ऊर्जा उत्‍पादकों और उपभोक्‍ताओं के बीच बातचीत से भी मदद मिलेगी। आठवां, जैसाकि हमारे देश ने प्रति व्‍यक्ति आय में महत्‍वपूर्ण बढ़ोतरी अनुभव की है, हमें अपने देशों में आमदनी में असमानता से संबंधित मुद्दों का भी सामना करना पड़ेगा। नि:संदेह हम समस्‍या से अलग-अलग तरीके से निपटेंगे, लेकिन यह हमारे लिए उपयोगी होगा कि हम इस क्षेत्र में अनुभवों को बांटे। नौवां, शहरीकरण ने हम सभी देशों के लिए एक जैसी चुनौतियां खड़ी की हैं। हमें शहरों में पानी की आपूर्ति और स्‍वच्‍छता, अपशिष्‍ट प्रबंधन, पानी की निकासी, शहरी योजना, शहरी परिवहन और ऊर्जा कुशल इमारतों जैसे क्षेत्रों में अनुभवों के आदान-प्रदान को प्रोत्‍साहन देना चाहिए। अंत में ब्रिक्‍स की लगातार समृद्धि, भू राजनैतिक माहौल से जुड़ी हुई है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अपने सीमित सत्र में, हमने पश्चिम एशिया में जारी उथल-पुथल पर चर्चा की और संकट के शांतिपूर्ण समाधान के लिए मिलकर कार्य करने पर सहमत हुए। हमें ऐसे राजनैतिक बवालों से बचना चाहिए जो वैश्विक ऊर्जा बाजार में उतार-चढ़ाव पैदा करते हैं और व्‍यापार के प्रवाह को प्रभावित करते हैं। हम सभी हमारे समाज में मौजूद आतंकवाद के खतरे को समझते हैं, इसलिए हमें आतंकवाद और अन्‍य बढ़ते खतरों जैसे समुद्री डकैती, खासतौर से सोमालिया से होने वाली इस तरह की घटनाओं के खिलाफ सहयोग को बढ़ावा देने चाहिए। हमने अफगानिस्‍तान में स्थिरता बहाल करने और उसके भविष्‍य के लिए अंतरराष्‍ट्रीय प्रतिबद्धता के महत्‍व पर भी सहमति व्‍यक्‍त की। हमने एक महत्‍वकांक्षी कार्य योजना तैयार की है, जिसे ब्रिक्‍स दिल्ली घोषणा पत्र के साथ स्‍वीकार किया जाएगा। उम्‍मीद है कि हम वैश्विक विकास को आकार देने और हमारी जनता को वास्‍तविक लाभ देने के लिए एक दूसरे के साथ सहयोग करने में सक्षम होंगे। भारत ब्रिक्‍स के साथ काम करने के लिए पूरी प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त करता है।

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