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शिकायत करें, सुझाव भी दें !

शिवानंद

उत्तर भारत के पर्वतीय पर्यटन स्थल पर वह हमारे चिरप्रतीक्षित अवकाश का पहला दिन था। तिपहरिया भर अपनी पत्नी और बेटी के साथ ठंडी पहाड़ी हवा में टहलने के बाद मैं थका हुआ, परन्तु प्रसन्नचित, होटल में लौटा तभी टेलीफोन की घंटी बजी। ‘आप से स्थानीय रमणीक स्थलों की यात्रा के बारे में पूछना था,’ स्वागत कक्ष से आवाज आई और फिर कुछ दर्शनीय स्थलों के नाम गिनाए गए। ‘क्या आप इन जगहों पर कल जाना चाहेंगे?’
‘जरूर,’ मैंने कहा।
‘क्या मैं टैक्सी का प्रबंध कर दूं?’ उस आदमी ने पूछा, ‘इस में 650 रुपए लगेंगे।’
‘क्या?’ मैंने प्रतिरोध किया। ‘मुंबई में मैंने जब छुट्टियों का पूरा कार्यक्रम निश्चित कराया था तो यही कहा गया था कि घूमने फिरने का कोई अतिरिक्त खर्च नहीं लगेगा। आप का विज्ञापन भी मेरे पास पड़ा है। इस में इन दर्शनीय स्थलों की सैर मुफ्त लिखी हुई है।’
‘महोदय, क्या हम उसे देख सकते हैं?’
मै विज्ञापन के साथ नीचे गया। पर कोई लाभ नहीं हुआ। ‘विज्ञापन एजेंसी ने गलती कर दी होगी,’ प्रबंधक ने मुझ से आगे कहा-‘इस योजना के तहत 200 पर्यटक आ चुके हैं पर यह बताने वाले आप पहले आदमी हैं। हम स्पष्टीकरण के लिए अपने मुंबई दफ्तर को ई-मेल संदेश भेज रहे हैं।’ लेकिन कोई जवाब नहीं आया और अगले दिन मुझे प्राइवेट टेक्सी के 650 रुपये भरने ही पड़े।
पर हद हो चुकी थी। घर लौट कर सबसे पहले मैंने होटल की कंपनी के अध्यक्ष के नाम शिकायती पत्र लिखा। जानते हैं? तीन हफ्ते बाद मुझे कंपनी के विपणन उपाध्यक्ष का माफीनामा और 650 रुपए का चेक मिला। इसके साथ कंपनी के किसी भी अन्य होटल में तीन दिन मुफ्त बिताने की पेशकश भी थी।
वर्षों से मैंने किताबों के प्रकाशकों से लेकर घरेलू सामान और वस्त्र निर्माता कंपनियों को अनेक शिकायती पत्र लिखे हैं। मैंने रेस्तराओं और विमान सेवाओं की खराब सेवाओं की भी शिकायत की है और मुझे निश्चित रूप से 95 प्रतिशत मामलों में जवाब मिला और मेरी शिकायत पर ध्यान दिया गया।
पर दुर्भाग्य से हम में से अधिकांश लोग मेरी तरह हर खराब सामान या सेवा की शिकायत नहीं करते। अक्सर लोग उलझने से डरते हैं। इसलिए वे लोग फायदा ही क्या है, वाला नजरिया अपनाते हैं। पर ढंग से लिखा एक पत्र ही अनेक समस्याएं सुलझा सकता है।
मेरी शिकायती चिट्ठियों से मुझे सिर्फ भावनात्मक और वित्तीय पारितोषिक ही नहीं मिले हैं। ये उत्पादों में बढ़ोतरी और बेहतर सेवा मिलने में सहायक सिद्ध हुए हैं। जैसे मैंने अपने गुसलखाने के फ्लश की टंकी पर लिखी गयी हिदायतों में प्रमुख गलती की ओर कंपनी का ध्यान दिलाया तो वहां से धन्यवाद की चिट्ठी आई और आगे से इस गलती को सुधार लिया गया।
इन सुझावों के अनुसार शिकायती पत्र लिखकर आप भी लाभ उठा सकते और संतोष का अनुभव कर सकते हैं। सावधानी यह रखनी है
कि शिकायत के कारण ठोस हों। अपनी गलती से हुई गड़बड़ को लेकर कंपनी के पास मत जाइए। यह देख लीजिए कि आप ने निर्देशों का पालन किया और आप की अपेक्षाएं तर्कसंगत भी हैं या नहीं।
सभी पुरजे और जरूरी कागजात संभालकर रखिए। शिकायत के साथ माडल का सीरियल नंबर और वारंटी तथा रसीद की प्रतियां लगाने से लाभ होता है। टूटे सामान का कोई हिस्सा न फेंकिए। कंपनी देखने के लिए उसे मांग सकती है। विशेष सुविधाओं का वायदा करने वाले विज्ञापनों को भी संभाल कर रखिए।
रियायती दर पर खरीदी चीजों की शिकायत भी कीजिए। एक बार पुरुषों की एक नामी परिधान कंपनी के रियायती बिक्री आयोजन से मैं मोजे ले आया। घर आकर मुझे पता चला कि दो जोड़े बेमेल थे। वैसे रसीद में लिखा था कि बिके माल की वापसी या अदला बदली नहीं होगी, पर मैंने इन दोनों जोड़ों को एक लिफाफे में भरा और एक चिट्ठी के साथ कंपनी के क्षेत्रीय विपणन प्रबंधक के पास भेज दिया। ‘दो जोड़े मोजे की शिकायत अजीब लग सकती है,’ मैंने लिखा। ‘फिर भी अगर कोई चीज बेचने के लिए रखी गयी है तो उसे कम से कम उपयोग लायक तो होना ही चाहिए।’ मैंने यह भी लिखा, ‘इस शिकायत के अलावा यह आयोजन शानदार था’ कुछ दिनों बाद कंपनी का एक प्रतिनिधि आया और मुझे दो जोड़े अच्छे मोजे दे गया।
अपना पत्र साफ लिखें टाइप किए पत्र से अच्छा प्रभाव पड़ता है, पर आप अगर हाथ से भी पत्र लिख रहे हों , तो इतना साफ लिखें कि सब कुछ आसानी से पढ़ा जा सके। साफ-सुथरे पत्र से अनुकूल जवाब मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
सक्षम अधिकारी को ही पत्र लिखें। आप किसी प्रमुख कंपनी को पत्र लिख रहे हैं तो फोन करके संबंधित अधिकारी के नाम के सही हिज्जे और पता पूछ लीजिए। इसके लिए चैंबर्स ऑफ कामर्स या स्थानीय व्यापारी और औद्योगिक संगठनों के दफ्तरों से भी नाम पते की जानकारी जुटाई जा सकती है।
आप को अपनी छोटी शिकायत के लिए कंपनी के सबसे बड़े अधिकारी को पत्र लिखने की जरूरत नहीं है। उनसे नीचे स्तर का कोई अधिकारी ही शिकायत का उचित और शीघ्र निवारण कर सकता है। खास तौर से तब, जब आप उसकी चिट्ठी में यह भी संकेत दें कि इस की प्रति कंपनी के प्रमुख को भी भेजी जा रही है। मैंने यह शिकायत की कि कला संबंधी किताबों का जो सेट मैंने खरीदा था वह गंदा है तो स्थानीय बिक्री प्रबंधक ने मुझे कुछ रुपये की रियायत दे दी। लेकिन उदाहरण के रूप में अगर खिलौने से बच्चे की सुरक्षा को खतरा है, तो सीधे सब से बड़े अधिकारी को लिखिए।
सौहार्द बढ़ाइए। आप पुराने ग्राहक हैं और यह तथ्य लिखते हैं तो आप की शिकायत पर तत्काल ध्यान दिया जाएगा। आप ने किसी कंपनी का माल अभी तक नहीं लिया था तो यह भी बताइए कि इस बार आप ने क्यों उसका माल खरीदा शिकायत पाने वाला यह पढ़ेगा कि आप उसकी कंपनी की ख्याति से प्रभावित हुए हैं तो वह आप की शिकायत को अन्यथा नहीं लेगा।
आप जब गुस्सा हों, तब पत्र कभी मत लिखिए। दिमाग ठंडा हो तब यह मानकर पत्र लिखिए कि पत्र पाने वाला आप की मदद के लिए तत्पर है।
समस्या को संक्षेप में लिखें। आप की शिकायत के लिए कुछेक पैरा काफी है। अगर समस्या सेवाओं के बारे में है तो जगह तारीख और संबंधित कर्मचारी का नाम जरूर लिखें। अगर सामान से शिकायत है तो सारी जरूरी जानकारियां दें।
पत्र का अंत सकारात्मक रखें। लिखिए कि आप इसी उम्मीद से पत्र लिख रहे हैं कि आप की समस्या जल्दी ही सुलझा जाएगी जिससे कंपनी पर आप का भरोसा बरकरार रहेगा। जानकारियों की जरूरत के लिए अपना फोन नंबर भी लिख भेजिए।
शिकायत की कापी रखिए। चार से छह हफ्तों के भीतर जवाब न आए तो इस टिप्पणी के साथ पत्र की प्रतिलिपि भेजिए कि जवाब न पाकर आप को निराशा हुई है आप ने पहली बार प्रबंधक निदेशक को नहीं लिखा है तो दूसरी चिट्ठी उसके पास भी भेजिए।
हार न मानिए। मगर आप को अभी भी जवाब नहीं मिलता है या आप जवाब से संतुष्ट नहीं है तो अपने जिले की उपभोक्ता अदालत में जाइए। आप अखबार पत्रिकाओं के शिकायत वाले स्तंभ में भी लिख सकते हैं। कोई भी कंपनी अपनी बदनामी नहीं चाहती। काम हो जाने पर धन्यवाद दें आप की इस औपचारिकता से कंपनी को दूसरे ग्राहकों की शिकायत पर भी गौर करने की प्रेरणा मिलेगी।

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