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नई दिल्ली। ग्रीनपीस ने भारत के कार्बन उत्सर्जन तीव्रता में कटौती की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा है कि ऐसा करके भारत विकसित राष्ट्रों से कहीं आगे आ चुका है। भारत की ओर से वर्ष 2020 तक कार्बन उत्सर्जन तीव्रता में 24 प्रतिशत कटौती का साफ मतलब है कि भारत में प्रतिदिन के रोजगार या बिजनेस ऐज यूजवल के कार्बन उत्सेर्जन के स्तर में वर्ष2020 तक 25 प्रतिशत कमी आएगी। उसकी यह पहल उसे इंटरनेशल पैनल आन क्लाइमेट चेंज से विकासशील देशों के लिए प्रस्तावित 15-30 प्रतिशत कटौती की ऊपरी सीढ़ी में रखती है।
ग्रीनपीस की क्लाइमेट कैंपेनर विनुता गोपाल ने कहा कि 'यह एक अच्छी पहल है। भारत सरकार की वर्ष 2030 तक के लिए कटौती की योजना से साफ जाहिर है कि यह उसकी कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दूरदर्शिता का परिचायक है। गौरतलब है कि कार्बन उत्सर्जन तीव्रता का मतलब है एक यूनिट जीडीपी या सकल घरेलू उत्पाद से उत्सर्जित कार्बन-डाई-आक्साइड की मात्रा। ग्रीनपीस के अनुसार इस कटौती की घोषणा से भारत में दैनिक क्रियाकलापों से कार्बन उत्सर्जन में 20-30 प्रतिशत कमी आएगी।
यह कोपेनहेगन में भारत को अग्रणी राजनैतिक नेतृत्व देगा जिससे विकसित देशों के ओबामा, मार्केल, ब्राउन, सरकोजी पर कटौती के लिए दबाव बनाने का मार्ग प्रशस्त होगा। अगर ये नेता राजी हो तो कोपेनहेगन में एक कानूनी बाध्यता वाला समझौता हो सकता है और दुनिया एक नए कोपेनहेगन प्रोटोकाल की तरफ आगे बढ़ेगी। अभी सब देशों की प्रस्तावित कटौती मात्र 17 से 18 प्रतिशत है, जिसे बढ़ाकर 30-40 प्रतिशत तक किए जाने की जरूरत है। विनुता गोपाल ने कहा कि लक्ष्य 8 के साथ भारत को अन्य देशों को अपनी उत्सर्जन पीक में 2015 तक कटौती और वर्ष 2020 और 2050 तक गहरी कटौती के लक्ष्य तक की चुनौती देनी चाहिए, ताकि ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस पर रोका जा सके।