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नई दिल्ली। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सोमवार को भारत-अमरीका संयुक्त स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान और विकास केंद्र (जेसीईआरडीसी) के तहत तीन संघ परियोजनाओं के चयन की घोषणा की। जेसीईआरडीसी की स्थापना भारत सरकार और संयुक्त राज्य अमरीका के बीच हुए समझौते के तहत हुई, जिसमें भारत सरकार देश में पांच वर्षों तक 125 करोड़ रुपये (25 मिलियन डॉलर) निधिबद्ध करने का वायदा किया गया है, साथ ही बराबर राशि का अनुदान अमरीका ऊर्जा विभाग के संयुक्त राज्य में आधुनिक जैव ईंधन, इमारतों में ऊर्जा क्षमता और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में संयुक्त अनुसंधान के लिए मुहैया कराए गए हैं, इसके अतिरिक्त भारत और अमरीकी संघ के भागीदारों ने इसके लिए अनुदान मुहैया कराने का वायदा भी किया।
भारत में भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलौर, भारतीय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान हैदराबाद और सीईपीटी विश्वविद्यालय अहमदाबाद के नेतृत्व में ये संघ मिलकर भारत और अमरीका से राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, विश्वविद्यालयों और उद्योगों से विशेषज्ञों को बुलाएगा, जिससे उनकी विशेषज्ञता से संसाधनों के उत्तोलन, स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी की बढ़ती संभावनाओं का आरंभ हो जिससे ऊर्जा का कम उपयोग, जैव ईंधन पर निर्भरता में कमी और अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा मिले सके। भारत की तीन प्रमुख संस्थाओं ने अमरीका की तीन प्रमुख संस्थाओं यथा राष्ट्रीय नवीनकरणीय ऊर्जा प्रयोगशाला एनआरईएल, फ्लोरिडा विश्वविद्यालय और लॉरेंस बरक्ले राष्ट्रीय प्रयोगशाला (एलबीएनएल) के साथ भागीदारी की है। यह कार्यक्रम भारत में भारत-अमरीकी द्विपक्षीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंच और अमरीका में ऊर्जा विभाग से प्रशासित किया जाएगा।
संयुक्त स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान और विकास केंद्र उस भारत-अमरीका भागीदारी का हिस्सा है, जिसकी घोषणा नवंबर 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति बराक ओबामा ने स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए की थी। इसका उद्देश्य उच्च प्रदर्शन, निम्न उत्सर्जन और कम लागत पर ऊर्जा को बढ़ावा देना है। विश्व की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के रूप में भारत और अमरीका की वैश्विक ऊर्जा एवं पर्यावरणीय स्थायित्व की चुनौतियों का समाधान करने में विशेष भूमिका है।