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देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा है कि पर्यावरण व अन्य तकनीकी स्वीकृतियों के बाद जलविद्युत परियोजनाओं को रोका जाना राज्यहित में नहीं होगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आयोजित राष्ट्रीय गंगा रिवर बेसिन प्राधिकरण की बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के विकास के लिए ऊर्जा परियोजनाएं बहुत जरूरी हैं। राज्य की आर्थिकी को सुधारने में पनबिजली परियोजनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है।
उन्होंने कहा कि हमारे लिए गंगा पूजनीय है, उत्तराखंड का जनजीवन हमेशा से ही पर्यावरण से जुड़ा रहा है। राष्ट्र हित में पर्यावरण संरक्षण के लिए उत्तराखंड ने सदैव ही अपने हितों की बलि दी है, परंतु उत्तराखंड व यहां के लोगों के उच्च जीवन स्तर व विकास के अधिकार की अवहेलना नहीं की जा सकती है, पूर्व में अनेक जलविद्युत परियोजनाओं को रोक दिया गया, हालांकि लगभग पूरी हो चुकी इन परियोजनाओं पर पर्यावरण संबंधी स्वीकृति मिल चुकी थी, बिना समुचित आधार के रोकी गई इन परियोजनाओं को पुनः प्रारंभ किया जाए।
मुख्यमंत्री ने प्राधिकरण को अवगत कराया कि प्रदेश की कैबिनेट ने जलविद्युत परियोजनाओं के समर्थन में एक प्रस्ताव पारित किया है। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड के सांसदों व राज्य के विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों ने भी एक राय से गंगा की पवित्रता को बरकरार रखते हुए राज्य विकास के लिए जलविद्युत परियोजनाओं की स्थापना को आवश्यक बताया है। बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी भी मौजूद थे। मुख्यमंत्री ने बताया कि किसी कारणवश बैठक में नहीं आ पाए भाजपा के सांसद तरूण विजय ने भी फोन पर अपनी सहमति व्यक्त की है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि नदियों की अविरलता, निरंतर प्रवाह व जनजीवन के लिए पानी का कितना डिस्चार्ज हो, इसका निर्णय विशेषज्ञों से कराया जा सकता है, इसके लिए गंगा बेसिन प्राधिकरण अपनी एजेंसी के माध्यम से मानिटरिंग कर सकता है। धार्मिक अवसरों पर अधिक जल की आवश्यकता होने पर कुछ समय के लिए बिजली का उत्पादन रोका जा सकता है, परंतु लगभग पूरी हो चुकी परियोजनाओं को हमेशा के लिए रोकना राज्य हित में नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को देखते हुए ऊर्जा के अन्य स्त्रोंतों की अपेक्षा जलविद्युत, पर्यावरण के अधिक अनुकूल है। भागीरथी पर पूर्व में रोकी गई परियोजनाओं लोहारी नागपाला, पाला मनेरी व भैंरोघाटी को पुनः प्रारंभ किया जाए, कोई भी क्षतिपूर्ति संभावित बिजली उत्पादन के एवज में पर्याप्त नहीं होगी।
मुख्यमंत्री ने गौमुख से उत्तरकाशी तक 135 किलोमीटर के क्षेत्र को इको-सेंसिटिव घोषित किए जाने पर आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान नियम, क्षेत्र में विकास कार्यों को नियमित करने के लिए पर्याप्त हैं। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में 118 गांवों में एक लाख से अधिक जनसंख्या रहती है, जिसे उनके हक से वंचित नहीं किया जा सकता। राज्य विधानसभा ने भी गौमुख से उत्तरकाशी तक इको-सेंसिटिव क्षेत्र घोषित करने के विरोध में 29 मार्च 2011 को सर्वसम्मति से संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था।
विजय बहुगुणा ने कहा कि राज्य की वित्तीय स्थिति को देखते हुए राष्ट्रीय गंगा रिवर बेसिन प्राधिकरण की परियोजनाओं में पूंजीगत व चालू व्यय में केंद्र व राज्यों के अंश को 70 अनुपात 30 की बजाए 90 अनुपात 10 के अनुपात में किया जाए, साथ ही चालू व रखरखाव के व्यय के लिए सहायता अवधि को भी 5 वर्ष से बढ़ाकर 15 वर्ष किया जाए। मुख्यमंत्री ने गंगा नदी क्षेत्र में खनन पर पूरी तरह से प्रतिबंध के संबंध में कहा कि गंगा नदी में पूरे राज्य के अवसाद का केवल 4 प्रतिशत ही ढोया जाता है। राज्य में नदियों में पर्यावरणीय स्वीकृति के बाद केवल चुगान कार्य किया जाता है। इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने से निर्माण कार्यों की लागत में तो बढ़ोतरी होगी ही साथ ही बड़ी संख्या में रोजगार भी प्रभावित होगा। मुख्यमंत्री ने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया कि नदियों के तल से चुगान न होने पर साल दर साल नदियों की गहराई कम होती जाएगी जिससे ऋषिकेश व हरिद्वार में बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा।