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लखनऊ। बच्चों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के स्वास्थ्य, उनकी पीड़ा, आवाज़ और जज़्बात को जन-जन तक पहुंचाने का काम कर रही मीडिया नेस्ट ने अपना एक वर्ष पूरा कर लिया। इसे आगे बढ़ाते हुए ?बच्चों के लिए मीडिया? का प्रथम वार्षिकोत्सव में यूपी प्रेस क्लब में हुआ जिसमे यूनीसेफ की उत्तर प्रदेश की राज्य प्रतिनिधि एडेल खुर्द, बीबीसी के संतोष जैकब, प्रेस क्लब आफ इण्डिया नई दिल्ली के सचिव पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ और यूनीसेफ के अगस्टीन वेलिएश ने भाग लिया। इनके अलावा इस कार्यक्रम में विख्यात समाजसेवियों, सामाजिक कार्य सहयोगियों, पत्रकारों और एनजीओ के रूप में काम कर रही संस्थाओं के संचालकों ने भाग लिया।
मीडिया नेस्ट की महामंत्री कुलसुम तल्हा ने बताया कि इस कार्यक्रम के माध्यम से उत्तर प्रदेश के दबे- कुचले, गरीब, बेसहारा और समाज के उपेक्षित बच्चों की समस्याओं को जानने और उनके निराकरण का प्रयास किया जाता है। उन्होंने बताया कि यूनीसेफ के सहयोग से नवम्बर 2008 से अब तक 23 कार्यक्रमों में एड्स/एचआईवी, बाल-संसद, स्तनपान के गुण-दोष, बाल-हिंसा ,मीडिया हब की जरुरत, यूनीसेफ पुरस्कारों की घोषणा, एड्स/एचआईवी प्रभावित बच्चें, बाल पोषण, सामुदायिक रेडियों, नारी अदालत और शिशु मृत्यु दर पर कार्यक्रम आयोजित किए गये हैं।
कुलसुम ने बताया कि पत्रकारों और उनके परिजनों के कल्याण के लिए समर्पित मीडिया नेस्ट के मुख्य संरक्षक वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर हैं जबकि उसके अन्य संरक्षक हैं-लखनऊ हिन्दी दैनिक हिंदुस्तान समाचार पत्र के स्थानीय सम्पादक नवीन जोशी, बीबीसी के राज्य प्रतिनिधि राम दत्त त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार केके नायर और शरत प्रधान। इस कार्यक्रम की शुरुआत बाल दिवस की पूर्व संध्या पर महिलाओं के स्वास्थ्य और बेटा-बेटी में फर्क दूर करने का काम करने वाले एनजीओ ?सहयोग? से की गई। इस अवसर पर सहयोग की डा-नीलम सिंह और रुप रेखा वर्मा ने युवा नीति बनाने की मांग उठाई।
वक्ताओं ने कहा कि किसी भी देश का विकास उस देश के बच्चे के भविष्य पर टिका है और अब वह समय आ गया है कि बच्चों के भविष्य के बारे में शुरू से ही और सभी को सोचना होगा। उनकी शिक्षा, बाल विवाह, स्वास्थ्य, पोषण आदि पर सरकार, स्वयं सेवी संगठनों और परिवारजनों को जागरुक होने की जरुरत है। मीडिया इसमें प्रमुख भूमिका निभा सकता है बशर्ते उनमें बच्चों के प्रति संवेदनशीलता हो।
यूनीसेफ की उत्तर प्रदेश की राज्य प्रतिनिधि एडेल खुर्द ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों को अभी और आगे बढ़ाना है। गरीब, निर्धन, मजलूम, बेहारा, अनाथ और समाज से तिरस्कृत बच्चों के सम्बन्ध में अध्ययन करके उनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि इन बच्चों को दया की जरुरत नही है बल्कि उनसे प्यार करने की जरुरत है। हिन्दुस्तान दैनिक के सम्पादक नवीन जोशी ने कहा कि बच्चों का मुद्दा एक बड़ा मुद्दा है इसे बातो में टरकाया नहीं जा सकता है, लेकिन आज कल के समाचार पत्र टीआरपी और सरकुलेशन पर ज्यादा ध्यान देते हैं। मीडिया नेस्ट की महामंत्री कुलसुम तल्हा ने कहा कि यूनीसेफ के सहयोग से नवम्बर 2008 से अब तक 24 कार्यक्रम आयोजित किए गये है। कार्यक्रम की शुरुआत बाल दिवस की पूर्व संध्या पर महिलाओं के स्वास्थ्य और बेटा-बेटी में फर्क दूर करने का काम करने वाले एनजीओ ? सहयोग? से हुई।