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नई दिल्ली। पर्यटन मंत्री सुबोध कांत सहाय ने कहा है कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र, समुदाय आधारित पर्यटन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां आबादी और समाज बहुत संवेदनशील हैं। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में पांच सितारा पर्यटन या सामूहिक पर्यटन उपयुक्त नहीं होगा, क्योंकि इससे इस क्षेत्र की आबादी और सामाज को खतरा पैदा हो सकता है। सहाय ने यह बात खाद्य एवं उपभोक्त कार्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव डॉ डीके भल्ला, आईएस की लिखित ‘सस्टेनेबल टूरिज्म डेवलेपमेंट ऑफ नगालैंड’ और ‘टूरिज्म पोटेनशल ऑफ नॉर्थ-ईस्ट’ विषयक दो पुस्तकों को जारी करने के दौरान कही।
सुबोध कांत सहाय ने कहा कि पहले अधिकतर देशों में पर्यटन के बारे में यह धारणा थी, जिसमें इस बात पर ध्यान कम दिया जाता था कि प्राकृतिक वातावरण पर उसका क्या प्रभाव पड़ रहा है और पर्यटन से वहां के समुदाय के गरीब वर्गों को कितना लाभ मिल रहा है। उन्होंने कहा कि पर्यटकों में यह जाग्रति पैदा हो रही है कि यदि स्थानीय लोगों के प्रति समावेशी दृष्टि नहीं रखी गई तो पर्यटन को नुकसान पहुंच सकता है। पर्यटन मंत्री ने कहा कि यदि पर्यटन में होने वाली वृद्धि को बुद्धिमानी के साथ संभाला जाए तो उसका इस्तेमाल गरीबी हटाने और विकास कार्य को बढ़ावा देने में हो सकता है। उन्होंने कहा कि ‘इस पृष्ठ भूमि में लेखक डॉ डीके भल्ला की लिखी दोनों पुस्तकें बहुत प्रासंगिक हैं।’
पर्यटन मंत्री ने कहा कि वे लेखक के इस विचार से पूरी तरह सहमत हैं कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र बिल्कुल अलग दुनिया है, जहां जादुई सुंदरता और विविधता मौजूद है। उन्होंने कहा कि यह मिथकों और रहस्यों, लोक कथाओं और किम्वदंतियों तथा सपनों की भूमि है। यह क्षेत्र बहुत अनोखा है, क्योंकि यहां पर 150 से अधिक जन-जातियां रहती हैं, जो कई तरह की भाषाएं बोलती हैं। यह विश्व में एक मात्र स्थान है, जहां नवपाषाण युग की पुरानी संस्कृति आधुनिक जीवन के साथ मौजूद है। यह यात्रियों के लिए स्वर्ग है।‘
सुबोध कांत सहाय ने कहा कि डॉ भल्ला ने न केवल पूर्वोत्तर में स्थित पर्यटन की क्षमताओं और आवश्यकता पर प्रकाश डाला है, बल्कि उसे बनाये रखने के विचार की भी चर्चा की है। उन्होंने कहा कि डॉ भल्ला ने क्षेत्र के विकास का विवरण भी प्रस्तुत किया है और उन्होंने अपने गृह राज्य नगालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर के विकास की रणनीति का ब्यौरा भी अपनी पुस्तकों में दिया है। पर्यटन मंत्री ने उम्मीद जाहिर की कि पाठक, पर्यटक, पर्यटन सेवा प्रदाता और पर्यटन से जुड़े अनुसंधान संस्थान भी उनके विचारों से लाभ उठाएंगे। पर्यटन विकास की आवश्यकता सब महसूस करते हैं, लेकिन इस पर अमल कम हो पाता है। इसी बिंदु पर लेखक ने अपनी पुस्तकों में चर्चा की है।
लेखक ने आमतौर पर पूर्वोत्तर और खासतौर से नगालैंड में पर्यटन विकास की क्षमताओं और उसके बिंदुओं की चर्चा की है। उन्होंने न केवल सतत पर्यटन की अवधारणा पर विचार किया है, बल्कि क्षेत्र के सतत विकास की बात भी की है। लेखक की दूसरी पुस्तक में पूर्वोत्तर भारत में पर्यटन की क्षमता पर विचार किया गया है। यह पुस्तक बिना जिल्द की है। पूर्वोत्तर की संस्कृति, इतिहास और सामाजिक विकास की संभावनाओं के अलावा लेखक ने समुदाय आधारित पर्यटन, नीति आयोजना और क्षेत्र के विकास पर चर्चा की है। इन राज्यों के पारिस्थितिकीय और सतत पर्यटन विकास में गगनचुंबी पर्वतों, बलखाती नदियों, गहरी घाटियों, वन्य पशुओं, वनस्पतियों, रिवर-रैफ्टिंग, हाईकिंग आदि शामिल हैं। इन पर्यटन यात्राओं में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का पूरा ध्यान रखा जाता है।