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सौमित्र चटर्जी को फाल्‍के, विद्या सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री

उपराष्ट्रपति ने उनसठवें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार प्रदान किए

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फाल्‍के पुरस्‍कार-phalke award

नई दिल्ली। उपराष्‍ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा कि जिन फिल्‍मों और कलाकारों को पुरस्‍कार प्राप्‍त हुए हैं, उससे य‍ह साबित होता है कि भारतीय सिनेमा न तो फार्मूलाबद्ध है और न एक ही लीक पर चलने वाला है। उनसठवें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार और दादा साहेब फाल्‍के पुरस्‍कार 2011 प्रदान करते हुए उन्‍होंने कहा कि भारतीय सिनेमा ने पारंपरिक भारतीय किस्‍सागोई और कहानी कहने की कला को अपनाया है। इस तरह भारतीय सिनेमा ने उपरोक्‍त कलाओं को आत्‍मसात करते हुए नये माध्‍यम की प्रौद्योगिकी और प्रारूप का प्रयोग किया है। अंसारी ने कहा कि वैश्वीकरण का प्रभाव फिल्‍म उद्योग पर पड़ा है, आज भारत की प्रतिभाएं राष्‍ट्रीय सीमाओं में बंधी हुई नहीं हैं, भारत की फिल्‍मों को आज नए दर्शक भी मिल रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि विदेशी सरकारें और पर्यटक संगठन भारतीय फिल्‍म निर्माताओं को अपने देश में फिल्‍मों की शूटिंग करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।
उपराष्‍ट्रपति ने चिंता व्‍यक्‍‍त की कि भारतीय फीचर फिल्‍मों को एक भाषा से दूसरी भाषा में रूपांतरित करने के काम में वृद्धि नहीं हो रही है। उन्‍होंने कहा कि सभी क्षेत्रीय भाषाओं में बनी फिल्‍मों को डबिंग और सब-टाईटलिंग के जरिए राष्‍ट्रीय पटल पर लाने की आवश्‍यकता है। उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि एक समाज शास्‍त्री ने बिल्‍कुल सही तर्क दिया था कि लोकप्रिय संस्‍कृति ही वह स्‍थान है, जहां सामूहिक, सामाजिक समझ पैदा होती है। हमारी फिल्‍में इसमें विशेष भूमिका निभाती हैं, खासतौर से भाषाई और क्षेत्रीय विविधताओं का प्रदर्शन करके। उन्होंने कहा कि वार्षिक राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार हमारे सांस्‍कृतिक कैलेंडर का एक अहम आयोजन हैं जिसकी सबको उत्‍सुकता से प्रतीक्षा रहती है, इसलिए 59वें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार के आयोजन में सम्मिलित होने पर मुझे बहुत खुशी हो रही है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि कई वर्षों में इन पुरस्‍कारों ने उत्‍कृष्‍टता की पहचान कराई है और नई तथा अनजानी प्रतिभा को राष्‍ट्रीय तथा अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर सामने ला दिया है और उन्‍हें पहचान और प्रसिद्धि के साथ साथ उनका उत्‍साह भी बढ़ाया है, यह हमें वार्षिक तौर पर भारतीय सिनेमा के जनक ढुंढीराज गोविंद फाल्‍के को नमन करने और उन्‍हें श्रद्धांजलि देने का भी अवसर प्रदान करता है। दादा साहेब फाल्‍के पुरस्‍कार विजेता भारतीय सिनेमा के ख्‍याति प्राप्‍त लोगों में शामिल हो जाते हैं। यह सम्‍मानित पुरस्‍कार इस बार बांग्‍ला फिल्‍मों और थिएटर के जाने माने अभिनेता सौमित्र चटर्जी को प्रदान किया गया है। सत्‍यजीत रे के साथ उनका संबंध सिनेमा के इतिहास में निर्देशक-अभिनेता की युगलबंदी की एक यादगार श्रेणी में रखा जाएगा। उन्होंने चटर्जी और अन्‍य विजेताओं को बहुत गर्मजोशी से बधाई दी और उत्‍कृष्‍ट जूरी को भी पुरस्‍कारों के चयन के लिए उनके कठिन परिश्रम के लिए धन्‍यवाद दिया।
दादा साहेब फाल्‍के ने लगभग एक शताब्‍दी पहले बनाई पहली भारतीय फीचर फिल्‍म ‘राजा हरिश्चंद्र’ से लेकर आज तक भारतीय सिनेमा ने हमारे लोकप्रिय संस्‍कृति के मुख्‍य तत्‍वों को निर्मित और प्रभावित किया है कि कैसे हम अपने सार्वजनिक और निजी जीवन में सोचते और व्‍यवहार करते हैं। इस वर्ष सर्वश्रेष्‍ठ फीचर फिल्‍मों के लिए चुनी गयी दो फिल्‍मे क्षेत्रीय भाषाओं की हैं और ये क्षेत्रीय सिने-उद्योग के लिए एक उपलब्धि है। यह अल्‍प प्रशंसित तथ्‍य है कि जन प्रदर्शन के लिए प्रमाणित 80 प्रतिशत से अधिक फिल्‍में क्षेत्रीय फिल्‍में होती हैं। उन्होंने कहा कि मैं इस बात से भी प्रसन्‍न हूं कि इस वर्ष फीचर और गैर फीचर दोनों ही वर्गों में सर्वाधिक फिल्‍मों ने भाग लिया और जो 11 बच्‍चे सर्वश्रेष्‍ठ बाल अभिनेता पुरस्‍कार के लिए पुरस्‍कृत किए गए हैं उनकी भी हम दिल से प्रशंसा और सराहना करते हैं।
कुल मिलाकर जिन फिल्‍मों और कलाकारों को आज पुरस्‍कृत किया जा रहा है, उन्‍होंने आम धारणा के विपरीत यह साबित कर दिया है कि भारतीय सिनेमा न तो फार्मूला पर आधारित है और न ही रूढि़वादी है। इसने सफलता पूर्वक पारंपरिक भारतीय कथाओं और मौखिक कथन को प्रौद्योगिकी और नई मीडिया के प्रारूप में अपने आप को ढाला है। भारत तेज बदलाव के दौर में है। यह हमारी अपनी प्रकृति और सिने दर्शकों की उम्‍मीदों में भी परिलक्षित होता है। हमारा बढ़ता हुआ मध्‍यम वर्ग और युवा पीढ़ी है, जो मनोरंजन की इच्‍छुक है और इसके लिए खर्च करने में सक्षम भी है, आज का फिल्‍म दर्शक मनोरंजन के अलावा समाज और अपनी दुनिया को समझना चाहता है और अपनी सामाजिक तथा वैयक्तिक क्रमिक विकास को जानना चाहता है।
फिल्‍म देखने की नई तकनीक और प्रारूप भी बदल गए हैं। इसकी वजह से बेहतर छायांकन और गुणवत्‍ता पूर्ण तथा डिजिटल सिनेमा की मांग बढ़ गयी है। यह डिस्‍ट्रीब्‍यूशन और मार्केटिंग पर भी प्रभाव डाल रहे हैं और राजस्‍व सृजन की संभावना बढ़ा रहे हैं। फिल्‍म उद्योग को अभिनव, रचनाशीलता और प्रौद्योगिक सम्‍मुनतिकरण की चुनौती करना पड़ेगा, चाहे वह अपनी नाभि रज्‍जु का पालन पोषण हमारी विरासत और संस्‍कृति के साथ करता है। भूमंडलीकरण का असर फि‍ल्‍म उद्योग में भी दि‍ख रहा है। पहले की तुलना में फि‍ल्‍म उद्योग में काम करने वाले कलाकारों का एक देश से दूसरे देश में आना-जाना काफी आसान हो गया है। आज फि‍ल्‍म से जुड़े दक्ष कलाकार वि‍देश में नये दर्शकों के बीच जा रहे हैं और अच्‍छी कमाई भी कर रहे हैं। भारतीय फि‍ल्‍में आज एक साथ कई देशों में रि‍लीज हो रही हैं, गैर-परंपरागत बाजारों में प्रवेश कर रही हैं। ध्‍यान देने योग्‍य बात यह है कि‍ भारतीय फि‍ल्‍म नि‍र्माताओं के लि‍ए दूसरे देश की सरकारें और पर्यटन संगठन बड़ी तत्‍परता से अच्‍छे लोकेशन उपलब्‍ध करा रहे हैं। मुंबई में वि‍देशी फि‍ल्‍मों से जुड़े लोगों का ठहरना और वहां के फि‍ल्‍म स्टूडि‍यो में जाना अब आम बात हो गई है।
यह जाहि‍र है कि‍ हमारी फि‍ल्‍में हमारी सहृदयता का एक शक्‍ति‍शाली तत्‍व है।

यह हमारी संस्‍कृति,‍परंपरा और समाज की अग्रदूत है। ये लोगों के बीच संबंधों की मजबूती को दर्शाती है और हमारे हि‍तों और हमारी छवि‍को बढ़ावा देती है, जो काफी महत्‍वपूर्ण हैं। जैसे-जैसे हमारा समाज, हमारी अर्थव्‍यवस्‍था और हमारे नागरि‍क सशक्‍त होते जा रहे हैं, हमारी फि‍ल्‍में भी इस कोशि‍श में देश के भीतर और बाहर भी महत्‍वपूर्ण भूमि‍का नि‍भाती रहेंगी। पि‍छले कुछ वर्षों के दौरान उन्‍नत डबिं‍ग की सुवि‍धा की वजह से ऐसा संभव हो पाया कि ‍एक फि‍ल्‍म कई भाषाओं में अलग-अलग भाषा-भाषी श्रोताओं के लि‍ए रि‍लीज हुई। देश में वि‍देशी फि‍ल्‍मों का हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में रि‍लीज कर 1994 से कमाई की जा रही है। वर्ष 2011 में ऐसी 128 फि‍ल्‍में प्रमाणि‍त हुई हैं।
आश्‍चर्यजनक रूप से हमने एक से दूसरी भारतीय भाषाओं में डब भारतीय फि‍ल्‍मों की साझेदारी नहीं बढ़ायी है। दूसरी तरफ ऐसी फि‍ल्‍मों की संख्‍या 2001 में 213 से घटकर 2011 में 147 रह गयी है। अब यह सुनि‍श्‍चि‍त करने का समय है कि ‍हम डबिं‍ग के जरि‍ये सभी भाषाओं में बनी भारतीय फि‍ल्‍मों के लि‍ए एक राष्‍ट्रीय बाजार का नि‍र्माण करें। एक नि‍श्‍चि‍त हद तक ऐसा टेलीवि‍जन के कार्यक्रमों में हो रहा है। हमें इन कोशि‍शों का एक ऐसा आधार बनाने की जरूरत है, जि‍ससे देश के सभी नागरि‍क एक-दूसरे की संस्‍कृति‍ और सामाजि‍क व्‍यवस्‍था को जान सकें और उनकी सराहना कर सकें। इससे क्षेत्रीय फि‍ल्‍म उद्योग में जान डालने में मदद मि‍लेगी।

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