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नई दिल्ली। राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र पर आयोजित मुख्यमंत्रियों की बैठक को गृहमंत्री पी चिदंबरम ने संबोधित किया। इस बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने की। चिदंबरम ने कहा कि गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1967 में संसद में पारित किया गया था और इस अधिनियम की वैधता पर किसी ने प्रश्न नहीं उठाया। छब्बीस नवंबर 2008 को मुंबई में हुए घातक हमले के बाद आतंकवाद से निपटने के लिए एक ठोस कानून के सार्वभौमिक मांग की बात उठी, चूंकि संसद का सत्र चल रहा था और बिना समय गवाएं इस दिशा में कार्य करने का निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा कि सभी दलों ने एकमत से दो अधिनियमों को पारित करने में अपनी सहमति दिखायी। इसमें से एक 2008 का अधिनियम-34 है जो राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम से संबंधित है और दूसरा 2008 का अधिनियम-35 है जो गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम में संशोधन से संबंधित है।
चिदंबरम ने कहा कि गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम में संशोधन के समय संसद न केवल देश की जनता के प्रति अपने दायित्व से वाकिफ थी, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से भी वाकिफ थी । उन्होंने कहा कि इससे पहले वितरित नोट, जो इस बैठक में वितरित एजेंडा नोट के पेज संख्या-3 से 7 में शामिल हैं, उसमें हमने राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र के उत्पत्ति, उद्देश्यों, संरचना और उसकी शक्तियों को निहित किया है। उन्होंने कहा कि यह नोट गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के भाग-2 (ई) की ओर ध्यान दिलाता है जिसमें निर्दिष्ट प्राधिकरण की बात कही गयी है। जब खंड 43-ए का प्रारूप तैयार किया गया था तब यह खंड-2 (ई) पर आधारित था, जो इस अधिनियम का पहले से ही भाग था। उन्होंने कहा कि निर्दिष्ट प्राधिकरण में कुछ शक्तियों को निहित करने का निर्णय आम सहमति से संसद में लिया गया। उसी समय संसद ने खंड-43 ए के तहत प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग को उन मामलों में सीमित करने का पूरा ध्यान रखा है, जिसमें गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, के तहत कोई अपराध किया गया हो या ऐसे अपराध को किये जाने की बात थी, इसके आगे खंड 43-बी और 43-सी के जरिये कुछ सीमाएं तय की गईं। वास्तव में खंड-43 बी गिरफ्तार व्यक्ति या जब्त वस्तुओं के मामले में केस दर्ज करने के संबंध में राज्यों को दिये गये विशेष अधिकार को परिभाषित करता है।
चिदंबरम ने कहा कि भारतीय परिपेक्ष्य में राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी केंद्र नई सुरक्षा ढांचा का एक अहम स्तंभ होगा, जो इन बिंदुओं पर आधारित है-भारतीय संविधान के अंतर्गत आतंकवाद की रोकथाम केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की साझा जिम्मेदारी है, आतंकवादी देशों के बीच की सीमा को नहीं पहचानते और न ही किसी देश के राज्यों के बीच की सीमा को मानते हैं, बहुत से आतंकवादी संगठनों की कई देशों में जड़ें हैं और सीमापार किसी भी आतंकवादी घटना का अंजाम देने की उनकी क्षमता है, आतंकवाद की रोकथाम के लिए केवल मानव संसाधन की ही केवल जरूरत नहीं है बल्कि इससे लड़ने के लिए प्रौद्योगिकी एक मुख्य हथियार है, सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के तहत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रति हमारा दायित्व है, भारत के 7516 किलोमीटर तटीय रेखा और सात देशों के साथ लगी हुई 15,106 किलोमीटर सीमा (जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन, बंगलादेश एंव म्यांमार) तथा विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय प्रवेश द्वारों को देखते हुए राज्य आतंकवादी रोधी बलों को केंद्र सरकार के विभिन्न एजेंसियों के साथ निश्चित रूप से कार्य करना होगा, खासकर जब समुद्री, वायु और अंतरिक्ष क्षेत्र में कोई खतरा हो।
चिदंबरम ने कहा कि हमारी आतंकवादी निरोधक क्षमता को साइबर स्पेस में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा। उन्होंने कहा कि मैं आश्वस्त हूं कि आपने यह देखा होगा कि खंड-2 (ई) के तहत निर्दिष्ट प्राधिकरण को नामित करने का अधिकार समवर्ति है और इसलिए मैं आप सभी का धन्यवाद करूंगा यदि राज्य सरकार अपने आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) को एक निर्दिष्ट प्राधिकरण के रूप में नामित करें। चिदंबरम ने कहा कि मैं आप सब को और देश की जनता को यह आश्वस्त करता हूं कि आतंकवाद की रोकथाम एक साझा जिम्मेदारी है, संविधान भी यही कहता है, जो व्यवहारिक और विवेक पूर्ण रास्ता है। उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकारें ज्यादा क्षमता का निर्माण करतीं हैं तो अंतर्राज्यीय सहयोग भी काफी प्रभावी होगा और केंद्र सरकार उनको पूरा सहयोग देगी, हालांकि हम सब को एक साथ काम करना होगा।