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नई दिल्ली। संसद की 60वीं वर्षगांठ पर संसद के केंद्रीय कक्ष में एक विशेष समारोह में राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटील ने कहा है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत इस बात पर गर्व महसूस कर सकता है कि स्वतंत्रता की प्राप्ति और संविधान के लागू होने के बाद से भारत निरंतर लोकतंत्र के रास्ते पर चलता रहा है, स्वतंत्रता प्राप्ति के शुरू के वर्षों में इस प्रकार के संदेह व्यक्त किये गए थे, कि क्या इतने विशाल और विविधतापूर्ण देश में लोकतंत्र टिक सकता है? हमने उन संदेहों को गलत साबित कर दिया है। संविधान के अनुसार अनेकों बार संसद, राज्य विधानमंडलों और स्थानीय निकायों के लिए निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों के जरिए प्रतिनिधि चुने गए हैं, हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय रही हैं और हमें इस बात के लिए व्यापक प्रशंसा भी मिली है, कि किस तरह हमने दृढ़ता के साथ लोकतंत्र को कायम रखा है, लेकिन आज विश्व के लोकतंत्र जटिल परिस्थितियों से गुजर रहे हैं, कई कारणों से दबाव बढ़ रहे हैं, जिनमें विकास की जरूरत, लोगों की बढ़ती मांगे और कई तरह के विचार और मत उभरकर सामने आ रहे हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि यह समारोह स्वतंत्र भारत के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना को याद करने का दिन है, आज से 60 वर्ष पहले देश में हुए पहले आम चुनाव के बाद 13 मई 1952 को लोकसभा और राज्यसभा की पहली बैठकें हुई थीं, उस दिन संसद के नवनिर्वाचित सदस्यों ने शपथ ली थी और यह सौभाग्य की बात है, कि उनमें से चार-रिशांग कीशिंग, जो अभी भी सांसद हैं और रेशमलाल जांगड़े, कंडाला सुब्रमण्यम एवं के मोहन राव आज यहां हमारे साथ मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न प्रकार की उम्मीदों के बीच एक संतुलन बनाने की आवश्यकता है, अब जनादेश भी खंडित मिल रहे हैं, अब सरकारें ज्यादातर गठबंधन की हैं और विधान सभाओं में कई दलों के प्रतिनिधि हैं, इसके अलावा क्षेत्रीय आकांक्षाएं भी हैं।
प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने कहा कि पिछले दशक में मीडिया का भी अभूतपूर्व विस्तार हुआ है, लिहाजा, लोकतंत्र इस समय नये प्रकार के परिदृश्यों के बीच काम कर रहा है, ये आंतरिक भी हैं और बाहरी भी हैं, जो जटिल अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति से उभरे हैं, विश्व आज पहले से अधिक एकीकृत और अंतर-निर्भर है, इस पृष्ठभूमि के साथ भारत, संविधान की स्थापित संस्थाओं की शुचिता की रक्षा करते हुए प्रशासन की लोकतंत्रीय प्रणाली के जरिए देश को शांति, विकास और उन्नति के रास्ते पर आगे ले जाने के लिए कृत संकल्प हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती एक जीवंत और स्वस्थ लोकतंत्रीय पद्धति कायम करने की है, इसलिए यह जरूरी है कि सावधानी और दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ा जाए, ताकि प्रगतिशील और स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना का मुख्य उद्देश्य आंखों से ओझल न हो जाए, इसके लिए कई बातें महत्वपूर्ण है, जिनका ध्यान रखना बहुत जरूरी है, मैं इनमें से कुछ बातों का जिक्र करूंगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि चुनाव किसी भी लोकतंत्र की आधारशिला है और इस लिहाज से अच्छी चुनाव प्रणालियां स्वस्थ लोकतंत्र का पहला स्तंभ हैं, हमारा चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था है और मतदाताओं की विशाल संख्या के लिए उसने चुनावों का सराहनीय प्रबंधन किया है, लेकिन हमें प्रणालियों में लगातार सुधार करते रहना चाहिए और चुनाव प्रक्रियाओं से और समाज से सभी भ्रष्ट गतिविधियों को हटाना चाहिए। संसद लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है, इसलिए लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं के अनुरूप नीति संबंधी निर्णय लिये जाने चाहिएं और आवश्यक कानून बनाए जाने चाहिएं। इस बारे में चर्चाएं कठिन हो सकती हैं और विचार भिन्न हो सकते हैं, फिर भी संसद में चर्चा के जरिए इनके हल निकाले जाने हैं और स्थापित संसदीय परंपराओं के अनुसार प्रस्ताव पास किये जाने चाहिएं। सांसद लोगों के सेवक हैं, इस संदर्भ में महात्मा गांधी की कविता ‘A Servant’s Prayer’ में उनके शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा था कि ‘लोगों के एक विनम्र सेवक और एक मित्र के रूप में हम उनसे कभी जुदा न हों, जिनकी हम सेवा करना चाहते हैं।’
पाटिल ने कहा कि सही माइनों में लोकतंत्र का मतलब साझी जिम्मेदारी है, जहां सभी पक्षों और विभिन्न विचारों के लिए सम्मान हो और जहां आमतौर पर लोकतांत्रिक संस्थाएं सामंजस्य के साथ काम करें, वहां लोकतंत्र कायम रहेगा, पनपेगा और उन्नति करेगा, चाहे वह विधायिका हो, न्यायपालिका हो, या कार्यपालिका हो या मीडिया अथवा नागरिक हों, सभी की भूमिका है, जो उन्हें जिम्मेदारी के साथ निभानी है और उन्हें संविधान तथा कानून के शासन को बरकरार रखना है, लोकतंत्र को कायम रखा जा सकता है, जब राष्ट्रीय हितों, सामाजिक उद्देश्यों और एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता हो, जैसा कि डॉ बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था, ‘लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं है, मुख्य रूप से यह मिलकर रहने और एक दूसरे के साथ संवाद करने का एक तरीका है, वास्तव में यह एक-दूसरे के प्रति आदर और सम्मान का दृष्टिकोण और आचरण है।’ इसके अलावा लोकतंत्र में भागीदारी होनी चाहिए, जिस समय संसद ने 73वां और 74वां संविधान संशोधन पास किया, उस समय जो फैसला लिया गया, वह बहुत बड़ा कदम था।
उन्होंने कहा कि संशोधनों के अनुसार समाज के विभिन्न वर्गों-आदिवासी लोगों, पिछड़े वर्गों और महिलाओं सहित, जिनकी संख्या आधी आबादी के बराबर है, के प्रतिनिधि पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय शहरी निकायों के लिए चुने जाने चाहिएं, इससे लोकतंत्र की जड़ें गहरी हो गईं और समाज के निचले स्तर तक लोकतंत्र का विस्तार हो गया, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे उद्देश्य में एकरूपता होनी चाहिए, हमारा चरम उद्देश्य विकास और स्वतंत्रता है, इसके साथ-साथ भारतीय संस्कृति के पुराने मूल्यों तथा सहिष्णुता और सौहार्द के सिद्धांतों का संरक्षण जरूरी है, जिनसे विश्व मंच पर हमारी छवि बनती है। हमें 60 वर्षों की अपनी यात्रा के बाद इस मोड़ पर निश्चय करना है और एक सुदृढ़ लोकतंत्र के जरिए इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मिलकर कार्य करने का संकल्प करना है। एक श्लोक में कहा गया है कि एकता किसी भी समाज की शक्ति है और समाज इसके बिना कमजोर है, अब तक भारत ने सबसे परामर्श और भागीदारी के जरिए लोकतंत्र के प्रति अपने दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया है, लोकतंत्र को कमजोर नहीं होने दिया जा सकता, क्योंकि यह हमारी राष्ट्रीयता का सार है।
राष्ट्रपति ने कहा कि आज हम जिस लोकतंत्र का आनंद ले रहे हैं, वह हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों और महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए अनोखे स्वतंत्रता संघर्ष का फल है, इसलिए हमारे कंधों पर एक ऐतिहासिक जिम्मेदारी है। हमें इस जिम्मेदारी को निभाना होगा। हमने उन्नति की है और आज हमें एक ऐसे राष्ट्र के रूप में जाना जाता है, जिसके पास काफी क्षमता है, हम मिलकर महान उपलब्धियां प्राप्त कर सकते हैं, उन्होंने कहा कि मैं सभी सम्मानित सदस्यों को स्वामी विवेकानंद के शब्दों की याद दिलाना चाहूंगी, जिन्होंने कहा था कि ‘इस धरती पर पिछले समय में कई महान कार्य हुए हैं और अब हमारे पास और भी बड़े कार्य करने का समय भी है और अवसर पर भी है, मुझे उम्मीद है कि आज की पीढ़ी के सभी पक्षों के ईमानदाराना प्रयासों से सभी प्रकार की कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करते हुए हमारे लोकतंत्र का रथ देश को प्रगति और खुशहाली के रास्ते पर ले जाता रहेगा।