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लखनऊ। सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के अवसर पर संस्थान की एक हर्बल प्रौद्योगिकी, हिमालय ड्रग कंपनी को उनके बनाए उत्पादों में उपयोग के लिए हस्तांतरित की गई है। यह प्रौद्योगिकी वास्तव में एक पादप आधारित स्ट्राबेरी के रंग जैसा लाल रंग है, जोकि नवयुवतियों में बहुत पसंद किया जाता है। वर्तमान में हिमालय ड्रग की उत्पादित लिपबॉम (होंठों पर लगाने वाली क्रीम) ट्रांसपेरेंट हुआ करती थी, परंतु इस रंग की वृहद उपयोगिता को ध्यान में रखकर इस कंपनी ने इस प्रौद्योगिकी को खरीदा है और आने वाले 2-3 महीनों में यह प्रौद्योगिकी बाजार में उपलब्ध होगी।
हिमालय ड्रग कंपनी की तरफ से उनके नियंत्रक, प्रशासन और प्रबंधक, अनुसंधान एवं विकास, साकेत गोरे, हिमालय ड्रग कंपनी एवं डॉ कृष्ण मनराल, प्रबंधक, अनुसंधान एवं विकास, बंगलौर और रमेश सूर्य नारायन, प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के लिए उपस्थित थे। उन्होंने हर्ष व्यक्त किया कि इस प्रौद्योगिकी के उपयोग से उनकी कंपनी तथा लाल रंग की लिपबॉम को विश्व के 80 देशों में निर्यात कर सकेगी। उन्होंने राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ का आभार व्यक्त किया और कहा कि भविष्य में भी इसका सहयोग चाहते रहेंगे। प्रौद्योगिकी दिवस व्याख्यान देते हुए प्रोफेसर जेपी खुराना, समन्वयक, यूजीसी, सैप प्रोग्राम, दिल्ली विश्वविद्यालय ने धान में अन्न के उत्पादन में स्थायित्व प्राप्त हो रहे जीन एवं जीनोमिक्स की चर्चा की।
उन्होंने कहा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां कि अधिकतर आबादी कृषि से अपनी जीविका अर्जित करती है, परंतु वर्तमान में खाद्यान्न उत्पादन में हमने समर्थता प्राप्त की थी, वह अब नहीं रह गयी है, इसलिए अब केवल जैव प्रौद्योगिकी ही एक ऐसा साधन है, जिससे अन्न उत्पादन में आने वाली कमी को पूरा किया जा सकता है। डॉ खुराना ने अपने वृहद अनुसंधान का विवरण देते हुए धान की फसल में किए गये कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया और बताया कि धान में उत्पादकता के लिए एक जीन की क्लोन की जा चुकी है, इस जीन से धान में अधिक शाखाएं हो जाती हैं, जिससे उत्पादकता में वृद्धि होती है। उन्होंने अपने अनुसंधान में नई फसलों के बारे में भी किए गए कार्यों की सूची प्रस्तुत की और कहा कि हमारा अनुसंधान धान में लगभग पूर्ण हो गया है तथा हमने धान की उत्पादकता में आने वाली समस्याओं का निवारण कर लिया है, भविष्य में हम गेहूँ, गन्ना, कॉफी और टमाटर जैसी फसलों पर कार्य प्रारंभ कर रहे हैं।
उन्होंने इस बात का भी वर्णन किया कि धान के जीन क्योंकि काफी छोटे होते हैं तथा इसमें अनुसंधान कार्य आसान था, परंतु गेहूँ का जीन इससे कई गुना बड़ा होता है, तथापि मुझे विश्वास है कि देश को खाद्यान्न में आत्म निर्भर बनाने में एक उपयोगी भूमिका निभाएंगे। प्रोफेसर खुराना ने व्याख्यान के अंत में संस्थान के निदेशक के प्रति आभार व्यक्त किया और संस्थान के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि वे अपने नए प्रभावी शोध कार्यों से आम व्यक्ति को लाभान्वित करने में सहयोग करें।
इससे पहले सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस धूमधाम एवं हर्षोल्लास से मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्जवलन के साथ संस्थान के निदेशक डॉ चंद्र शेखर नौटियाल ने मुख्य अतिथि जेपी खुराना, समन्वयक, यूजीसी सैप प्रोग्राम, पादप आणुविक जैविकी अनुभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय एवं डॉ कृष्ण मनराल, हिमालय ड्रग कंपनी से किया। गणमान्य अतिथियों का स्वागत संस्थान के निदेशक डॉ नौटियाल ने किया। इस अवसर पर संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ जयेंद्र कुमार जौहरी ने कार्यक्रम का समन्वयन तथा डॉ एसकेएस राठौर ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।