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नई दिल्ली। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने प्रयोग के तौर पर 6 जिलों में स्कूल आधारित मधुमेह जांच का कार्यक्रम शुरू किया है। इन जिलों के नाम नैनीताल (उत्तराखंड), तेनी (तमिलनाडु), नेल्लौर (आंध्र प्रदेश), डिब्रूगढ़ (असम), भीलवाड़ा (राजस्थान) और रतलाम (मध्य प्रदेश) हैं। हर जिले को इस काम के लिए निधियां उपलब्ध करा दी गई हैं। जांच के लक्ष्य बुनियादी तौर पर पहली से दसवीं कक्षा तक के विद्यार्थी हैं, जो पांच से दस वर्षों की आयु वर्ग के हैं। इन सभी छह जिलों में जांच कार्यक्रम चल रहा है।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य (एनआरएचएम) के अंतर्गत स्कूली स्वास्थ्य कार्यक्रम एक खास कार्यक्रम है, जो 6 से 18 वर्ष आयु के उन छात्रों के लिए है, जो सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पहले ही पढ़ रहे हों। स्कूली स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरूआत बच्चों के स्वास्थ्य की जरूरतें पूरी करने के लिए की गई थी। राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्यक्रम राज्य की पहल पर कार्यान्वयन में संचालन संबंधी एकरूपता विकसित करने के लिए किया गया था। राष्ट्रीय स्कूली स्वास्थ्य कार्यक्रम में दो बार स्वास्थ्य की जांच शामिल है, जिसके अंतर्गत बीमारी, पोषण की कमी अथवा दुर्बलता के मामले आते हैं।
इस कार्यक्रम का मुख्य जोर स्कूली बच्चों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतें पूरी करना है। इनमें शारीरिक और मानसिक बीमारियां शामिल हैं। पोषण, शारीरिक गतिविधियों, काउंसिलिंग आदि का भी ध्यान रखा जाता है। जिन बच्चों को सेवा समर्थन की जरूरत होती है और जो इसके लिए पहचान लिए गए हैं, उन्हें जन स्वास्थ्य मूल सुविधा के अंतर्गत सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। जरूरतमंद बच्चों को आयरन फोलिक एसिड की टिकिया और साल में दो बार पेट के कीड़ों की दवा दी जाती है। अनेक अध्ययनों से इस बात के काफी सबूत मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि बच्चों और किशोरों में टाईप-2 प्रकार का मधुमेह बढ़ रहा है। इस बीमारी के प्रमुख कारण हैं-अस्वास्थ्यकर खुराक, मोटापा और व्यायाम की कमी।