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ब्रिक्‍स सदस्‍य देशों में स्‍वास्‍थ्‍य एवं औषधि सहयोग

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जिनेवा। भारत नवंबर 2012 में दूसरे ब्रिक्‍स स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रियों की बैठक की मेजबानी करेगा। ब्रिक्‍स सदस्‍य देशों ने मंगलवार को जिनेवा में स्‍वास्‍थ्‍य एवं औषधि पर एक संयुक्‍त विज्ञप्ति जारी की। जिनेवा में विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य सभा के 65वें सत्र के अवसर पर ब्रिक्‍स सदस्‍य देशों के प्रतिनिधियों-दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, चीन के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री, रूसी गणराज्‍य के स्‍थायी प्रतिनिधि और भारत सरकार के स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण सचिव ने अलग से मुलाकात की। ब्रिक्‍स सम्‍मेलन 2012 की दिल्‍ली घोषणा में यह आह्वान किया गया था कि ब्रिक्‍स स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रियों की बैठकें संस्‍थागत तरीके से आयोजित की जाएंगी।
यह संयुक्‍त विज्ञप्ति इस बात की पुष्टि करती है कि स्‍वास्‍थ्‍य एवं औषधि के क्षेत्र में ब्रिक्‍स सदस्‍य देशों का पारस्‍परिक सहयोग सभी देशों के हित में है। ब्रिक्‍स देशों के सहयोग से स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं तक सबकी पहुंच जैसी चुनौतियों से निपटने में सहयोग मिलेगा। विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि इन प्रयासों से स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र की तकनीकियों और जेनेरिक औषधियों तक न केवल ब्रिक्‍स सदस्‍य देशों की पहुंच बढ़ेगी, बल्कि बड़े पैमाने पर दुनिया को इसका फायदा मिलेगा। विज्ञप्ति में कहा गया है कि टीबी और मेलेरिया तथा अन्‍य उपेक्षित रोगों के लिए दवाओं के अनुसंधान एवं विकास में सहयोग से बीमारियों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकेगा तथा जैसा कि दोहा घोषणा पत्र-2001 में सहमति जताई गई थी कि सभी सदस्‍य देशों को लोक स्‍वास्‍थ्‍य रक्षा का अधिकार है और इसके लिए दवाओं तक पहुंच को प्रोत्‍साहित किया जायेगा।
लोगों पर संचारी एवं गैर संचारी रोगों की पड़ रही दोहरी मार को भी सदस्‍य देशों ने स्‍वीकारा है और यह महसूस किया है कि इससे निपटने के लिए और अधिक धन की आवश्यकता है। सदस्‍य देशों ने तकनीकी के जरिये रोगों की निगरानी में सहयोग का आह्वान किया है। सदस्‍य देशों में बढ़ते शोध संस्‍थानों और विशेषज्ञता को देखते हुए ब्रिक्‍स ने वैज्ञानिकों के पारस्‍परिक दौरों का निर्णय लिया है। पहली ब्रिक्‍स स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रियों की बैठक 2011 में बीजिंग में आयोजित की गई थी। बीजिंग घोषणा पत्र में तकनीकी हस्‍तांतरण की आवश्‍यकता और उसके महत्‍व पर जोर दिया गया था, ताकि विकासशील देशों को सशक्‍त किया जा सके, और स्‍वास्‍थ्‍य के अधिकार को महसूस किया गया था। इसमें ब्रिक्‍स सदस्‍य देशों के बीच स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में शोध एवं विकास को प्राथमिकता देने की बात भी की गई थी।

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