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अजमेर। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 800वां सालाना उर्स मंगलवार को चांद दिखने के साथ शुरू हो गया। शाम को मगरीब की नमाज़ के बाद शाह जहानी नौबतखाने से शादियाने बजाकर उर्स शुरू होने का एलान किया गया। चांद दिखने के साथ 28 मई छःरजब तक होने वाली मजहबी रसूमात शुरू हो गई। वंशज एवं सज्जादानशीन दीवान सैय्यद ज़ैनुल आबेदीन अली खान ने उर्स की पहली महफिल की सदारत की और ख्वाजा साहब के मजार पर परंपरागत रूप से पहले गुस्ल की रस्म अदा की।
दरगाह दीवान के सचिव सैय्यद अलाउद्दीन अलीमी ने बताया कि मंगलवार को चांद दिखने के बाद दरगाह स्थित महफिल खाने में रात 11 बजे से सुबह 4 बजे तक उर्स की पहली महफिल-ऐ-समा दीवान साहब की सदारत में हुई। महफिल खाने में आयोजित यह रस्म उर्स में होने वाली प्रमुख धार्मिक रस्मों में से एक प्रमुख रस्म है। महफिल में देश की विभिन्न खानकाहों के सज्जादानशीन, सूफी, मशायख सहित जायरीने ख्वाजा शामिल हुए। महफिल का आगाज़ फातेहा और तिलावत से हुआ। बाद में दरगाह की कव्वाल पार्टी सहित देशभर से आए कव्वालों ने फारसी व हिंदी में कलाम पेश किए।
महफिल से रात्रि 1.30 पर सज्जानशीन दीवान सैय्यद ज़ैनुल आबेदीन अली खान, उर्स के दोरान ख्वाजा साहब के मजार पर आयोजित होने वाली गुस्ल की प्रमुख रस्म अदा करने आस्ताना शरीफ गए, जहां उन्होंने मजार-ए-शरीफ को केवड़ा व गुलाब जल से गुस्ल दिया, इत्र और चंदन पेश किया। महफिल एवं गुस्ल की यह धार्मिक रस्म 27 मई 5 रजब तक रोजाना जारी रहेगी। उर्स का 28 मई को दोपहर 1.30 पर कुल की रस्म के साथ समापन होगा।सुबह चार बजे शरबत व पान के बीड़ों पर फातेहा हुई और जायरीनों को तबर्रूक तकसीम किया गया। बाद में ब्रज भाषा में कड़का पढ़ा जाने के बाद महफिल का समापन हुआ।