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मुंबई। भाजपा ने मुंबई में अपने राजनैतिक प्रस्ताव में कहा है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार, जिस आम आदमी का हितैषी होने का प्रचार करती है, वही आम आदमी इस सरकार के कुशासन का सबसे ज्यादा शिकार बना है। कुशासन, भ्रष्टाचार और उदासीनता के कारण ग़रीब आदमी का दुख, उपेक्षा और पीड़ा सभी हदों को पार कर चुकी है। सच्चाई तो यह है कि भारत के विकास की कहानी के सभी दावे संदेह और अविश्वास के घेरे में हैं। केंद्र सरकार की नीतिगत विफलताओं और उसके खराब शासन के कारण दुनिया भर में भारत की साख गिरी है। घिसट-घिसटकर चलना यूपीए-2 की विशेषता बन गई है, उम्मीद का माहौल खत्म हो गया है और भारत के एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरने के सपने पर अब न केवल तटस्थ पर्यवेक्षक बल्कि ऐसे लोग भी गंभीरता से सवाल उठा रहे हैं, जो इस सरकार के विशेष सलाहकार हैं।
प्रस्ताव में कहा गया है कि यह सब इस महान देश की असाधारण जनता की असीम क्षमता के बावजूद हो रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने उम्मीद, उत्साह, भागीदारी, वास्तविक विकास, मंहगाई के ठोस प्रबंधन और सामान्य सद्भावना और आशा की महान विरासत छोड़ी थी, जिसकी वजह से भारत को नई ऊंचाईयां छूने को मिलीं और भारत एक महत्वपूर्ण देश के रूप में उभरकर सामने आया था। आज इसकी जगह अंधकार और निराशा का माहौल है। इस सभी का कारण ढूंढना कोई बहुत मुश्किल नहीं है। एक सफल सरकार चलाने और किसी भी कार्यक्रम को लागू करने के लिए तीन चीजें आवश्यक हैं, पहली-नेतृत्व ऐसा होना चाहिए जो फैसले लेने और उन्हें लागू करने की क्षमता रखता हो। दूसरी सरकार की विश्वसनीयता है और तीसरी महत्वपूर्ण बात है सरकार की साख।
प्रधानमंत्री को स्वाभाविक रूप से देश और सरकार का नेता होना चाहिए और नीतिगत मामलों में उनकी ही बात मानी जानी चाहिए। मनमोहन सिंह दोहरी कसौटी पर खरा उतरने में एकदम ही नाकाम रहे हैं। देश में न केवल दोहरा नेतृत्व है, बल्कि 7 रेसकोर्स रोड और 10 जनपथ की दूरी बढ़ती जा रही है। नीतिगत पहलों पर भी वे एकमत नहीं हैं, सरकार मंत्रियों और गठबंधन के सहयोगियों के बीच कोई तालमेल नहीं है। प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी है कि वे चीजों को दुरूस्त रखें। हालॉकि हर दिन इस बात की पुष्टि कराई जाती है कि प्रधानमंत्री अपने पद पर आसीन हैं, लेकिन उन्हें अधिकार प्राप्त नहीं हैं, उन्हें देखकर ऐसा लगता है, जैसे वह एक सीईओ की तरह काम कर रहे हैं, जिसे एक कंपनी के बोर्ड से निर्देश मिलते हैं, चैयरमैन के पास सारे अधिकार हैं, लेकिन वास्तव में कोई जवाबदेही नहीं है।
नीतिगत विफलता और भ्रष्टाचार के परिणाम चारों तरफ दिखाई दे रहे हैं, निवेश कम हुआ है, औद्योगिक माहौल बिल्कुल अनुकूल नहीं है, और भ्रष्टाचार ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर है, अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग अनुकूल नहीं हैं और रूपया गिरा है, डॉलर के मुकाबले रूपए का 22 प्रतिशत अवमूल्यमन हो चुका है। डॉलर महंगा होने के कारण अब छात्रों, पर्यटकों और सरकार को ज्यादा भुगतान करना पड़ेगा। वृद्धि और विकास के लिए जरूरी कई नीतिगत पहल अधर में लटकी पड़ी हैं, क्योंकि सरकार और यूपीए के भीतर न केवल पारदर्शिता और आम सहमति का अभाव है, बल्कि कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ मंत्री भी अलग-अलग भाषा बोल रहे हैं। इसके लिए प्रधानमंत्री के पास राजनैतिक अधिकार होना जरूरी है, जो दुर्भाग्य से उपलब्ध नहीं हैं। निष्क्रियता और भ्रष्टाचार के लिए गठबंधन की राजनीति की मजबूरी का बहाना नहीं बनाया जा सकता। विपक्ष के साथ सहमति बनाने का काम एकतरफा नहीं हो सकता, जबकि वरिष्ठ मंत्री राज्यों के साथ, विपक्ष से निपटते समय अहंकार वाली बयानबाजी करते हैं और विपक्ष शासित राज्यों के लिए परेशानियां खड़ी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
मुद्रास्फीति, खासतौर से खाद्यान्नों की कीमतें एक बार फिर बढ़ने के कारण न केवल गरीब आदमी का जीवन दूभर हो गया है, बल्कि मध्यम वर्ग के लिए भी काफी मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। ऐसा लगता है कि सरकार ने हाथ खड़े कर दि हैं। उसके पास खाद्यान्नों की बढ़ती कीमतों की समस्या से निपटने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं हैं, जिसके कारण अर्थव्यवस्था एक लंबे अरसे से चौपट पड़ी है। यह एक विडंबना ही है कि किसानों की कड़ी मेहनत के कारण अनाज के रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद, अनाज खुले में सड़ रहा है, क्योंकि भंडारण की पर्याप्त सुविधा नहीं है और गरीब और हाशिए पर चले गए लोगों को खाना नसीब नहीं हो रहा है। सरकार के पास इस गंभीर मुद्दे से निपटने के लिए कोई रोडमैप नहीं है और यह स्थिति बार-बार पैदा हो रही है। अर्थव्यवस्था का प्रबंधन खासतौर से खाद्य अर्थव्यवस्था घोर असंतोषजनक है, जबकि पिछले 8 वर्ष से एक जाने-माने अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री हैं। पेट्रोल की कीमत पर एक दिन में 7 रुप से अधिक की बढ़ोतरी आज तक कभी नही हुई, अपनी तीसरी वर्षगांठ पर यूपीए का देश की गरीब जनता को दिया गया यह एक क्रूर उपहार है।
भ्रष्टाचार और यूपीए सरकार
भाजपा ने कुछ समय पहले अपनी पिछली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठकों में स्पैक्ट्रम पर मत व्यक्त किया था कि आजादी के बाद सबसे भ्रष्ट केंद्र सरकार का नेतृत्व मनमोहन सिंह कर रहे हैं। इस अवधारणा में बदलाव की कोई वजह नहीं दिखाई देती। भ्रष्टाचार करना और भ्रष्टाचार करने वाले को संरक्षण देना, उनके शासन की विशेषता बन गई है। यहां तक कि गठबंधन के सहयोगियों और कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोगों की भ्रष्टाचार में लिप्तता को लेकर अलग-अलग मानदंड बना दिए गए हैं। गृह मंत्री पी चिदंबरम जब वित्त मंत्री थे, तो उस समय 2जी घोटाला हुआ, जो आजादी के बाद राजनीतिक भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा मामला है, इसमें उनकी खुद की भूमिका काफी संदेह के घेरे में है और इसकी निष्पक्ष जांच करने की आवश्यकता है। फिर भी वह प्रधानमंत्री के निर्विवाद विश्वासपात्र बने हुए हैं। जिस तरह से अत्यधिक संदेहपूर्ण परिस्थितियों में विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) ने होल्डिंग कंपनियों के जरि एयरसेल मैक्सिस सौदे को मंजूरी दी उसे लेकर अनेक गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस सौदे में श्री चिदम्बंरम के परिवार के सदस्य कथित रूप से शामिल हैं। इस सौदे की सीबीआई जांच कर रही है जिसमें तत्कालीन दूरसंचार मंत्री श्री मारन की भूमिका की भी जांच की जा रही है।
आदर्श घोटाले में महाराष्ट्र के अनेक कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के नाम आए हैं और हैरानी की बात यह है कि उनमें से कई केंद्र सरकार में मंत्री बने हुए हैं। राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को लगातार संरक्षण दिया जा रहा है, जबकि इस मामले की जांच के लिए प्रधानमंत्री द्वारा गठित शुंगलू समिति की रिपोर्ट में उनकी भूमिका पर गंभीर टिप्पणियां की गई हैं। हाल ही में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में एंट्रिक्स-देवास सौदे को शासन व्यवस्था की विफलता का अनूठा उदाहरण करार दिया गया है। रिपोर्ट में यह टिप्पणी की गई है कि इसरो के पूर्व प्रमुख और अन्य अधिकारियों ने सरकार के हितों की अनदेखी की और निजी कंपनी देवास को फायदा पहुंचाया। अंतरिक्ष मंत्रालय सीधे तौर पर प्रधानमंत्री के अधीन है, इसके बावजूद ऐसा हुआ। कैग ने एयर इंडिया के विमानों की खरीद में बहुत ज्यादा भ्रष्टाचार पाया। उर्वरक सब्सिडी के मामले में भी भारी भ्रष्टाचार हुआ है। हर रोज एक नया घोटाला या घपला सामने आ रहा है। कैग ने अपनी रिपोर्ट मे कोयला ब्लाक के आवंटन मे भी भयंकर अनियमितताओं को उजागर किया है। कैग ने दिल्ली हवाई अड्डे के निजीकरण में भी भयंकर अनियमितताओं को पाया है।
काले धन का पता लगाने के लिए प्रभावी और अर्थपूर्ण समयबद्ध कार्यक्रम चलाने तथा विदेशों में काला धन जमा करने वालों के नाम जनता के सामने लाने के लिए सरकार में राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव है। सरकार जानती है कि अगर नाम उजागर हो गए तो उसकी फजीहत होगी। काले धन पर संसद मे सरकार का वक्तव्य सिर्फ दिखावा है, इसमें कोई दिशा और स्पष्ट नीति का अभाव है, जिससे विदेशी बैंको में जमा काले धन को लाया जा सके। रिपोर्ट से इस चौकाने वाले तथ्य का पता चलता है कि 2006 से 2010 के बीच स्वीट्जरलैंड के बैंको में जमा भारतीयों के पैसे में 60 प्रतिशत की गिरावट हुई। यह राशि 23,273 करोड़ रूपए से कम होकर 2010 में 9295 रुपए रह गई। हालॉकि इस पूरी राशि का आकलन भी काफी कम है, लेकिन इससे यह ज्ञात होता है कि 2008 के बाद भाजपा के इस विषय को गंभीरता से उठाने के बाद वहां से पैसा निकाला गया। भाजपा महसूस करती है कि सशस्त्र बलों के लिए होने वाली ख़रीद के अनेक सौदों में भ्रष्टाचार का होना गंभीर चिंता का विषय है। सेना के लिए टाट्रा ट्रक की आपूर्ति ने भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को लेकर अनेक चिंताजनक सवाल खड़े कर दिए हैं।
कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के प्रति गंभीर नहीं है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की भ्रष्टाचार रोकने की सभी घोषणाएं खोखली और हास्यास्पद लगती हैं। अगर भाजपा ने खासतौर से काफी आक्रामक अभियान नहीं चलाया होता और जागरूक मीडिया और अदालत की निगरानी नहीं होती, तो किसी भी घोटाले में कोई कार्रवाई यूपीए सरकार नहीं करती। भ्रष्टाचार करने वालों के दुष्कर्म को छिपाने के लिए अपने अधिकारों का दुरूपयोग करने की निर्लज्जता दिखाने का कांग्रेस का रिकॉर्ड रहा है।
चुनाव परिणाम
भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की पिछली बैठक के बाद अनेक राज्यों में चुनाव हुए। पंजाब में अकाली दल-भाजपा गठबंधन भारी बहुमत से विजयी रहा। पिछले 40 वर्ष में ऐसी पहली सरकार थी, जो सत्तारूढ़ रहते हुए दोबारा चुनी गई। जाहिर है कि लोगों ने अकाली-भाजपा सरकार के अच्छे कार्यों पर भरोसा किया। इन दोनों दलों का संबंध 40 वर्ष से ज्यादा पुराना है। गोवा में भाजपा की भारी जीत काबिले तारीफ है। ईसाई मतदाताओं की बड़ी संख्या सहित औसत मतदाताओं के बहुमत को कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार के कुशासन से छुटकारा पाने के लिए भाजपा एकमात्र उम्मीद के रूप में दिखाई दी। बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवारों ने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर इस दुष्प्रचार को खत्म किया कि भाजपा अल्पसंख्यक विरोधी है। वे भाजपा के इस सिद्धांत की सराहना करते हैं कि सभी को न्याय मिले और किसी का तुष्टिकरण नहीं हो। उत्तराखंड राज्य में एक सीट कम रहने के कारण हम अपनी सरकार नहीं बना पाए। नेताओं और कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत की सराहना करते हैं, लेकिन इससे सबक लेने की जरूरत है। उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणाम संतोषजनक नहीं रहे। कार्यकर्ताओं और समर्थकों के जबरदस्त चुनाव प्रचार और कड़ी मेहनत के बावजूद, वहां लोगों की अपेक्षाओं पर खरे नही उतर सके। गंभीरता से आत्म विश्लेषण करने, सुधार करने और पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को प्रेरित और उत्साहित करने की जरूरत है। मणिपुर में पार्टी की कड़ी मेहनत का पूरा फल नहीं मिल सका फिर भी भाजपा वहां अपना जनाधार बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास है ।
संघीय ढांचे का लगातार उल्लंघन
बार-बार विरोध व्यक्त करने के बावजूद यूपीए ने राज्य सरकारों के अधिकार को कम करने के लिए संघीय ढांचे के सिद्धांतों के साथ छेड़छाड़ जारी रखी है। यूपीए के सहयोगी दलों सहित विपक्ष के विरोध के बावजूद यह लगातार जारी है। हाल में केंद्र सरकार का एकतरफा और मनमर्जी करने का उदाहरण देखने को मिला, उसने जिस तरीके से राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र (एनसीटीसी) रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) कानून में सुरक्षा संबंधी अधिकार को लेकर संशोधन किए हैं, उससे केंद्र और राज्यों के बीच में अविश्वास और संदेह बढ़ा है। देश की आंतरिक सुरक्षा को मनमाने ढंग से नहीं देखा जा सकता। राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रबंधन और संघीय ढांचे के सिद्धांतों के सम्मान को लेकर कोई मतभेद नहीं है। इस संबंध में राज्य सरकारों की बराबर की भागीदारी और जिम्मेदारी है। केंद्रीय सहायता और संसाधनों के आवंटन में भेदभाव, राज्यों की बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयला खदानों के आवंटन और राज्य विधानसभाओं में पारित अनेक विधेयकों को मंजूरी नहीं दिए जाने जैसे भेदभाव के अनेक उदाहरण गंभीर चिंता का कारण हैं। ऐसा निष्कर्ष निकालना सही होगा कि संघीय ढांचे के सिद्धांतों का सम्मान कांग्रेस के डीएनए का हिस्सा नहीं है।
भाजपा के लिए यह जरूरी है कि 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के मुख्य षड़यंत्रकारियों और इसकी योजना बनाने वालों को अभी तक सजा नहीं दिलाए जाने पर गंभीर रोष प्रगट करे। वे पाकिस्तान में सुरक्षित घूम रहे हैं, क्योंकि उन्हें पाकिस्तान के शासकों और वहां की सेना का संरक्षण हासिल है। इस बारे में भारत सरकार पाकिस्तान को विस्तृत जानकारी के साथ दर्जनों दस्तावेज दे चुकी है, लेकिन इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई है। भाजपा का दृढ़ मत है कि पाकिस्तान के साथ संबंधों को सामान्य बनाना तब तक संभव नहीं है, जब तक वह अपनी जमीन से भारत के खिलाफ होने वाली आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ कड़ी और निर्णायक कार्रवाई नहीं करता। भारत को आतंकवाद के साथ लड़ाई में पूरी तरह से सतर्क रहने और कठोर कार्रवाई करने की जरूरत है। आतंकवाद से निपटने के लिए किसी तरह की कोताही और समझौता नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह सुरक्षा और एकता का मामला नहीं है, बल्कि इससे देश की संप्रभुता जुड़ी हुई है।
माओवादी हिंसा ने गंभीर चिंता और चुनौती खड़ी कर दी है। पूरे देश को इस समस्या से पूरी तरह से सतर्क रहने की जरूरत है और इस चुनौती से निपटने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच पूरा तालमेल होना चाहिए। गरीबों की समस्याओं का हल ढूंढा जाना चाहिए, लेकिन हमें इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि माओवादियों का मूल उद्देश्य हिंसा के जरिए संसदीय लोकतंत्र का तख्ता पलटना और राजनीतिक ताकत हासिल करना है। यही वजह है कि वे जबरन निर्दोष लोगों का अपहरण और हत्या करते हैं। यह अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की इस घोषणा की सराहना की जानी चाहिए कि अगर मुख्यरमंत्री का भी अपहरण हो जाता है तो उनकी नाजायज मांगों के आगे नहीं झुका जाना चाहिए।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों खासतौर से हिंदुओं की स्थिति बहुत दयनीय है। वहां पर हिंदू लड़कियों का अपहरण करने के बाद जबरन धर्मांतरण करने और उनकी इच्छा के विरूद्ध विवाह कराने की घटनाएं अकसर सुनने को मिलती हैं। पुलिस ही नहीं बल्कि न्यायपालिका भी कई मामलों में उन्हें न्याय नहीं दिला पाती। पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों में अनेक हिंदुओं और व्यवसायियों की हत्या की जा चुकी है। हिंदू ही नहीं, बल्कि ईसाई भी दहशत में जी रहे हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों पर भी हमला हो रहा है। मानवाधिकार संगठनों ने अपनी अनेक रिपोर्टों में इस दुर्दशा की विस्तार से जानकारी दी है। भारत सरकार से आग्रह और मांग है कि वह पाकिस्तान के साथ दृढ़ता से सभी कूटनीतिक उपाय करे और पाकिस्तान में इन अल्पसंख्य्कों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए इससे जुड़े अन्य उपाय भी करे।
पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर से आ रहे हिंदू शरणार्थियों की स्थिति गंभीर चिंता का विषय है। उन्हें धार्मिक कारणों और अपनी आस्था के कारण जबरन वहां से भागना पड़ा है, क्योंकि उनके नागरिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा था तथा एक सम्मानजनक जीवन जीने की स्थितियां भी नहीं थीं। भारत सरकार को उनकी शिकायतों को दूर करने के लिए सभी उपाय करने चाहिएं, जिससे वे भारत में इज्जत और आत्मसम्मान के साथ रह सकें। उन्हें जबरन उनकी मातृभूमि से खदेड़ा गया है और वहां का शासन उनके बुनियादी मानवाधिकारों की अवहेलना कर रहा है, उन्हें शरणार्थियों और मानवाधिकार के उल्लंघन संबंधित अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार सम्मान से जीवन यापन का अवसर मिलना चाहिए।
यूपीए सरकार ने न केवल सिविल सोसाइटी को नाराज किया है, जो भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदारी तय करने की मांग कर रही है, बल्कि कैग और चुनाव आयोग के साथ भी उसका तकरार बढ़ा है। वे अपनी स्वायत्ता में हस्तक्षेप कि जाने की आशंका व्यक्त कर रहे हैं, भाजपा को अपनी सेना के साहस और शौर्य पर गर्व है, जो हमें सुरक्षा प्रदान करती है। वह हमारे संविधान और राजनैतिक स्वरूप के अनुसार राजनैतिक नेतृत्व के नियंत्रण मे काम करती है। हाल ही में सरकार और सेना के संबंधों में तनाव के अनेक उदाहरण सामने आए, जिनसे मजबूत शासन व्यवस्था के जरिए बचा जा सकता था। भाजपा भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए पर्याप्त अधिकारों के साथ एक प्रभावी लोकपाल के लिए प्रतिबद्ध है और इस संबंध में कोई देरी नहीं की जानी चाहिए।