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नई दिल्ली। शाही लीची को लेकर देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी अलग पहचान रखने वाले बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में इस वर्ष पैदावार में आधे से अधिक की कमी आने से चुनिंदा लोगों लीची पहुंच पायेगी। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एसके पूर्वे ने बताया कि जिले के करीब 45 हजार एकड़ क्षेत्र में इस बार 80 हजार से एक लाख टन तक लीची की पैदावार का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन मौसम की मार के कारण कम पैदावार होने से लक्ष्य कोसों दूर रह गया। लक्ष्य की तुलना में अनुमानत: अब तक महज 42 हजार टन लीची का उत्पादन हो पाया है और अधिक से अधिक इसके 45 हजार टन के आकड़े को छूने की संभावना है।
पूर्वे ने बताया कि लीची पकने के समय मौसम की अहम भूमिका होती है। इस बार भीषण गर्मी और ओला वृष्टि ने फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने उपज में कमी के लिए मौसम के साथ साथ किसानों को भी जिम्मेवार ठहराया और कहा कि उन्होंने वैज्ञानिकों की सलाह नहीं मानी, बारिश नहीं होने के कारण फल का आकार छोटा है, अहम समय पर तेज पछुआ हवाओं ने फसलों को क्षति पहुंचायी है, जिससे वे जल गई हैं या फिर फट गई हैं। वैज्ञानिक ने कहा कि लीची के फलों का आकार छोटा होने से उसका निर्यात नहीं किया जा सकता, निर्यात प्रभावित होने के कारण अधिकतर फल या तो स्थानीय बाजार में रहे गये हैं या फिर राज्य के अन्य पड़ोसी जिलों में पहुंच पाये हैं। जिला उद्यान अधिकारी राकेश कुमार का कहना है कि लीची केंद्र के निर्देशों का पालन किसानों ने नहीं किया, जिसके कारण भी पैदावार में कमी आई है।
वैज्ञानिकों ने किसानों को हिदायत दी थी कि भीषण गर्मी पड़ने की स्थिति में लीची के पेड़ के नीचे हल्की खुदायी करके पानी का प्रवाह करें, मौसम की मार के कारण कुल पैदावार में करीब साठ प्रतिशत लीची ऐसी है, जिसे केवल बिहार और स्थानीय बाजारों में ही बेचा जा सकता है। पर्याप्त मात्रा में शाही लीची का उत्पादन नहीं होने से अब तक विदेशों के लिए इसकी पैकिंग भी नहीं हो पायी है, गर्मी और ओलावृष्टि के कारण शाही किस्म की लीची की फसल करीब साठ फीसदी या जो जल गयी है या फिर फट गयी है, हालांकि, किसान अब भी इसके निर्यात को लेकर आशावान हैं।
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के पत्थलगांव में भी भीषण गर्मी और लू ने यहां की लीची की फसल चौपट कर दी है। मौसम का मिजाज बदलने के बाद इसके फल पेड़ों पर ही फटने लगे हैं। छत्तीसगढ़ कृषि उद्यान विभाग के सहायक निदेशक सियाराम यादव ने बताया कि जिले में लगभग 500 हेक्टेयर क्षेत्र में लीची की फसल होती है। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहां लीची की पैदावार में लगातार वृध्दि हुई है और इस वर्ष लीची के पेड़ फलों से लदे पड़े हैं, लेकिन भीषण गर्मी के कारण इन फलों में रस नहीं भर सका है। इस वर्ष लीची की अच्छी पैदावार के बाद भी किसानों को फसल का भरपूर लाभ मिलने की संभावना कम ही है।
सियाराम यादव ने बताया कि लू चलने से लीची की फसल को काफी नुकसान हुआ है। लीची के शासकीय उद्यान दुलदुला सहित कुनकुरी, फरसाबहार, जशपुर और पत्थलगांव में भी लीची की फसल चौपट हो गई है। गत वर्ष यहां लीची की 400 मीट्रिक टन से अधिक पैदावार हुई थी। इस वर्ष लीची की पैदावार डेढ़ गुना बढ़ी है, लेकिन तेज गर्मी के कारण लीची फट जाने से किसानों के पास बाहर के खरीददार नहीं आ रहे हैं। यहां की मीठी और रसभरी लीची होने के कारण छत्तीसगढ़ के महानगरों तथा पड़ोसी राज्य उड़ीसा से खरीददार हाथों-हाथ लीची उठा ले जाते थे, इस वर्ष फसल खराब होने से किसानों को मायूस हो जाना पड़ा है।
जशपुर जिले की बगीचा तहसील में लीची की अधिक फसल लेने वाले सजन जैन एवं संतोष गुप्ता ने बताया कि मार्च में लीची के फ्लू आने के बाद एक बार बारिश हो जाने से लीची की अच्छी फसल हो जाती थी। इस वर्ष ऐसा न होने से लीची के फलों में स्वाद भी नहीं आ सका है। संतोष गुप्ता का कहना है कि इस अंचल में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई होने के बाद यहां का तापमान निरंतर बढ़ने लगा है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष अप्रैल में तापमान 42 से 44 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है, जबकि पहले इसी मौसम में अधिकतम तापमान 33 से 38 डिग्री रहता था। उन्होंने कहा कि इस बार लीची की फसल चौपट होने के पीछे मौसम में बदलाव मुख्य कारण है।