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लखनऊ। अपनी सांस्कृतिक पृष्ठ भूमि को जानने, समझने और पहचानने के लिए अभिलेख एक सशक्त माध्यम है, अतः इनके महत्व से आम जनता को रूबरू करना अत्यावश्यक है। संस्कृति सचिव मनोज कुमार सिंह ने ये विचार अंतर्राष्ट्रीय अभिलेख दिवस पर अभिलेखागार परिसर के नवनिर्मित शहीद स्मृति भवन में अभिलेख प्रदर्शनी के उद्घाटन के मौके पर व्यक्त किये। इस अवसर पर उन्होंने ‘कॉफी टेबल बुक’ का लोकार्पण भी किया। उन्होंने अभिलेखों के संरक्षण में डिजिटलाइजेशन एवं माइक्रोफिल्म इत्यादि का प्रयोग करते हुए अभिलेखों के रख-रखाव की आधुनिक प्रक्रिया को अपनाने पर बल दिया, जिससे अभिलेखों तक जन-सामान्य की पहुंच हो सके।
अभिलेखागार नई दिल्ली से आए राजमणि ने इसे एक पावन दिवस बताते हुए कहा कि जो पूर्वजों से कमी रह गई, उसे हमें आगे पूरा करना है, अभी बहुत कुछ करना शेष है, अभिलेख दिवस की सार्थकता भी तभी होगी। सुप्रसिद्ध इतिहासविज्ञ पद्मश्री डॉ ओपी अग्रवाल ने कहा कि हमारे संरक्षित दस्तावेजों में अमूल्य खजाना है, हमारा इतिहास इन दस्तावेजों में बंद है, हमें इन्हें बचाना है, ताकि हमारा इतिहास हमारी संस्कृति बची रहे। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रिवेंटिव कंजर्वेशन को बढ़ावा दें, ताकि अभिलेख बीमार होने से बचे रहें, अभिलेख संरक्षण के क्षेत्र में इतना काम है कि एक जिंदगी कम पड़ सकती है, असंख्य चुनौतियां हैं, लेकिन हमें चुनौतियों के पार जाना है। सूर्य प्रसाद दीक्षित ने अभिलेखों के पुनर्पाठ शोधन पर बल देते हुए सरकारी स्तर पर कठोर नियम बनाने व निजी अभिलेखों को हस्तगत करके संरक्षित करने पर बल दिया।
प्रदर्शनी में बिहार, आसाम, उड़ीसा, गोवा, मणिपुर, केरल तथा पश्चिम बंगाल के अभिलेखागार के निदेशकों ने भाग लिया। विभिन्न राज्यों के प्राचीन अमूल्य अभिलेखों से सजी यह प्रदर्शनी अपने आप में अनूठी है। प्रदर्शनी में डॉ राम मनोहर लोहिया के पिता हीरालाल लोहिया का पत्र भी प्रदर्शित है, जो उन्होंने अपने पुत्र को जेल जाते समय लिखा था। इस पत्र में अपने साथ ले जाने वाली वस्तुओं में उन्होंने बाइबल, गीता और कुरान का भी जिक्र किया है। परिश्चम बंगाल के संग्रह में सुभाष चंद्र बोस का राम मनोहर लोहिया को लिखा पत्र भी प्रदर्शित है। प्रदर्शनी में राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली के फिरोजशाह तुगलक के काल का परवाना-19 अक्टूबर 1352, अकबर का फरमान, नूरजहां का हुक्म, दैनिक वंदेमातरम लाहौर से प्रकाशित सरदार भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त के चित्र, गुरूदेव रबींद्रनाथ टैगोर, सरोजनी नायडू, महात्मा गांधी, नेताजी, डॉ राजेंद्र प्रसाद, हीरालाल लोहिया, महादेवी, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जनरल करिअप्पा आदि से संबंधित अभिलेख प्रस्तुत किये गये हैं।
असम प्रांत की ओर से स्वाधीनता संग्राम को चार चरणों में प्रदर्शित किया गया है। आंदोलन में शहीद होने वाले प्रमुख शहीदों पियाली, बरफूकन, मनीराम दीवान पियाली बरूआ, फनकलता बरूआ, लाखी हजारिका कुशल कुंवर आदि सन-1942 में पुलिस फायरिंग में शहीद हुए 13 लोगों से संबंधित सामग्री भी प्रदर्शित है। गोवा राज्य की ओर से पुर्तगालियों और मराठों से संबंधित अभिलेख प्रदर्शित हैं। बिहार राज्य की सन् 1857 की क्रांति के नेता कुंवर सिंह, निशान सिंह, पीर अली, प्रतिबंधित पंपलेट ‘हाय विदेशिय’ राष्ट्रीय पत्र प्रभाकर, भारत दुर्दशा, नाटक खेलने के सिलसिले में कृष्ण सिंह के विरूद्ध कार्यवाही ‘भारत की युद्ध घोषणा’ का पर्चा, बिहार एवं उड़ीसा प्रांत सृजन आदि से संबंधित अभिलेख प्रस्तुत किये गये हैं।
इस अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया, जिसमें विभिन्न राज्यों से आए हुए प्रतिभागियों ने दुर्लभ अभिलेखीय विरासत के संरक्षण के प्रति जन जागरूकता बढ़ाने और जन-सामान्य को इस सांस्कृतिक कोष से परिचित कराने के संबंध में अपने-अपने विचार व्यक्त किये। प्रदर्शनी नौ जून से लेकर 15 जून तक दर्शकों के अवलोकनार्थ खुली रहेगी।