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नई दिल्ली। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के साथ बैठक में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों के 2011-12 में प्रदर्शन की समीक्षा और अगले कुछ माह के लिए इनका एजेंडा तय करने के लिए आयोजित इस बैठक में कहा है कि वर्ष 2011-12 बेहद चुनौतीपूर्ण था। विश्व अर्थव्यवस्था में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ और कच्चे तेल तथा उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें लगातार ऊंचाई पर रहीं। यूरो क्षेत्र के ऋण संकट ने समस्या बढ़ाई। घरेलू मोर्चे पर ध्यान मुद्रास्फीति का समाधान ढूंढने में लगा रहा, इसके परिणाम स्वरूप 2011-12 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर साढ़े 6 प्रतिशत रही जो उम्मीद से कम है।
वित्त मंत्री ने कहा कि अर्थव्यवस्था को तेज करने के लिए वे कुछ कदम उठा रहे हैं। सरकार परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने, घरेलू और विदेशी दोनों तरह के नये निवेशों को आकर्षित करना, विनियामक समस्याओं को हल करने जैसे कदम निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिए उठा रही है। भारतीय रिजर्व बैंक के रेपो रेट में कमी करने के बाद बैंकों ने ऋण दरों में उदारता बरती है। स्टेट बैंक ने पिछले हफ्ते जमा पर ब्याज दरों में बदलाव किया है। मौद्रिक प्रबंधन भी भारत की उच्च प्राथमिकता में है। नियमित शुल्कों की समीक्षा और रियायतों को जरूरतमंदों को उपलब्ध कराने पर अभी भी ध्यान दिये जाने की जरूरत है। इन सबके बावजूद उन्होंने आश्वस्त किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटेगी।
प्रणब मुखर्जी ने सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों को जमा और ऋण दोनों में अच्छी वृद्धि प्राप्त करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि पिछले वर्ष की तुलना में जमा राशि में 14.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इसका योग अब 50 लाख करोड़ रूपये को पार कर गया है। ऋण में वृद्धि का आंकड़ा तो पिछले वर्ष के मुकाबले 17.7 प्रतिशत ज्यादा है और इसका कुल योग 40 लाख करोड़ के पास पहुंच गया है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का शुद्ध लाभ 2011-12 में विषम आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद पिछले वर्ष के 44,900 करोड़ रूपये से बढ़कर 49,500 करोड़ रूपये हो गया है। उन्होंने प्रसन्नता जाहिर की कि कृषि ऋण का 2011-12 का लक्ष्य 475000 करोड़ से अधिक हो गया है और किसानों को अब तक 5,00000 करोड़ से अधिक ऋण दिये जा चुके हैं, यह प्रयास 2012-13 में 5,75000 करोड़ रूपये के कृषि ऋण के लक्ष्य को पाने में मदद देगा।
उन्होंने कहा कि आर्थिक समावेशन से प्राप्त फायदे बहुत खुशी की बात है। वर्ष 2010 में 2000 से अधिक की जनसंख्या वाले बैंक रहित गांवों तक पहुंच के लिए ‘स्वाभिमान योजना’ शुरू की गई थी, अब 74,194 गांवों को बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराने में सफलता मिली है। ऐसे गांवों में अति लघु शाखाओं को स्थापित करने और हफ्ते में कम से कम एक बार उनका निरीक्षण करने की जरूरत है। देश के 82 में से 80 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक कोर बैंकिंग प्रणाली अपना चुके हैं। ये बैंक उल्लेखनीय सुधार कर रहे हैं। ये अपने संरक्षक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की भुगतान प्रक्रिया से जुड़ चुके हैं और अपने एटीएम स्थापित कर रहे हैं। सरकार ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को दो वर्ष पर फिर से पूंजी उपलब्ध कराने की योजना को पिछले हफ्ते अनुमति दी है।
उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्ष में शैक्षिक ऋण की राशि दोगुना हो गई है और इस योजना के तहत लाभ पाने वाले छात्रों की संख्या भी दोगुनी हो गई है। ऐसे ऋण ज्ञानयुक्त कामगारों को तैयार करने में काफी मददगार होंगे। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था और देश को काफी मदद मिलेगी। एक ऐसी प्रणाली बनाई जाए, ताकि कोई भी मेधावी छात्र उच्च शिक्षा या व्यवसायिक शिक्षा से वंचित न रहे और उसे समय पर ऋण उपलब्ध हों। पेंशन के लिए स्वैच्छिक बचत को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने स्वावलंबन योजना शुरू की थी जिसके तहत सरकार ने श्रमिकों की एक हजार से 12 हजार रूपये तक की वार्षिक बचतों पर सालाना एक हजार रूपये जमा किए। सरकार की यह हिस्सेदारी पांच वर्षों तक उपलब्ध होगी। इस योजना के तहत खाताधारकों की संख्या पिछले वर्ष के 3.09 लाख रूपये से बढ़कर 2011-12 में 6.44 लाख रूपये हो गई है।