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लॉस काबोस। मैक्सिको के लॉस काबोस में जी-20 शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को संबोधित किया और कहा कि वैश्विक आर्थिक स्थिति बहुत ही चिंताजनक है, आर्थिक सुधार कारगर नहीं हो रहे हैं और तीव्र वृद्धि वाले उभरते बाज़ार भी लड़खड़ा रहे हैं। इस समय सभी मोर्चों पर नीतिगत कदम उठाने की आवश्यकता है। इस समय के सभी बड़ी चिंताओं में से एक यूरोजोन को प्रभावित करने वाली अनिश्चितता भी है। सम्प्रभु ऋण संकट और अब उभर रहे बैंकिंग संकट की वजह से पूरे वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर गहरा असर पड़ा है। ग्रीस की नई सरकार को अभी पदभार ग्रहण करना है, हम उनकी सफलता की कामना करते हैं और इस संबंध में उनके शुरूआती बयानों से उत्साहित हैं। उन्होंने घोषणा की कि भारत ने आईएमएफ के 430 अरब अमरीकी डॉलर के सुरक्षा कोष में 10 अरब अमरीकी डॉलर का अतिरिक्त योगदान देने का निर्णय लिया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हालांकि यूरोप में इस संकट का जोखिम बना हुआ है, क्योंकि वे बैंकिंग क्षेत्र में अत्यधिक सम्प्रभु ऋण और धीमे विकास के कारण आई कमजोरी को दर्शाते है। यूरोपीय बैंकिंग तंत्र के संकट के कारण व्यापार जगत को पूंजी उपलब्धता रुक सकती है और यह न केवल यूरोजोन में आर्थिक विकास को अवरूद्ध कर सकता है, बल्कि पूरे वैश्विक आर्थिक विकास को भी रोक सकता है। सम्मेलन के जरिये बाज़ार को एक ठोस संकेत देने की जरूरत है, ताकि यूरोजोन देश बैंकिंग प्रणाली के संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास करें और वैश्विक समुदाय विश्वसनीय यूरोजोन प्रयास और प्रतिक्रिया में सहायक हो। उन्होंने कहा कि एक चिंता यह है कि इस संबंध में जो सुरक्षा उपाय मौजूद हैं, वह इस संकट से निपटने के लिए पर्याप्त कारगर नहीं हैं। वैसे संसाधन जिन्हें फिलहाल यूरोप और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष-आईएमएफ के जरिये जुटाया जाना है, वह पिछले साल के अनुमान से कम हैं और वास्तव में यह संकट ज्यादा चिंताजनक है।
मनमोहन सिंह ने कहा कि बाज़ार के घटते विश्वास से निजात पाने के लिए तरलता बढ़ाना समाधान का एक अंश है, लेकिन केवल तरलता इसका समाधान नहीं कर सकती जब ऋण क्षमता पर ही प्रश्नचिन्ह हो। इस समस्या के निराकरण के लिए प्रभावी समायोजन कार्यक्रम के तहत तरलता समानांतर रूप से उपलब्ध कराई जानी चाहिए ताकि ऋण की सततता सुनिश्चित हो सके। अपनाये गये समायोजन कार्यक्रम को विकास को बढ़ावा देने में मददगार होना चाहिए, ताकि देश ऋण के जाल से बाहर निकल सकें। उन्होंने कहा कि यह मेरा ध्यान मितव्ययिता और विकास के बीच के संबंध के विवादित मुद्दे पर आकर्षित करता है और यह कहा जा सकता है कि मितव्ययिता अब बाद के सतत् विकास का आधार होगी, लेकिन एक वैकल्पिक विचार ऐसा भी है कि यदि विकास की गति गंभीर रूप से वैसे ही कमजोर रही, जैसी आज है तो ऐसी स्थिति में कई देशों में समकालिक मितव्ययिता बाज़ार का फायदा कर सकती हैं, लेकिन कई बार हो सकता है कि यह सही उपाय न हो।
उन्होंने कहा कि वित्तीय बाज़ार सामान्यत: मितव्ययिता के पक्षधर होते हैं, लेकिन फिर भी वे इसे समझने की कोशिश कर रहे हैं कि बिना विकास के साथ मितव्ययिता सतत ऋण का उत्पादक नहीं हो सकती। उन्होंने सुझाव दिया कि राजकोषीय विवेक महत्वपूर्ण नहीं है, केवल इतना कह रहा हूं कि वृहत समायोजन आवश्यकताओं को देखते हुए इनमें से सभी जगह मोर्चों पर कारगर नहीं हो सकते। यह मुद्रा क्षेत्र के भीतर विशेषकर प्रासंगिक है। यूरोजोन के ऋण संकट से ग्रसित सदस्यों में मितव्ययिता तभी काम कर सकती है, जब अधिकांश सदस्य मुद्रा क्षेत्र के भीतर मुद्रा संकुचन के विस्तार के लिए तैयार हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को यूरोजोन को स्थायित्व प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है, सभी सदस्यों को इस भूमिका को निभाने में मुद्रा कोष की सहायता करनी चाहिए।
मनमोहन सिंह ने कहा कि अधिकांश देश कठिनाइयों का सामना कर रहे है, अल्पविकसित एवं विकसित देश भी वैश्विक संकट के नकारात्मक प्रभाव के कारण कठिन समस्याओं का सामना कर रहे है। इस परिपेक्ष्य में विकसित देशों में आधारभूत क्षेत्रों में निवेश काफी मायने रखता है। यह उनकी अर्थव्यवस्था को शीघ्र गति प्रदान करने के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए मांग का एक मजबूत स्रोत प्रदान कर यह दीर्घकाल के लिए तीव्र विकास की नींव रखता है। विकासशील देशों में आधारभूत संरचनाओं में निवेश का विस्तार केवल तभी संभव है जब उन्हें ऐसे निवेश के लिए दीर्घकालिक पूंजी उपलब्ध हो। ऐसा उस समय में तो मुश्किल ही है जब पूंजी प्रवाह बाधित हो। इस संदर्भ में बहुद्देश्यीय विकास बैंक महती भूमिका अदा कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि धनी देशों के कार्यक्रमों में सहयोग के लिए हमने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के संसाधनों का लगातार विस्तार किया है। अब जरूरत है कि हम बहुद्देश्यीय विकास बैंकों के संसाधन भंडार के सतत् विस्तार के लिए कदम उठाएं, ताकि इसका इस्तेमाल विकासशील देश अपने विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कर सकें। जी-20 फ्रेमवर्क कार्यदल और वित्तीय स्थायित्व परिषद नियामक कार्य योजना के तहत सदस्य देशों की प्रतिबद्धताओं और प्रोत्साहन के जरिए आधारभूत संरचना में निवेश को प्रोत्साहन देने की योजना की समीक्षा करे। मेरी समझ में जी-20 की कार्य योजना का बोझ बहुत बढ़ गया है। हमें कोई मोर्चों पर ऊर्जा खपाने के बजाय अपने प्रमुख लक्ष्यों को फिर से निर्धारित कर उन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
दूसरी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की ही तरह भारत में भी विकास की गति धीमी हुई है। वैश्विक आर्थिक मंदी और खासकर पूंजी प्रवाह पर इसके प्रभाव में असर दिखाया है। आंतरिक बाधाओं ने भी प्रदर्शन को प्रभावित किया है और हम इसकी भरपाई करने की कोशिश कर रहे हैं। वर्ष 2011-12 में हमारी विकास दर पिछले वर्ष के 8.4 प्रतिशत से घटकर 6.5 प्रतिशत रह गई। पूरी दुनिया में मौजूद कठिन आर्थिक परिस्थितियों के मद्देनजर इस दर को उचित ठहराया जा सकता है, लेकिन हमारी जनता तेज विकास दर और तीव्र रोजगार सृजन के पथ पर लौटने के लिए बेकरार है। भारतीय अर्थव्यवस्था के आधारभूत तत्व अब भी मजबूत हैं और हमें पूरा भरोसा है कि आठ से नौ प्रतिशत की वार्षिक विकास दर वापस हासिल कर ली जाएगी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि दूसरे देशों की तरह हमने भी 2008 के बाद वित्तीय घाटा बढ़ने दिया, अब हम इसे कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इसके लिए नियंत्रित रियायतों समेत कई मुद्दों पर कठोर फैसले लेने होंगे और हम ऐसा करने के लिए दृढ़ संकल्प हैं। इस संदर्भ में, उन्होंने भारत में सभी निवासियों को उनके बायोमीट्रिक आंकड़ों से लैस विशिष्ट पहचान संख्या जारी करने के एक उल्लेखनीय प्रयास का जिक्र किया। एक अरब से ज्यादा लोगों को उपलब्ध होने वाले ये आंकड़े प्रभावी लक्ष्य निर्धारण और सब्सिडी योजना के घाटे को कम करते हुए उन्हें वित्तीय और अन्य सुविधाओं की पूरी खेप उपलब्ध कराएंगे।