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पुड्डुचेरी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि साउथ एशिया फाउंडनेशन, यूनेस्को मदनजीत सिंह इंस्टीट्यूशंस के जरिए क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने को समर्पित है, इसे दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में स्थापित किया गया है, इनमें से प्रत्येक संस्थान उस देश की किसी जानी-मानी हस्ती के नेतृत्व में कार्य कर रहा है, जिनमें से 6 यहां पुड्डुचेरी में मौजूद हैं। यूनेस्को दक्षिण एशिया मदनजीत सिंह संस्थान के समर्पण समारोह में उन्होंने कहा कि खुशी है कि म्यांमा में भी जल्दी ही इस फाउंडनेशन की एक शाखा खुलने वाली है, कुछ समय पहले मैं म्यांमा में ही था, दक्षिण एशिया के अन्य देशों के साथ संपर्क मजबूत करने और बढ़ाने के प्रति वहां के लोगों के उत्साह से मैं काफी प्रभावित हुआ था।
उन्होंने कहा कि दुःख है कि खराब स्वास्थ्य के कारण मदनजीत सिंह हमारे बीच नहीं आ सके हैं, मैं मैडम फ्रांस मार्कक्वेट का स्वागत करता हूं, जो बहुत सालों से उनकी सहयोगी और साउथ एशियाई फाउंडेशन की न्यासी हैं, मैं उनसे आग्रह करता हूं कि वे मदनजीत को हमारी ओर से जल्दी स्वस्थ्य होने की कामना प्रेषित कर दें, अब से कुछ ही सप्ताह बाद हम भारत की स्वतंत्रता की 65वीं वर्षगांठ मनाएंगे, औपनिवेशिक शासन के खिलाफ आजादी के संघर्ष में उच्च स्तर की आदर्शवादिता शामिल थी, जिसने लोगों को एक दूसरे से जोड़ा, न केवल हमारे उप महाद्वीप बल्कि एशिया और अफ्रीका के अन्य भागों में भी यह जुड़ाव रहा, लेकिन आजादी के उल्लासोन्माद और जोश के साथ-साथ मानवीय त्रासदी भी उठानी पड़ी।
उन्होंने कहा कि मदनजीत सिंह ने भी उस पीढ़ी के हम जैसे अन्य लोगों के साथ एक युवा के तौर पर अपनी आंखों से विभाजन के सदमे और संत्रास को देखा, जब भी मैं विभिन्न क्षेत्रों में लगे दक्षिण एशियाई नागरिकों से मिलता हूं, वे हमेशा उस इच्छा के बारे में बताते हैं कि वे हमारे देशों में शांतिपूर्ण तरीके से रहना और एक समान प्रगति के लिए साथ मिलकर काम करना चाहते हैं, मैं नहीं समझता कि इस स्वप्निल लक्ष्य को पाने के लिए मदनजीत सिंह से अधिक और किसी ने प्रयास किया होगा। वर्ष 2000 में उन्होंने साउथ एशिया फाउंडेशन की स्थापना की थी, ताकि प्रगतिशील दक्षिण एशिया की स्वप्न के साथ हमारे क्षेत्र के समान समझ रखने वाले सभी पुरूष और महिलाएं, इसमें अपनी ऊर्जा समर्पित कर सकें।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत सार्क के विचार के प्रति पूरी तरह समर्पित है। हाल की इसकी शिखर स्तरीय वार्ताओं में मैंने दक्षिण एशियाई नेताओं में इस संगठन के कामकाज के प्रति और अधिक प्रतिबद्धता देखी। दक्षिण एशिया के विचार के प्रतीक समझे जाने वाले अहम पहल अब आकार ले रहे हैं, दक्षिण एशिया विश्वविद्यालय ने काम करना शुरू कर दिया है और जल्द ही दिल्ली से कुछ ही दूरी पर इसका अपना एक पूरा परिसर होगा। सार्क विकास फंड का भी कामकाज आरंभ हो गया है और इसने सामाजिक परियोजनाओं पर अमल शुरू कर दिया है, लेकिन अभी भी खाद्य, ऊर्जा, जल सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में एक समग्र तथा क्षेत्रीय दृष्टि से और निकटता से सहयोग करना होगा।