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नई दिल्ली। विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक अशोक सिंघल ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर सेतु समुद्रम परियोजना के वैकल्पिक मार्ग के संबंध में मार्ग 6 के बजाय मार्ग 4(ए) को स्वीकार किये जाने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए गठित आरके पचौरी की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट, जैसा कि समाचार पत्रों से पता लगता है, पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर तैयार की गई प्रतीत होती है। आरके पचौरी की हिम ग्लेशियर के संबंध में दी गई रिर्पोट भी गलत सिद्ध हुई है, ऐसे में इस रिपोर्ट पर कितना विश्वास किया जाए, यह सभी के सोचने का विषय है।
अशोक सिंघल ने कहा कि यद्यपि इसी रिपोर्ट में यह तथ्य जरूर सामने आया है कि रामसेतु के आस-पास के खाड़ी क्षेत्र में रहने वाले जीव-जंतुओं का आर्थिक एवं पारिस्थितिक महत्व है और उन पर वैज्ञानिक दृष्टि से ध्यान दिया जाता है, अतः इस संपूर्ण क्षेत्र को संरक्षित किया जाना अतिआवश्यक है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि ऊर्जा प्राप्त करने के लिए आवश्यक तत्व थोरियम संपूर्ण विश्व में सर्वाधिक मात्रा में इसी क्षेत्र में विद्यमान है, साथ-साथ इस क्षेत्र में स्थित रामसेतु हिंदू समाज के लिए अत्यंत पूजनीय, वंदनीय एवं आस्था का विषय है, किंतु केंद्र सरकार इसको तोड़ना चाहती है। सरकार की मंशा पर शंका होना स्वाभाविक है, जो सरकार रामसेतु को तोड़े जाने के लिए राम के अस्तित्व को ही नकार दे, उससे क्या अपेक्षा की जाए?
विहिप नेता अशोक सिंघल ने कहा कि रामसेतु की रक्षा का एक मात्र रास्ता यही है कि पचौरी समिति की रिपोर्ट को खारिज करते हुए इस संपूर्ण परियोजना को ही रद्द किया जाए और रामसेतु को विश्व धरोहर एवं उस संपूर्ण क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए, अन्यथा विश्व हिंदू परिषद संतों के नेतृत्व में प्रचंड आंदोलन चलाने के लिए बाध्य होगी। विहिप किसी भी कीमत पर अपनी आस्थाओं के साथ खिलवाड़ को बर्दाश्त नहीं करेगी। ज्ञातव्य है कि इस परियोजना को लागू करने से जहां आस्थाएं आहत होंगी वहीं इस समुद्री मार्ग से विघटनकारी शक्तियों का आवागमन और ज्यादा बढ़ जाएगा, यही नहीं भारत आज जिस आतंकवाद का सामना कर रहा है उसे रोकना और ज्यादा मुश्किल हो जाएगा, व्यापार के नाम पर भारत की मुश्किलें पहले से ज्यादा बढ़ ही जाएंगी।