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अजमेर। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांशीराम उर्दू अरबी फारसी विश्वविद्यालय का नाम बदल कर ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती विश्वविद्यालय रखे जाने का मन बना लिए जाने पर किसी संभावित राजनीतिक विरोध से पहले ही अजमेर दरगाह के सज्जादनशीन सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने कड़ा ऐतराज जताया है। उन्होंने महान सूफी संत को किसी भी सियासत से दूर रखने की बात कही है और साथ ही कहा है कि अगर यूपी सरकार को ख्वाजा साहब में गहरी आस्था है और वह ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के नाम किसी शिक्षण संस्थान को नामित करना ही चाहती है, तो उनके नाम पर किसी नवीन संस्थान की बुनियाद डाले, किसी संस्थान का नाम बदलकर विश्व प्रसिद्ध संत को राजनीतिक विवाद में घसीटने की कोशिश से परहेज किया जाना चाहिए।
दरगाह के दीवान ने एक बयान जारी करके बताया कि मायावती सरकार के कार्यकाल में शुरू किये गए उर्दू अरबी फारसी विश्वविद्यालय का नाम बदलने के लिये सपा नेता एवं नगर विकास मंत्री आजम खां ने पिछले दिनों मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखकर विश्वविद्यालय का नाम उर्दू अरबी फारसी के किसी विद्वान या साहित्यकार के नाम पर रखे जाने का सुझाव दिया था। विश्वविद्यालय के कुलपति की और से इस सुझाव पर दस नाम आए थे, जिसमें सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के नाम पर सरकार ने सहमति जताई है।
सरकार की इस पहल पर अजमेर दरगाह के सज्जादानशीन दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खां ने कड़ा ऐतराज जता दिया है। उनका कहना है कि यूपी सरकार को ख्वाजा मोईनुद्दीन से अकीदत है, तो उनके नाम पर कोई नया संस्थान विकसित करे। यह कौमी यकजहती का मरकज है, इससे मुल्क में एक साथ रह रहे दो मजहबों में नाइत्तेफाकी का माहौल बनेगा, जो सामाजिक एकता के लिये ख़तरनाक हो सकता है। सज्जादानशीन ने कहा कि कांशीराम विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के नाम रखे जाने से ख्वाजा साहब की अहमीयत को कमतर आंकने का प्रयास किया गया है, ख्वाजा साहब एक महान आध्यात्मिक संत हैं, उन्हें किसी राजनीतिक हस्ती के समान नहीं समझना चाहिए।
उन्होंने कहा कि दूसरा और अगर कोई राजनीतिक दल या समुदाय सरकार के इस कारनामे का विरोध करता है, तो बेवजह ख्वाजा साहब का नाम विवाद में आएगा, जो किसी नजरिये सही नहीं होगा, क्योंकि गरीब नवाज सांप्रदायिक सद्भाव और शांति की मिसाल थे। उनके दरबार में हिन्दू , मुस्लिम, सिख, ईसाई दलित का कोई भेदभाव न था, वहां आज भी सभी को बराबर का सम्मान मिलता है। लिहाजा यूपी सरकार को ऐसी काई पहल नहीं करनी चाहिये, जिससे बेवजह का विवाद हो और जो देखने में तो बहुत अच्छी लगे, लेकिन उसमें राजनीति छिपी हो।