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श्रावस्ती पर भ्रष्टाचार और बाढ़ का कहर!

न बाढ़ रूकी, न पुल बने, तो धन गया कहां?

हरीश तिवारी

हरीश तिवारी

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श्रावस्ती। उत्तर प्रदेश का जनपद श्रावस्ती बेचारा बनकर रह गया है। उस पर भ्रष्ट अफसरों और नेताओं के गठजोड़ एवं बाढ़ का एक साथ कहर बरपा हुआ है। अल्पसंख्यक मंत्रालय (भारत सरकार) ने ही जनपद श्रावस्ती को देश के 90 अति-अविकिसित जनपदों की सूची में शामिल किया हुआ है, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस जिले का क्या हाल है। जनपद श्रावस्ती की सीमाएं उत्तर में नेपाल तथा जनपद बहराइच, जनपद बलरामपुर व जनपद गोंडा से लगती हैं। जनपद में केवल दो तहसील हैं-भिनगा (जिला मुख्यालय) और इकौना (मुख्य नगर)। भिनगा से इकौना की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है। मुख्य सड़क के नाम पर केवल बौद्ध परिपथ (state highway-26) है, जो कि जनपद को दक्षिण में छूता (वाया-इकौना) हुआ निकल जाता है। जनपद में रेल की व्यवस्था नहीं है।
अल्पसंख्यक मंत्रालय की executive summery श्रावस्ती के विकास की लगभग सही स्थिति को उजागर करती है। जनपद में सबसे मुख्य मुद्दा राप्ती नदी से प्रतिवर्ष कई बार आने वाली बाढ़ है, बरसात की बाढ़ का अनियंत्रित प्रवाह कई गावों को जलमग्न कर देता है। बाढ़, घरों, फसलों, सड़कों, बिजली के उपकरणों व अन्य सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट कर देती है एवं जनपद को विकास के मामले में और ज्यादा पीछे धकेल देती है।
श्रावस्ती को जनपद बने 15 वर्ष से भी अधिक हो चुके हैं परंतु विकास की दृष्टि से यहां कोई सुधार नही हुआ है। यातायात की स्थिति यह है कि राप्ती नदी को पार करने के लिए पूरे जनपद में केवल एक स्थायी पुल बहराइच-भिनगा मार्ग पर उपलब्ध है। जिला मुख्यालय भिनगा को जनपद के मुख्य नगर व तहसील इकौना से जोड़ने के लिए शासन ने अंधर पुरवा घात पर पुल परियोजना को वर्ष 1997 में मंजूरी दी और मुख्यमंत्री ने इस परियोजना का शिलान्यास भी किया, परंतु उसका कार्य शुरू होने में 10 वर्ष से भी अधिक समय लगा। कार्य जैसे-तैसे जनवरी 2008 में शुरू तो हुआ, मगर इस परियोजना को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने से कोई नहीं बच सका। जून 2010 में आवंटित कुल बजट 3284.98 लाख रूपए खत्म होने की बात कहकर कार्य बंद कर दिया गया।
जून 2010 तक किये गए कार्य में नदी के दोनों तरफ प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए बनाये जाने वाले गाइड बंध में से केवल नदी के दक्षिणी तरफ ही गाइड बंध बन सका। दक्षिण तट पर गाइड बंध बन जाने से नदी का प्रवाह अब उत्तर की तरफ आने का ख़तरा बढ़ गया है। नदी के उत्तरी किनारे पर सबसे नजदीकी ग्राम अंधर पुरवा है, जो कि नदी से 150 मीटर से भी कम दूरी पर है। उत्तरी किनारे पर सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं होने से कई और ग्राम महरौली, बैजपुर, शिवाजोत, गनेशिजोत, भोजपुर, मनोहरपुर, तिवारी पुरवा, गोबार व बंदरहा सीधे नदी की धारा में आते हैं। इन सभी ग्रामों की मिली-जुली आबादी लगभग 5000-7000 होगी। परियोजना के अधूरे काम व कोई सुरक्षात्मक इंतजाम न होने की वजह से इन सभी ग्रामों की जनता हर समय एक डर के साए में काट रही है। किसी भी समय पानी इनके जानमाल, आशियानों, खेत-खलियानों को उजाड़ सकता है।
भिनगा-इकौना संपर्क, जनपद के मुख्य नगर इकौना को जनपद मुख्यालय से जोड़ता है। सेतु परियोजना स्थल इकौना से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। झा से भिनगा अभी भी 20 किलोमीटर दूर है। नदी के उत्तरी किनारे की जनता आपातकाल की स्थिति में भिनगा पर निर्भर है। मार्ग के चालू न होने से वह भिनगा भी नहीं पहुंच सकती और पुल न होने से इकौना भी नहीं जा सकती। जनपद मुख्यालय, बैंक, एलपीजी गैस एजेंसी, चिकित्सा सुविधाएं, सभी के लिए लोगों को इकौना से भिनगा जाना आना पड़ता है। मार्ग के चालू न होने से जनता कई जन सुविधाओं का लाभ लेने से वंचित है एवं आपातकाल में जान भी गवानी पड़ती है।
सूचना का अधिकार के तहत उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार परियोजना में कुल पांच कार्य होने थे, जिनमे सेतु (518.81 लाख रूपए) का निर्माण उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम ने किया और नदी के दोनों तरफ गाइड बंध लागत 2538.26 लाख रूपए 400 मीटर पहुंच मार्ग, लागत 59.42 लाख रूपए 7 किलोमीटर अतिरिक्त पहुंच मार्ग, लागत 144.55 लाख रूपए और लघु सेतु लागत 23.94 लाख रूपए का कार्य लोक निर्माण विभाग (श्रावस्ती) ने किया जाना था। उपलब्ध कराए गए सेतु अंश में 70% व अन्य कार्य में 60% भौतिक प्रगति हुई है, परंतु जमीनी हकीकत यह है कि लोक निर्माण विभाग ने पांच कार्यों में से नदी के दोनों तरफ बनाये जाने वाले गाइड बंध में केवल नदी के दक्षिण तरफ ही बंध बनाया है, बाकी सभी कार्यों को ना तो करवाया गया और न ही कोई जानकारी दी गयी है।
परियोजना के लिए जारी शासनादेश के अनुसार परियोजना समय से पूरी हो, इसके लिए मुख्य विकास अधिकारी को पूर्णत जिम्मेदार माना गया है, तो फिर अगर धन की आवश्यकता थी, तो उसके लिए समय रहते इंतजाम क्यों नहीं किये गए? आवंटित धनराशि का उपयोग उसी कार्य हेतु किया जायेगा जिस कार्य हेतु उसका आवंटन किया गया है, परंतु वास्तव में लोक निर्माण विभाग ने कराये जाने वाले पांच कार्यों में से केवल एक ही कार्य कराया जो कि अपने आपमें अधूरा है, बाकी के अन्य चार कार्यों में कोई प्रगति नहीं देखी गयी है। जब कोई काम हुआ ही नहीं तो आखिर उसके लिए आवंटित धन गया कहां?
शासनादेश के बिंदु संख्या 3 के उप बिंदु 11 के अनुसार कार्य हेतु धन की अगली किश्त पाने के क्रम में कार्यदायी संस्था मुख्य विकास अधिकारी को फ़ार्म 42I पर भौतिक प्रगति की स्थिति उपलब्ध कराएं जिसे मुख्य विकास अधिकारी स्थलीय निरीक्षण करने के उपरांत ही आगे कार्यवाही हेतु प्रेषित करेंगे, सुकाना के अधिकार के तहत प्राप्त फॉर्म 42I की प्रतियों के अनुसार मुख्य विकास अधिकारी ने यह प्रमाणित किया है कि कार्य बनाये गए प्राक्कलन के अनुसार ही किया जा रहा है, अगर कार्य प्राक्कलन के अनुसार किया जा रहा है, तो फिर भौतिक प्रगति 70% (सेतु अंश) व 60% (गाइड बंध) के विपरीत वित्तीय खर्च 110% कैसे संभव है?
शासनादेश के ही अनुसार परियोजना पर होने वाले व्यय को आवंटित राशि तक ही सीमित रखने का प्रावधान किया गया था। बजट को पुनरीक्षित करने का कोई कथन नहीं है, लेकिन परियोजना पर होने वाला व्यय, आवंटित राशि से बाहर चले जाने का कारण सामान व मजदूरी की महंगाई बताया गया। (बजट का आवंटन 2004-05 के मूल्यों के अनुसार हुआ परंतु कार्य 2007-08 में शुरू हुआ) अगर पुराने प्राक्कलन के अनुसार बजट का आवंटन हुआ तो कार्य शुरू होने से पहले कोई कदम क्यों नही उठाए गए?

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