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नई दिल्ली। वाहन अनुसंधान एवं विकास संगठन और डीआरडीओ ने ‘भारत में प्रयोज्य गैसीकरण तकनीक’ परियोजना पर हाल ही में यहां एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला का लक्ष्य संभावित उद्योगों, अकादमियों, शोध एवं विकास संस्थानों को गैसीकरण एवं दहन के लिए एक राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना के प्रति प्रेरित करना था। तीन सत्रों में आयोजित इस कार्यशाला में इस क्षेत्र के विभिन्न वरिष्ठ वक्ताओं और विशेषज्ञों ने चर्चाएं कीं। कार्यशाला की अध्यक्षता रक्षा विभाग के शोध एवं विकास सचिव तथा रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार पद्मश्री डॉ विजय कुमार सारस्वत ने की।
डॉ सारस्वत ने उद्घाटन संबोधन में कहा कि यह परियोजना जैव ईंधन, शहरी ठोस कचरों, अधिक राख वाले कोयले और औद्योगिक कचरे आदि का प्रयोग कर बिजली उर्रवक और रसायन आदि के उत्पादन पर केंद्रित है। बहुपक्षीय गैसीकरण की तकनीक की यह परियोजना दुनिया में अपने प्रकार की पहली परियोजना है। अब तक पूरी दुनिया के विकसित और कुछ विकासशील देशों में भी गैसीकरण के लिए कच्चे माल के तौर पर एक ही पदार्थ के इस्तेमाल की तकनीक प्रयोग में लाई जा रही है। उन्होंने कहा कि इससे जहां नागरिक क्षेत्र की जरूरतें पूरी होंगी, वहीं हमारा लक्ष्य आवश्यकता के अनुरूप रक्षा जरूरतों के लिए हरित ऊर्जा के उत्पादन का है।
सुरक्षा बलों के संदर्भ में ऊर्जा सुरक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए डॉ सारस्वत ने बताया कि सशस्त्र बलों को ऊर्जा की सबसे ज्यादा जरूरत होती है और इसकी सबसे ज्यादा खपत सुदूरवर्ती इलाकों में होती है। इसी प्रकार ईंधन का परिवहन भी एक बड़ा मुद्दा है और हमें ऐसी तकनीकों की जरूरत है, जो उपभोग स्थलों के पास ही ऊर्जा पैदा कर सकें तथा ऊर्जा उत्पादन के लिये आसपास मौजूद कच्चे माल का प्रयोग कर सकें। भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार डॉ आर चिदंबरम तथा आरआईएसके चेयरमेन श्याम शरण ने भी कार्यशाला को संबोधित किया।
भारत के प्रधानमंत्री की जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना के तहत राष्ट्रीय मिशन-9 कार्यक्रम ऊर्जा और हाइड्रोजन के लिए बहुपक्षीय गैसीकरण तकनीक संयंत्र के लिए देशी तकनीक के निर्माण को स्पष्ट रूप से बढ़ावा देता है। इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष शोध के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) अहमद नगर स्थित वाहन अनुसंधान एवं विकास संगठन में गैसीकरण एवं दहन के लिए राष्ट्रीय उत्कृष्टता केन्द्र की स्थापना कर रहा है। इस केंद्र का लक्ष्य उन स्वच्छ गैसीकरण तकनीकों की स्थापना और विकास है, जो ऐसे तत्वों का प्रयोग ऊर्जा उत्पादन के लिए कर सकें, जो आम तौर पर उपलब्ध रहने पर भी बेकार समझे जाते है और ऊर्जा उत्पादन के लिए नहीं होता है।