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नई दिल्ली। सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली की भारत यात्रा पर भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि सिंगापुर भारत का एक निकट मित्र और माननीय क्षेत्रीय भागीदार है, दोनों के संबंध बहुत व्यापक और बहुमुखी हैं। इन संबंधों के पीछे परस्पर हितों की एक अंतर निहित धारा है, जो राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, रक्षा और सुरक्षा संबंधी मुद्दों को जोड़ती है। नियमित रूप से होने वाले उच्च स्तरीय व्यक्तियों की यात्रा के आदान-प्रदान और रचनात्मक संवाद तंत्र की संरचना के जरिये हमारी मित्रता पोषित होती है, जिसका परिणाम है-जनता से जनता स्तर का जीवंत संबंध। उन्होंने कहा कि इससे पहले वह 2005 में भारत यात्रा पर आए थे, जब उन्होंने भारत के साथ आर्थिक सहयोग के समग्र समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, जो अपने ढंग का पहला समझौता था, जिसे भारत ने किसी भी देश के साथ संपन्न किया था।
मीडिया को जारी किए गए वक्तव्य में मनमोहन सिंह ने कहा कि सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली और उन्होंने भारत-सिंगापुर के आपसी संबंधों से जुड़े सभी मुद्दों पर बहुत सार्थक चर्चा की है। दोनों इस बात पर सहमत हैं कि जहां हमने हर क्षेत्र में प्रगति की है, वहीं अनेक ऐसे क्षेत्र शेष रहते हैं, जहां हम संबंध और अधिक मजबूत कर सकते हैं। सिंगापुर भारत का आसियान देशों का प्रमुख व्यापार भागीदार ही नहीं, बल्कि भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह का एक प्रमुख स्रोत भी है। मैंने मूल सुविधा क्षेत्र में सिंगापुर से भारत में अतिरिक्त पूंजी निवेश आने का स्वागत किया था, जिसमें सिंगापुर बहुत आगे है। हमारे बीच इस बात पर भी सहमति हुई है कि चल रहे समग्र आर्थिक सहयोग समझौते की जल्दी से जल्दी समीक्षा की जाए, क्योंकि इससे माल, सेवाओं और पूंजी निवेश के आने में और सुविधा होगी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस प्रसंग में मैंने प्रधानमंत्री ली को भरोसा दिलाया है कि भारत ने अपनी पूंजी निवेश हितैषी छवि को और मजबूत करने के प्रति वचनबद्धता जाहिर की है। मुझे उम्मीद है कि वर्तमान परिदृश्य में सिंगापुर की कंपनियां भारत को एक अनुकूल पूंजी निवेश गंतव्य के रूप में देखेंगी। हम दोनों ने कार्यकारी क्षेत्र में सहयोग पर चर्चा की, जिनमें शिक्षा और कौशल विकास शामिल हैं। सिंगापुर विश्व नेता है और उसने इस क्षेत्र में कई विशिष्ट संस्थानों का विकास किया है। व्यवसायिक शिक्षा और कौशल विकास में सहयोग संबंधी जिस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गये हैं, वह इस क्षेत्र में सहयोग की रूपरेखा प्रस्तुत करेगा। दिल्ली में भी कौशल विकास पर एक विनिर्दिष्ट सहयोग परियोजना सामने आ रही है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ली और मैंने रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में भी परस्पर सहयोग और आदान-प्रदान बढ़ाने का फैसला किया है। इस उद्देश्य से हमने आज ही एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके अपनी वायुसेनाओं के संयुक्त प्रशिक्षण एवं अभ्यास का पुनर्नवीकरण और परस्पर संपर्क सुनिश्चित किया है। सिंगापुर और भारत लोकतंत्र, बहुलवाद और पंथ निरपेक्षता के सिद्धांतों में विश्वास करते हैं और यही बात हम दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों पर सहयोग का मार्ग प्रशस्त करती है। हम अनेक क्षेत्रीय तंत्रों जैसे-पूर्व एशियाई शीर्ष बैठक, आसियान और आसियान क्षेत्रीय मंच पर मिलकर काम कर रहे हैं। हम दोनों मिलकर एशिया में सर्वसमावेशी क्षेत्रीय सहयोग की संरचना के लिए काम करने में विश्वास करते हैं, जिससे हमारे बीच विश्वास बढ़ा है। हमने वैश्विक आर्थिक स्थिति पर चर्चा की है और हम दोनों के बीच इस बात पर सहमति हुई है कि इस सिलसिले में दुनिया में संयुक्त रूप से अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई किये जाने की जरूरत है।
उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि प्रधानमंत्री ली की यह भारत यात्रा भारत-सिंगापुर के संबंधों में एक मील का पत्थर बनी रहेगी। इस साल के आखिर में भारत-आसियान संस्मारक शीर्ष बैठक का आयोजन किया जाएगा, जो आसियान देशों के साथ हमारी संवाद भागीदारी की 20वीं जयंती मनाने के उपलक्ष्य में होगी। बहुत खुशी है कि प्रधानमंत्री ली इस मौके पर फिर से भारत आने पर सहमत हो गए हैं।