भाग्यश्री काले
मुंबई। आध्यात्म और रोमांच यदि साथ-साथ हों तो कितना अच्छा हो जाता है! हिंदुस्तान में ऐसी अनेक जगह हैं, जहां इसका अद्भुत संगम है। धन्य हैं, पर्यटन की वे वादियां, बादलों और कोहरे से घिरी लिपटी पर्वत श्रंखलाएं और वे ऐतिहासिक स्थान जो प्रकृति ने हमें उपहार में दिए हैं, जहां हर वर्ग के सैलानियों को उनके मनपसंद आनंद के अवसर ही अवसर मिलते हैं। यूं तो आज पर्यटन और इसमें रोज़गार पर सरकारें बहुत ज़ोर दे रही हैं, किंतु प्राकृतिक सम्मोहन से भरपूर ये स्थान बिना विकसित किए ही रोमांच और सैर का लुफ्त देते हैं। प्रकृति प्रेमियों ने ऐसी एक नहीं बल्कि देश में हजारों घाटियों और वादियों को अपना सुरम्य स्थल और मनोरंजन एवं सैर का स्वर्ग बनाया है।
जी हां! हम बात कर रहे हैं-कलसुबाई मंदिर पर्वत शिखर की और उसके चारों ओर पर्वत श्रृंखलाओं से अटखेलियां करते बादलों और कोहरे की। एक रोमांचकारी मस्त ट्रेकिंग अनुभव की। यहां पर गिरते-पड़ते पहुंचने की युवाओं में होड़ रहती है। यहां कल्पना कीजिए आसमान छूती मस्ती की और जी भरकर लीजिए प्रकृति का आनंद। जो लोग आध्यात्मिक इच्छा रखते हैं, उनके लिए भी श्रद्धा और भक्ति के इस विख्यात देव स्थान पर हरएक नवरात्र पर आस्था का सैलाब अपने चरम पर होता है। यह उच्चतम शिखर ऊपर से लोगों का ध्यान आकर्षित करता है, यदि आसमान साफ हो तो यहां से काफी दूर नासिक शहर भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
बारिश में निसर्ग वातावरण में मुंबई की युवा पीढ़ी यहां घूमने के लिए बेहद उत्साही रहती है। युवक-युवतियां अपने दोस्तों के साथ पिकनिक के लिए जहां किसी किला अथवा शिखर पर ट्रेकिंग के लिए जाते हैं, मौज-मस्ती और अपने मित्रों के साथ खूबसूरत पलों का आस्वाद लेते हैं तो यही वह महाराष्ट्र का सबसे उच्चतम शिखर है, जिसे कहा जाता है-कलसुबाई। यह तालुका अकोला और जिला अहमदनगर के इगतपुरी में है। कलसुबाई शिखर चढ़ने के लिए बारी नामक छोटे से गांव से गुजरना पड़ता है। मुंबई से यहां पहुचने में लगभग चार घंटे लगते हैं। कलसुबाई शिखर की ऊंचाई तकरीबन 1646 मीटर है। इस जगह पर काफी ठंड है, जिसमें युवा पीढ़ी अपने दोस्तों के साथ ट्रेकिंग और मस्ती के लिये जाती है।
महाराष्ट्र की सह्याद्री पर्वत शृखंला के सर्वोच्च शिखर पर है, यह छोटा सा कलसुबाई मंदिर। यह एक बहुत जागृत मूर्ति स्थान माना जाता है। यहां खड़ी चढ़ाई है और यहां जाते समय आपके पास खाने की चीजें और पानी की बोतल रखना बहुत जरुरी है, गर्मियों के दौरान तो यहां का पानी पीने योग्य नहीं रहता है। यहां पर ठंडी और बारिश के मौसम में बेहद लाजवाब वातावरण मिलता है। जुलाई में यहां का दृश्य बड़ा प्यारा और खूबसूरत दिखता है। बारिश के मौसम में झरने और बरसते हुए बादल, कोहरा, क्या नही है यहां? इस मौसम में ट्रेकिंग करना अत्यंत मजेदार हो जाता है। अगर आप बारिश में कलसुबाई गए तो आपको लगेगा कि आप महाराष्ट्र में सबसे ऊंचाई वाले स्थान पर खड़े हैं और रिमझिम बरसात के साथ कोहरा भी देख रहे हैं।
कलसुबाई शिखर अपनी ऊंचाई के कारण आसपास में बेहद मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। कलसुबाई मंदिर पहुंचना कई सारे ट्रेकर्स के लिए एक चुनौती है। हर यात्री को यहां बहुत ही संभलकर चढ़ना होता है। यहां के कुछ हिस्सों में चढ़ना काफी टेढ़ा है, पैर फिसला तो सीधे नीचे। यहां के रास्ते में लोहे की तीन सीढ़ी हैं, जहां बड़ी सावधानी बरतनी होती है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में कलसु नाम की एक महिला यहां के गांव में आई, जिसे कुछ स्थानीय लोगों ने घरेलू कार्य करने के लिए मजबूर किया और अंत में उसकी मृत्यु हो गई। इसी की स्मृति में लोगों ने पर्वत शिखर पर मंदिर बनवाया, जिसे आज कलसुबाई मंदिर कहा जाता है। पारंपरिक पुजारी मंगलवार और गुरुवार को यहां आता है। नवरात्र पर विशेष मेला लगता है, सभी नौ दिन विशेष पूजा होती है और कलसुबाई मूर्ति को पूरी तरह से सजाया जाता है।