भावना सक्सेना
पेरामरिबो। लाखों-करोड़ों लोगों को अपने जल से सिंचित और मोक्ष प्रदान करने वाली गंगा, भारत में ही नहीं, अपितु भारत के बाहर भी आस्थावान बनी हुई है। एक देश है सूरीनाम। भौगोलिक रूप से 16000 किलोमीटर दूर इस छोटे से देश में लोग गंगा माता मंदिर और वहीं की नदी के पास गंगा घाट बनाकर गंगा की पूजा अर्चना करते हैं। उनका मानना है कि गंगा समुद्र में मिलती है और समुद्र एक दूसरे से मिलते हैं, इस तरह गंगा सूरीनाम में भी है। वर्ष 2010 में यहां कुंभ पर्व का आयोजन भी हुआ।
ऐतिहासिक रूप से गंगा के मैदान से ही हिंदुस्तान का हृदय स्थल निर्मित है और इस स्थल से जब भी लोग बाहर निकले, गंगा को अपने हृदय में लिए निकले। उनकी पवित्रता, शुचिता की बूंदें जहां-जहां पड़ीं वहां एक नवीन गंगा का उद्गम हुआ। गंगा सिर्फ नदी नहीं है, गंगा एक संस्कृति है, एक आस्था है, जो भौगोलिक सीमाओं को पार कर विश्वव्यापी हो चुकी है।
नवंबर 2008 में सूरीनाम पहुंचने के लगभग एक सप्ताह पश्चात जब मैने सुना कि कोई गंगा स्नान के लिए गया है तो बहुत हैरत हुई! मन ही मन में अनुमान लगाया कि इतनी दूर गया व्यक्ति एक माह से पहले तो क्या वापस आएगा? किंतु जिज्ञासा के कारण पूछना आवश्यक था, तो पूछ ही लिया कि वापसी कब तक होगी? और जब मुझे बताया गया कि उसी शाम को, तो हैरत और कई गुना बढ़ गयी! मेरी हैरानी समझते हुए सामने वाले व्यक्ति ने बताया कि जिस व्यक्ति की मुझे तलाश है, वह सूरीनाम में ही रामेश्वरम तीर्थ स्थान पर गंगा स्नान के लिए गया है।
रामेश्वरम! गंगा स्नान! सूरीनाम में? जी हां! यही था सूरीनाम में गंगा से मेरा पहला परिचय। पतित पावनी, मोक्षदायिनी! कपिल मुनि से भस्मीकृत, राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों को पवित्र करने के लिए स्वर्ग से उतरी, शिवजी की जटाओं में संभली, सदियों से तर्पण करती आ रही, अनेक पौराणिक कथाओं से जुड़ी भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी गंगा! जिसके बारे में मान्यता है कि तीसरी सदी में अशोक महान के साम्राज्य से लेकर 16वीं सदी में स्थापित मुगल साम्राज्य तक सारी सभ्यताएं गंगा नदी के किनारे विकसित हुईं।
करीब 2510 किलोमीटर लंबाई वाली यह नदी आखिर भौगोलिक रूप से 16,000 किलोमीटर दूर स्थित एक छोटे से देश में क्या कर रही है? कैसे पहुंची गंगा यहां? क्या संभव है कि महासागरों से मिलता हुआ गंगा का जल सात समंदर पार अटलांटिक महासागर में दक्षिण अमरीका के उत्तर पूर्वी तट सूरीनाम भी पहुंचता है? सूरीनाम के सनातनी हिंदुओं की आस्था है कि ऐसा संभव है! जब सारी नदियों का जल सागर में और सभी सागर एक दूसरे में मिलते हैं, तो पवित्रता संचारित हो विश्व के इस कोने में पहुंचना असंभव भी नहीं। पर इस आस्था में भौगोलिकता से अधिक भावनात्मक पक्ष है, जिसके कारण सूरीनाम में और न सिर्फ सूरीनाम में, विश्व के उन सभी स्थानों पर जहां हिंदू हैं, वहां गंगा अथवा गंगा घाट की परिकल्पना की गई है।
सूरीनाम में गंगा माता मंदिर में प्रत्येक वर्ष गंगा स्नान व गंगा दशहरा पर विशेष पूजा आयोजित की जाती है। वर्ष 2011 के गंगा स्नान पर एक स्थानीय मंदिर "श्रीकृष्ण धाम" ने कुछ कदम आगे बढ़ाते हुए एक पूरे निजी नदी तट (व्हाइट बीच) को किराए पर लेकर, प्रत्यक्ष रूप से सफाई कराकर व मंत्र इत्यादि से शुद्धि कर, इस स्थान पर कार्तिक पूर्णिमा स्नान व पूजा का आयोजन किया। पंडित कृष्ण दत्त मथुरा प्रसाद शर्मा का तर्क है कि "शरीर की शुद्धि से अधिक महत्वपूर्ण है, आत्मा की शुद्धि और कार्तिक स्नान पर्व पर आत्मा की शुद्धि के लिए स्थान से अधिक भाव महत्वपूर्ण हैं। हम सभी को बताना चाहते थे, किस तरह सही पूजन इत्यादि किया जाता है। इस दिन दीपदान व नहान का बहुत महत्व होता है और यह मन कि शांति व शुद्धि के लिए किया जाता है।" पंडित मथुराप्रसाद शर्मा युवा वर्ग को अधिक से अधिक धर्म व संस्कृति से जोड़ना चाहते हैं और यही कारण है कि समय-समय पर नवीन प्रयोग करते रहते हैं।
इनके अतिरिक्त हर घाट पर गंगा स्नान कराने के लिए पंडित उपलब्ध हैं। घाट पर मिली एक बुजुर्ग महिला का कहती है–" बिटिया गंगा तो शायद इस जनम में हमें न मिले, हम यहीं गंगा समझ पूजा कर लेई हैं।" वास्तव में; न सिर्फ गंगा अपितु भारत को देखने की भी इतनी इच्छा यहां के बुजुर्गों में देखी जाती है कि स्वतः ही प्रश्न उठता है कि अपनी संस्कृति से कैसा मोह है इन लोगों में? ये भारत से दूर इस धरती पर जन्में, यहीं इनका जीवन गुजरा और अंत भी यहीं होगा, पर कौन सी गर्भनाल आज भी इन्हें भारत से जोड़ती है? शायद इसका उत्तर एक ऐसी संस्कृति से प्राप्त संस्कारों में है, जिसे विश्व सदा कौतूहल की दृष्टि से देखता रहा है और देखता है। अभिव्यक्ति से साभार।