भाग्यश्री काले
मुंबई। कृष्ण पैदा तो हुए उत्तर प्रदेश के गोकुल गांव में, मथुरा-वृंदावन में पले-बढ़े, द्वारिका पुरी में जाकर रहे और उनकी लीलाओं और बाल क्रीड़ाओं पर सबसे ज्यादा मुग्ध और मस्त मुंबई है। जी हां, महाराष्ट्र के घर-घर में "गोविंदा आला रे आला, जरा मटकी संभाल बृजबाला" गाना झमाझम बज रहा है। ये गाना संपूर्ण मुंबईवासियों में गोविंदा पथक गोपाल काला के त्योहार में ग़जब का उत्साह भर देता है। इस साल मुंबई और ठाणे के साथ ही महाराष्ट्र राज्य में दही हांडी फोड़ने के लिए हजारों से ज्यादा गोविंदा पथक तैयार हैं। बड़े पैमाने पर सबसे ज्यादा कीमतों वाली दही हांडी फोड़ने के लिए सभी मंडलों की टोलियां अपने-अपने प्रयत्न करने के लिए बेताब हैं।
यूं तो इतने सारे आदर्श और महान चरित्र श्रीकृष्ण में देखने को मिलते हैं, लेकिन उनके बाल्यकाल का यही एक ऐसा चरित्र है, जो बच्चों से लेकर बड़ों तक को आत्मविभोर करता है। कृष्ण के बाल्यकाल की सबसे लोकप्रिय शरारत ऊंचे छीका तक पहुंच बनाकर माखन चुराने की यहां हर जगह तैयारी है। यहां के गोविंदा, शरीर पर सफ़ेद रंग का बनियान और हाफ पैंट पहनकर माथे पर "गोविंदा रिबिन" बांधकर घर से मटकी फोड़ने के लिए निकलते हैं। दही, दूध, केला के साथ ही हजारों से लाखों रुपए लगी हुई माला के साथ ही सबसे ऊंचाई पर बांधी गई हांडी पर गोविंदाओं का आकर्षण भरा लक्ष्य रहता है।
मुंबई और ठाणे में दही हांडी के लिए सबसे बड़े थर लगाये जाते हैं। गली-मुहल्लों के मंडल दही हांडी फोड़ने के लिए काफी मेहनत से तैयारी करते है। मुंबई, ठाणे और पुणे शहर में करीबन पांच हजार रुप्यों से लेकर लाखों रुप्यों की दही हांडी बांधी जाती है। हालांकि इन तीनो शहर में कितनी हांडिया बांधी गई हैं, इस वक्त यह ठीक से बताया नहीं जा सकता। मुंबई पोलिस दही हांडी का उत्सव शांतिपूर्वक हो सके, इसलिए हर जगह कड़ी सुरक्षा और इंतजाम करती है। मुंबई में कुछ ही दिनों में गोविंदा की टोली ढोल और बैंड के साथ रास्तों पर उतरने वाली है-गोविंदा आला रे..! आला..!!
महाराष्ट्र के इस उत्सव में ज्यादा ही भीड़ रहती है। सबसे ऊंची हांडी कौन सा मंडल फोड़ने वाला है, इस पर पूरे महाराष्ट्र की नज़र रहती है। पिछले साल करीब 70 से ज्यादा गोविंदा इस प्रतियोगिता में घायल हुए थे, लेकिन किसी भी गोविंदा को इसका डर नहीं है। वे अपनी जान की बाजी लगाकर दही हांडी का उत्सव जोश से मनाते हैं। इसे देखते हुए इस साल गोपाल काला उत्सव में भाग लेनेवाले दही हांडी मंडल के गोविंदाओं और कार्यकर्ताओं को मुंबई महानगर पालिका आर्थिक सुरक्षा भी देगी। इसमें जख्मियों को 10 हजार रुप्यों और अगर अपघात होकर कोई मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो उसके परिवार को एक लाख रुप्यो की मदद दी जाएगी। गोपाल काला, गोकुलाष्टमी और श्रीकृष्ण जन्मोत्सव भारत ही नहीं दुनिया भर में धमूधाम से मनाया जाता है। जगह-जगहर धार्मिक कार्य होते हैं और श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का मंचन होता है।
लेकिन मुख्य आकर्षण है मुंबई का कोकनी मानुस कृष्णजन्म और गोकुलाअष्टमी की धूम, जो प्रत्यक्ष मथुरा से लेकर उत्तर भारत में होती है। इसमें भी दही हांडी त्योहार की यह धूम सिर्फ मुंबई में ही होती है, मुंबई दही हांडी का खास क्रीड़ा क्षेत्र है। बीते सौ सालों के महाराष्ट्र के इतिहास में इसका वर्णन मिलता है। हालांकि गोकुलाष्टमी मनाने की प्रथा यहां किसने और क्यों चालू की, इसके बारे कोई सही जानकारी नहीं है, लेकिन सार्वजनिक गणेशोत्सव की प्रथा यहां लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के राष्ट्रीय जागृति से शुरू हुई थी। उसी समय मुंबई, विशेष रूप से कोकणी मराठी इंसान ने मध्य मुंबई से लालबाग, परल, दादर और गिरगाव जगहों से दही हांडी फोड़ने की की प्रथा शुरू की, ऐसा कहा जाता है। मुंबई शहर के जो खास महत्वपूर्ण उत्सव कहे जाते हैं, उनमे दही हांडी भी प्रमुख है।
इस अवसर पर यहां बच्चों के लिए भी विशेष आयोजन होते हैं। दही हांडी के आयोजकों में कई राजनेता शामिल हैं, जो ऊंचाई पर टंगी दही हांडी तक पहुंचने वाले गोविंदाओं पर रुप्यों की शर्त भी लगाते हैं। सामान्यतौर पर जन्माष्टमी के दूसरे दिन दही हांडी उत्सव मनाया जाता है। इस विशेष आयोजन में दूध, दही, सूखे मेवे और घी से भरी मटकी को 20 से 30 फुट की ऊंचाई पर लटकाया जाता है और गोविंदाओं को इस तक पहुंचकर इसे हासिल करना होता है। जो मटका फोड़ देता है, उसे ही इनामी राशि दी जाती है। चारों ओर ढोल-नगाड़ों की गूंज होती है और लोग उत्साह से झूमते हैं। प्रतियोगिता में ऊंचाई पर दही और मक्खन से भरी मटकी लटकाई जाती है और गोविंदाओं की जो टोली मानव पिरामिड के जरिए मटकी तक पहुंचने में कामयाब रहती है, उसे पुरस्कृत किया जाता है।
ठाणे में तो कुछ गोविंदाओं की टोलियों ने नौ स्तरों वाले मानव पिरामिड का रिकॉर्ड तोड़ने के लिए इस बार 10 स्तरों वाला मानव पिरामिड बनाने का लक्ष्य रखा है। मध्य मुंबई के ठाणे और घाटकोपर व दक्षिणी मुंबई के घाटकोपर में तो पुरस्कार राशि 25 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक निर्धारित की गई है। सात से 10 स्तरों तक के मानव पिरामिड बनाने वाले गोविंदाओं की टोलियों को ये पुरस्कार दिए जाएंगे। लावणी नृत्य, अन्य प्रकार के नृत्य-संगीत, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं। दही हांडी फोड़ने के लिये लड़कियां भी लड़कों की बराबरी करने लगी हैं। कुछ साल पहले कुर्ला प्रबोधन संस्था ने दही हांडी उत्सव में महिलाओं को शामिल किया। कुर्ला प्रबोधन के संस्थापक भाऊ कोरगावकर ने गोरखनाथ महिला दही हांडी पथक की स्थापना की थी। शुरवात में इसका बहुत विरोध भी हुआ कि लड़कियां दही हांडी कैसे फोड़ेंगी? लेकिन इसमें जागरुकता काम आई और समाज को विश्वास में लिया गया। तब से लड़कियां, महिलाएं भी प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही हैं।
मुंबई में समय के साथ-साथ इस उत्सव का स्वरूप बदलता जा रहा है, क्योंकि इस उत्सव में एक दूसरे में प्रतियोगिता, उसके साथ ही पैसा और ग्लैमर आ चुका है। मुंबई में ये ऐसा त्योहार है, जिसका हर राजनीतिक पार्टी और मंडलों को इंतजार रहता है। यही तो वक्त होता है, जब आम जनता में वे अपनी पार्टी की प्रसिद्धी और शेखी का मिलान करते हैं। यहां मनसे, शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस, इन सभी में प्रतियोगिता लगती है। कौन सबसे ज्यादा रुप्यों की हांडी लगाएगा, सभी में इस पर लक्ष्य रहता है। कई सारे राजनेता तो अपनी पार्टी की हांडी फोड़ने और गोविंदाओं के जोरदार मनोंरजन एवं उत्साह के लिए फ़िल्मी कलाकारों को बुलाते हैं। कई स्टार्स अपने फिल्म प्रमोशन के लिए भी इस उत्सव में सहभाग लेते हैं। इस साल ये राजनीतिक पार्टियां क्या धूम मचाने वाली हैं और कितने लाखों-करोड़ की दही हांडी लगाने वाली हैं, यह आने वाला उत्सव बताएगा।
अनेक भक्ति कवियों ने श्रीकृष्ण की लीलाओं का अपने तरीके से वर्णन किया है। सूरदास ने उनकी शरारतों में माखन चोरी का वर्णन ऐसे किया है-
मैया मोरी मै नहीं माखन खायो।
और भक्ति रस के महान कवि रसखान श्रीकृष्ण पर कितने मुग्ध थे, उनके भक्ति रस की ये पंक्ति गज़ब के सम्मोहन से भरी हैं-
मानुस हो तो वही रसखान, बसौं बृज गोकुल गांव के ग्वारन।
जोहि पसु हो तो बसेरो करो चरों नित नंद की धेनु मंझारन।।
श्रीकृष्ण के प्रति ऐसा ही सम्मोहन महाराष्ट्र में है, जिसका हर मराठी मानुस भक्त है और उनकी लीलाओं को दिखाने के लिए तैयारियां कर रहा है।