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श्रीलंका के विभिन्न क्षेत्रों में कौशल की कमी

भारत-श्रीलंका सीईओ फोरम ने की क्षेत्रों की पहचान

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भारत-श्रीलंका सीईओ फोरम

कोलंबो। श्रीलंका और भारत के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) के मंच की एक बैठक 4 अगस्त 2012 को कोलंबो में हुई। बैठक में भारत और श्रीलंका की कंपनियों के सीईओ ने बड़ी संख्या में भाग लिया। सिलोन चैंबर ऑफ कामर्स (सीसीसी) और भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंडल परिसंघ (फिक्की) की इस बैठक के सह-अध्यक्ष श्रीलंका की डीएसआई सैमसन ग्रुप (प्राइवेट) लिमिटेड के प्रबंध निदेशक कुलातुंगा राजपक्षे और भारत की भारती एयरटेल लिमिटेड के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक सुनील भारती मित्तल थे। इससे पहले, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे के बीच हुई बैठक में इस मंच की अवधारणा तय की गई थी।
भारत और श्रीलंका के बीच व्यापार संबंध 2500 वर्ष से अधिक पुराने हैं। भारत तेजी से विश्व की बड़ी ताकत बनता जा रहा है। इसमें भारत के व्यापार जगत की मुख्य भूमिका रही है। श्रीलंका भारत के विकास से लाभ उठा सकता है। श्रीलंका के बाजार के छोटे आकार को देखते हुए यह महत्वपूर्ण है कि श्रीलंका अपना निर्यात और आर्थिक विकास बढ़ाने के लिए भारत के बाजार में अपनी पैठ बनाए। भारत और श्रीलंका के बीच व्यापार संतुलन इस समय भारत के पक्ष में अत्यधिक है। इस असंतुलन को कम करने के लिए उपायों का पता लगाना होगा। दोनों सरकारों ने आगामी तीन वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापार को दुगुना करने का कार्यक्रम बनाया है। श्रीलंका चाहता है कि उसके व्यापारियों की भारतीय बाजार में पैठ के लिए व्यापार और निवेश की रुकावटों को दूर किया जाए। दोनों देशों के आपसी लाभ के लिए अवसर और भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए।
दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश बढ़ाने के लिए चिन्हित कुछ संभावित क्षेत्रों में वस्त्र, रबर उत्पाद, बिजली और ऊर्जा, पर्यटन, शिक्षा, कौशल विकास, बंदरगाह और जहाजरानी तथा अवसंरचना शामिल है। इस बैठक में सीईओ के मंच ने दोनों देशों के बीच दोतरफा पर्यटन को बढ़ावा देने की संभावनाओं पर भी विचार किया। इसके लिए विमान सेवा के परिचालन में वृद्धि महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसके अलावा होटलों में निवेश को भी रेखांकित किया गया। भारत में बिजली की तेजी से बढ़ती हुई मांग को देखते हुए श्रीलंका अपनी कम खपत वाले समय में भारत को बिजली निर्यात कर सकता है। यही बात भारत पर भी लागू होती है। भारतीय कंपनियां भी श्रीलंका के बिजली उत्पादन के क्षेत्र में निवेश कर सकती हैं, क्योंकि श्रीलंका अपनी जरूरत से 40,000 मेगावाट अधिक पवन ऊर्जा का उत्पादन करता है।
श्रीलंका इस समय विभिन्न क्षेत्रों में कौशल की कमी का सामना कर रहा है। इसलिए इस बात पर सहमति हुई कि अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त भारत की शिक्षण संस्थाओं को श्रीलंका में अपनी शाखाएं खोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इस बात पर भी सहमति हुई कि कोलंबो बंदरगाह भारतीय जहाजों के पारगमन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। भारतीय सीईओ के मंच ने कहा कि श्रीलंका में नियामक ढांचा भारत के तुलना में अधिक कुशल है और नौकरशाही अधिक प्रबंधनीय है। इसलिए भारत को शेष विश्व के साथ अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति का अधिकाधिक लाभ उठाना चाहिए। दोनों देशों के सीईओ ने आपसी वीजा व्यवस्था को लचीला बनाने के महत्व पर भी जोर दिया। यह विशेष रूप से कहा गया कि श्रीलंका द्वारा भारत के व्यापारियों को बिना परेशानी के बहुप्रवेशीय (मल्टीपल एंट्री) वीजा दिया जाए और भारत की ओर से श्रीलंका के लिए 25 हजार अमरीकी डॉलर के न्यूनतम वेतन की आवश्यकता में ढील दी जाए।
इस अवसर पर दोनों देशों के वाणिज्य मंत्री और श्रीलंका के मौद्रिक सहयोग संबंधी वरिष्ठ मंत्री उपस्थित थे। उन्होंने सीईओ मंच की पहल का समर्थन करने पर भी सहमति व्यक्त की। दोनों देश इस बात पर पहले ही निर्णय ले चुके हैं कि वे आपसी आर्थिक सहयोग को और बढ़ाने का रोडमैप तैयार करने के लिए संयुक्त कार्यबल गठित करेंगे।

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