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नई दिल्ली। बहुचर्चित कोयला घोटाले और विवादास्पद पदोन्नतियों में आरक्षण विधेयक की भेंट चढ़ा संसद का मानसून सत्र शुक्रवार को समाप्त हो गया। हालंकि इस सत्र के पहले सप्ताह में महत्वपूर्ण विषयों को चर्चा के लिए लिया गया, लेकिन कोयला ब्लाक आवंटन के भ्रष्टाचार में यूपीए सरकार में बड़े पैमाने पर शामिल होने के कारण उसके बाद सदन की बैठकें नहीं हो सकीं।
भारत के इतिहास में भ्रष्टाचार का यह अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है। सरकार ने प्रतिस्पर्धा बोली की व्यवस्था के जरिये कोयला ब्लाकों के आवंटन के लिए नीतिगत फैसला लिया, इस नीति को लागू करने में संदेहास्पद तरीके से देरी की और स्क्रीनिंग कमेटी के जरिये आवंटन के लिए विवेकाधीन और भ्रष्ट तरीकों को अपनाया। इसके कारण सरकारी खजाने को 1,86,000 करोड़ का नुकसान हुआ और निजी तौर पर लोगों को फायदा पहुंचा।
अलग-अलग मामलों को लेकर पिछले तीन सप्ताह से जिस तरह की जानकारियां आ रही हैं, उनसे निश्चित तौर पर इस तथ्य की पुष्टि होती है कि कोयला ब्लाकों का आवंटन राष्ट्रीय लूट था। ये भाई भतीजावाद का ज्वलंत उदाहरण है। इस आवंटन से बड़ी संख्या में यूपीए के नजदीकी राजनीतिज्ञों और व्यवसायियों ने लाभ कमाया। इनमें से बहुत से लोगों का इस्पात या ऊर्जा क्षेत्र से कुछ भी लेना देना नहीं था। कुछ लोगों को ऐसे ही जुड़कर आर्थिक फायदा उठाने का मौका मिल गया। अपने नाम पर या संयुक्त उद्यम के नाम पर आवंटन के लिए उन लोगों ने अपनी राजनैतिक शक्ति का इस्तेमाल किया और अप्रत्याशित फायदा उठाने के बाद वे बाहर हो गए। ये सभी कुछ प्रधानमंत्री की नाक के नीचे हुआ, जो उस समय कोयला मंत्री भी थे।
प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते भाजपा चुप नहीं बैठी, उसने कोयला ब्लाकों का आवंटन रद्द करने और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग की। भारत की जनता की अंतरात्मा को झकझोरने के लिए संसद के इससत्र का इस्तेमाल किया और सरकार से अपील की कि सरकारी खजाने पर हुई इस भारी भरकम धोखाधड़ी को दुरुस्त करे। इससे पहले भी संसद का एक सत्र 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में हुए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया, लेकिन इसने दूरसंचार क्षेत्र को साफ सुथरा करने में देश की मदद की। उम्मीद है कि इस सत्र का दीर्घकालिक फायदे यह हों कि भविष्य की सरकारें प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन की प्रक्रिया को साफ सुथरा रखेंगी।
सरकार बेतुकी दलीलें देने में लगी है कि ‘बिल्कुल नुकसान’ नहीं हुआ या कांग्रेस ने संसद में कभी व्यवधान नहीं डाला या अगर प्रतिस्पर्धा नीलामी की जाती तो बिजली की दरों में संभावित बढ़ोतरी होती। हाल ही में 25 जुलाई 2005 को प्रधानमंत्री कार्यालय में हुई बैठक के नोट्स का खुलासा हुआ, जिससे यह बात साबित होती है कि इस पूरी देरी के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय या प्रधानमंत्री स्वयं जिम्मेदार थे। उन्हें इस तथ्य की जानकारी थी कि प्रतिस्पर्धा नीलामी से सरकारी खजाने को अप्रत्याशित फायदा होगा और बिजली की दरें नहीं बढ़ेंगी। संक्षिप्त अवधि के लिए जो अंतरिम आवंटन किया जाना था, उसे 142 कोयला ब्लाकों के आवंटन में बदल दिया गया, जिससे कोयला संसाधन कम हो गये और निजी लोगों को फायदा पहुंचा।
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने एक प्रेस वक्तव्य में कहा है कि भाजपा ने इस मामले पर कहा है कि उसके लिए यह केवल राजनैतिक लड़ाई नहीं है। यह जनता के बड़े फायदे के लिए आर्थिक संसाधनों की रक्षा करने की लड़ाई है। यह प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के लिए न्यायसंगत नीति बनाने का संघर्ष है। यहां तक कि अगर भाजपा के विरोध के कारण संसद की चर्चा का समय बर्बाद हुआ हो, उसे विश्वास है कि यह विरोध संसद से लोगों तक पहुंचने की आगामी लड़ाई से जुड़ जाएगा, प्राकृतिक संसाधनों के न्यायसंगत आवंटन के लिए प्रक्रिया को साफ सुथरा बना देगा।