स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
लखनऊ।उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता विरोधी दल शिवपाल सिंह यादव ने छोटे राज्यों की अवधारणा को खतरनाक बताते हुए इस मांग को देश के लिए घातक बताया है। उन्होंने एक संवाददाता सम्मेलन में अपनी बात के पीछे महत्वपूर्ण तर्क पेश किए और कहा कि लौह पुरूष सरदार पटेल ने छोटे-छोटे राज्यों को जोड़कर एक राष्ट्र का निर्माण किया था। अब उसे तोड़ने की कोशिश हो रही है। भाषावार प्रांत के गठन के समय भी काफी अशांति हुई थी, अब फिर उस जिन्न को उभारने से विघटनकारी तत्वों को बल मिलेगा। अपने कुशासन, भ्रष्टाचार और अक्षमता से बचाव के लिए ही छोटे राज्यों की बात हो रही हैं। उसके पीछे अपना स्वार्थ साधन, महत्वाकांक्षाएं हैं। देश में जो छोटे राज्य बने, वे प्रशासन और विकास की दृष्टि से उल्लेखनीय प्रगति नही कर सके।
झारखण्ड-राज्य सन् 2000 में बना। इस प्रदेश में देश की खनिज सम्पदा का 40 प्रतिशत था। मगर यह आज भूख, गरीबी और बेकारी से त्रस्त है। पिछले वर्ष इसका आर्थिक विकास बिहार से भी कम रहा। उद्योगों के लिए राज्य ने 71 समझौते किए केवल 13 उद्योग चालू हो सके। राज्य के नौ वर्ष के जीवन में कुल 4 मुख्यमंत्री बदले। नक्सली आन्दोलन सबसे ज्यादा यहीं असर दिखा रहा है। चौबीस जिलो में माओवादी प्रभावी हैं और 1,500 लोग मारे जा चुके हैं। आठ वर्ष से माओवादी हिंसा जारी है। यहां 23 माह में 4000 करोड़ रूपये के घोटाले भी हो गए।
छत्तीसगढ़ को केन्द्र से शुरू से काफी फंड मिले। यहां बाल मृत्यु दर बहुत बढ़ गई। भ्रष्टाचार बढ़ा है। माओवादी प्रभाव यहां भी बढ़ रहा है। उत्तराखण्ड में अभी तक स्थायी राजधानी का और यूपी से सम्पत्ति बंटवारे का मसला लटका हुआ है। सरकार को खर्च चलाने के लिए भारी कर्ज लेना पड़ा है। यहां भी जल्दी-जल्दी मुख्यमंत्री बदले हैं। भ्रष्टाचार बढ़ा है। आज इसकी औसत विकास दर देश की औसत विकास दर से काफी पीछे है।
देश का छोटा राज्य अरूणाचल प्रदेश भी असुरक्षित है। चीन यहां अपने अधिकार का दावा कर रहा है। पंजाब हरियाणा के बीच कई विवाद नहीं सुलझे हैं। सतलुज-यमुना लिंक का मसला 30 वर्षो से लटका है। हरियाणा के किसान परेशान हैं। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक के बीच जल विवाद अशांति का कारण बना हुआ है। विभाजन का असर देश में कई जगह पर है। उत्तर प्रदेश को पूर्वाचंल, बुंदेलखण्ड, हरित प्रदेश में बांटने की बात के पीछे राजनीतिक स्वार्थ हैं।
यहां अपनी अक्षमता छिपाने की बड़ी साजिश हो रही है। केन्द्र की राजनीति है कि आज यूपी की जो शक्ति है उसे तोड़ा जाए। उत्तर प्रदेश की संसद में 80 सीटे हैं, यह सबसे बड़ा राज्य है। उसकी राजनीतिक ताकत को तोड़ने के लिए यह मांग हो रही है। पूर्वाचंल और बुंदेलखण्ड के पुनर्गठन में पड़ोसी राज्यों का भी दखल होगा। बिहार और मध्य प्रदेश के कुछ भाग को जोड़ना होगा। एक नए राज्य की राजधानी बनने पर 5000 एकड़ उपजाऊ जमीन चली जाएगी। नए राज्यों के निर्माण के साथ उनकी राजधानी, प्रशासकीय कार्यालयों और बुनियादी ढांचे पर अरबो रूपये खर्च होंगे।
उत्तर प्रदेश में मायावती ने जब ताबड़-तोड़ नए जिले बनाए थे तो कई जिलो के डीएम, एसपी के रहने का ठौर नहीं मिला। गेस्ट हाउस या सर्किट हाउस में उनके दफ्तर और घर चले। अभी तक सभी नए जिलों के मुख्यालय पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए है। समाजवादी पार्टी यूपी के संतुलित विकास की पक्षधर है। विभाजन की नहीं। वह चाहती है प्रदेश की राजनीतिक शक्ति बनी रहे। उसकी हैसियत कम न हो। बंटवारे से केन्द्र के हस्तक्षेप की सम्भावनाएं बढ़ेंगी क्योंकि अपने खर्चो के लिए छोटे राज्य केन्द्र के ऊपर आश्रित रहेगे।
अगर प्रशासन चुस्त हो, भ्रष्टाचार पर अंकुश हो, विकास पर ध्यान हो तो विभाजन की जरूरत नहीं होगी। अच्छी सड़कें और आवागमन की सुविधाएं, संचार साधन हों तो राज्य के विभिन्न स्थानों की दूरी कम हो जाएगी। मुख्यमंत्री मायावती प्रदेश के विभाजन का बेवजह का मुद्दा खड़ा कर रही हैं। उनका यह गरीबी, बेकारी, मंहगाई,भ्रष्टाचार से ध्यान हटाने का प्रयास है। मायावती ने सरकारी खजाने का बड़ा हिस्सा पार्को,स्मारकों, पत्थरो पर खर्च कर चुकी हैं, अब खर्च के लिए पैकेज की मांग कर रही है।
मुलायम सिंह यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में केन्द्र से 18 हजार करोड़ का पैकेज मांगा था और नहीं मिलने पर उन्होने अपने संसाधनों से राजस्व वृद्धि की थी और विकास दर 6 फीसदी से अधिक ले गए थे। उन्होंने बुंदेलखण्ड, पूर्वाचंल के लिए विशेष निधि की व्यवस्था की थी। मायावती ने क्या किया? या केंद्र सरकार ने क्या किया?