अनिल गुप्ता
कैलिफोर्निया। दुनियाभर की हिंदू मंदिर अधिशाषी समिति का सेन जोस, कैलिफोर्निया, यूएसए में 17 तथा 18 अगस्त, 2012 को सातवां शानदार वार्षिक सम्मेलन आयोजित किया। यूएसए, कनाडा, भारत, त्रिनिदाद तथा न्यूजीलैंड इत्यादि देशों से करीब 102 मंदिरों तथा हिंदू संगठनों के करीब 350 प्रतिनिधि हिंदू मंदिर अधिशाषी समिति के सम्मेलन में पधारे थे। सम्मेलन का आतिथ्य कैलिफोर्निया के आस-पास के खाड़ी देशों के फ्रिमांट टेंपिल तथा 22 सहयोगी मंदिरों ने किया था। सम्मेलन 25 सत्रों में संपंन हुआ। कार्यक्रम की संरचना संत गुप्ता तथा गोविंद पशुमार्थी ने की थी, जिसमें लगभग 100 वक्ता तथा निर्णायक थे। ‘इंडिया अनवील्ड’ पुस्तक के लेखक राबर्ट आर्नेट का इस सम्मेलन के बारे में कहना था कि वे आज तक जितने भी ऐसे सम्मेलनों में गए, उनमें संभवतया हिंदू मंदिर अधिशाषी समिति का सम्मेलन सर्वश्रेष्ठ पाया है।
सम्मेलन, ज्ञान की अभिवृद्धि करने वाला, अत्यधिक सूचनाप्रद तथा उपयोगी सिद्ध हुआ। प्रतिनिधियों को सबसे अधिक प्रभावित किया हिंदू मेला तथा शोभा यात्रा ने, जो एकात्मता और समरसता का प्रतीक है और यही दृष्टि संपूर्ण सम्मेलन पर छायी रही। कार्यक्रम का वातावरण आश्चर्यवान था, क्योंकि हिंदू जनमानस अपने देश ‘भारत’ से काफी दूर है। अमेरीकी मूल के लगभग 15 साधुओं तथा साध्वियों ने सम्मेलन में सहभागिता की। सम्मेलन का उद्घाटन स्वामिनी स्वात्मा विद्यानंद ने किया। उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा कि ‘हिंदू धर्म’ ही वास्तव में शाश्वत धर्म है। हिंदू पत्रिका ‘हिंदुइज्म टुडे’ के संपादक परम आचार्या पालिनिस्वामी ने कहा कि ‘हिंदू केवल एक बात के लिए असहनशील है और वह है कि हम असहनशीलता को सहन कर सकते हैं।’ साध्वी भगवती ने कहा कि ‘धर्म कोई पुरातन अवशेष अथवा प्राचीन पुरातत्व खंडहर की तरह नहीं है, धर्म कोई इतिहास भी नहीं है, वह तो सजीव है और सब में विद्यमान है।’ राधामाधव धाम के स्वामी निखिलानंद, आस्टिन ने मंदिर के शिक्षाप्रद कार्यक्रम तथा विशेष रूप से कीर्तन पर अपने विचार व्यक्त किए। स्वामी ब्रह्मस्वरूपानंद ने कैरीबियन देशों में हिंदुओं के संगठन और उनकी प्रगति के लिए प्रतिनिधियों की प्रशंसा की और उत्तरी अमेरीका में वहां के जनमानस की हिंदुओं के साथ समरस होने की आवश्यकता पर बल दिया।
सम्मेलन में मंदिर समस्या पर विचार-विमर्श एक प्रमुख विषय था। जम्मू कश्मीर के स्वामी मुकुंदानंद ने योग को मंदिर का प्रमुख लक्ष्य बताते हुए कहा कि ‘आध्यात्मिक महत्व तथा वैदिक ज्ञान के संबंध में शिक्षा देना महत्वपूर्ण है, इनको गौरव प्रदान करना मंदिर का दायित्व है। एचएएफ के सुनील शुक्ला ने मंदिरों को अपने दायित्व निर्वहन में प्रासंगिकता के महत्व पर जोर दिया ताकि हिंदू समाज अन्य सभी समाजों के साथ एकरूप हो जाए, जबकि सेंथिलनथ स्वामी ने कहा कि मंदिर के न्यासियों को परस्पर आत्मसंयम से काम लेना चाहिए।
कानूनी दायित्वों पर विशेष चर्चा हुई। जो बातें मंदिर अधिशाषियों को प्रभावित करती है, ऐसी बातों से अधिशाषियों को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है, उसके लिए उन्हें आश्वस्त करने की आवश्यकता है। स्व उपलब्ध मैत्रीभाव के संबंध में फ्रेड स्टेला ने सात्विक, जैविक खाद के गुणों के महत्व को बताया और गायों की स्थिति को श्रेष्ठतर बनाने पर जोर दिया। उन्होंने आगे कहा कि मंदिरों को स्थानीय जैविक फार्मों से अपने संबंध स्थापित करने चाहिएं, ताकि जनमानस गाय की स्थिति को और बेहतर बनाने में सक्षम हो।
पुजारियों की भूमिका पर भी सम्मेलन में विशेष चर्चा हुई। पंडित मुरली भट्टार, मिन्नेसोटा हिंदू मंदिर के मुख्य पुजारी ने अपने टेक्नोसैवी प्रदर्शन तथा वैदिक मंत्रोच्चार से श्रोताओं को आत्म विभोर कर दिया। पंडित राम हरद्वार, सूर्य नारायण मंदिर एनवाई ने कहा कि पुजारियों को केवल धार्मिक नेता नहीं माना जाना चाहिए, तथापि उनकी पहचान समाज के नेता के रूप में होनी चाहिए। उन्होंने 2013 में होने वाले हिंदू मंदिर पुजारी सम्मेलन का आतिथ्य स्वीकार करने के लिए अपने मंदिर की घोषणा की।
हिंदू अमरीकी फाउंडेशन के मिहिर मेघानी ने कहा कि युवा पीढ़ी को मंदिर प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित कर नेतृत्व करने के लिए आगे लाना चाहिए। मेघानी ने आगे कहा कि मंदिरों को धार्मिक अनुष्ठानों का केवल न्यासी ही नहीं रहना चाहिए, बल्कि ‘गत्यात्मक केंद्र’ के रूप में अपने को प्रस्थापित करना चाहिए। स्वामी विद्यादिशानंद प्रशंसा के पात्र बन गए जब उन्होंने अधिशाषियों के समक्ष यह कहा कि मंदिर में युवा पीढ़ी को ‘जूतों के रख-रखाव’ से आगे ले जाकर युवाओं को अन्यान्य महत्वपूर्ण कार्यों में लगाना चाहिए। युवा प्रतिनिधियों तथा संस्कृत में स्नातक विद्यार्थियों को यह समझाना होगा कि संस्कृत भाषा और संस्कृति कोई अलग नहीं है, बल्कि एकरूप है।
वाल्टर रीड हास्पिटल के डॉ राहुल जिंदल ने एचएमईसी के रक्तदान अभियान की सफलता की चर्चा की। इस अभियान में 77 मंदिरों ने अपना योगदान दिया। सम्मेलन स्थल पर एक कोष्ठ बनाया गया था, जहां पर लोग अस्थि पंजर दान करने के लिए अपना नाम लिखवा रहे थे, साथ ही सेवा प्रकल्प में यह समाहित था कि एक बालक को सेवार्थ (एसएसी) अपनाओ। सम्मेलन में प्रस्ताव एकमत से चार पारित किए गए- विस्कोसिन में सिख गुरूदारे पर आक्रमण में प्रभावित परिवारों तथा पीड़ित लोगों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करना। उत्तर पूर्व भारत में, विशेष रूप से असम में हिंदुओं के निमर्म उत्पीड़न की निंदा। यह घटनाक्रम बांग्लादेश से अवैध रूप से घुसपैठ करके आए बांग्लादेशियों के कारण जनसंख्या में असंतुलन के परिणाम स्वरूप ही था। संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार समिति को कहा गया कि वह हिंदू मंदिरों की स्थिति का जायजा ले और पाकिस्तान में हिंदुओं के अपहरण और जबरन धर्म परिवर्तन की ओर ध्यान दे और भारत में यमुना नदी के शुद्धीकरण में पूर्ण सहयोग करें यह हिंदू के लिए पवित्र नदी है, जिसका जल, मल इत्यादि के बहाव से प्रदूषित हो गया है।
खाड़ी देशों के गुरुद्वारों ने भी कार्यक्रम में शिरकत की और सम्मेलन को संबोधित किया। हिंदू सांस्कृतिक नृत्य तथा हिंदू जीवन पद्धति पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम आकर्षण का केंद्र रहे। विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष तथा वर्तमान में संरक्षक अशोक सिंहल का सम्मेलन में विशेष संबोधन था। उन्होंने भारत, विशेष रूप से उत्तर पूर्वी भारत के असम क्षेत्र में, हिंदुओं के उत्पीड़न पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह उत्पीड़न बांग्लादेश से आए घुसपैठियों के कारण हुआ। उन्होंने असम में हिंदुओं के पुनर्वास के लिए उत्तरी अमेरीका के हिंदुओं से वित्तीय सहायता प्रदान करने का अनुरोध किया, पाकिस्तान में हिंदुओं के उत्पीड़न पर पूर्णतया रोक लगाई जाए, इस पर भी बहुत बल दिया। सम्मेलन में हिंदू मंदिरों के वैश्विक संगठन और यूएसए में 2014 में मंदिरों के सम्मेलन करने की आवश्यकता बताई गई, जिसमें संपूर्ण विश्व के प्रतिनिधि पधारें। उन्होंने 2013 में इलाहाबाद में होने वाले कुंभ मेले में सबको आमंत्रित किया। यह कुंभ मेला हिंदुओं का विशालतम महोत्सव है, जो प्रयाग में 6 फरवरी से 12 फरवरी, 2013 तक चलेगा।
सम्मेलन में आमंत्रण पर भारत से अखिल भारतीय प्रबंधक परिषद दिल्ली के प्रतिनिधि अनिल गुप्ता ने भाग लिया। अनिल गुप्ता ने बद्री भगत झंडेवाला टेंपल सोसायटी तथा उसके अध्यक्ष नवीन कपूर का सभी प्रकार के सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया है जिनके सहयोग से उनका इस कार्यक्रम में भाग लेना संभव हो सका। सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ उमेश शुक्ला, सचिव डॉ रमेश जापरा और सम्मेलन के संयोजक राजेश वर्मा ने मंदिर अधिशाषियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। विस्कोसिन में सिख गुरुद्वारे पर हिंसाचार से प्रभावित लोगों को विनम्र श्रद्धांजलि देने के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ।