फरहत दुर्रानी
लखनऊ। जंगे-आज़ादी के सभी अहम केंद्रों में अवध सबसे ज्यादा वक़्त तक आज़ाद रहा। इस बीच बेगम हज़रत महल ने लखनऊ में नए सिरे से शासन संभाला और बगावत की कयादत की। तकरीबन पूरा अवध उनके साथ रहा और तमाम दूसरे ताल्लुकेदारों ने भी उनका साथ दिया। बेगम अपनी कयादत की छाप छोड़ने में कामयाब रहीं।
फैज़ाबाद के एक बेहद ग़रीब परिवार में पैदा हुई इस लडक़ी (बेगम) को नवाब वाजिद अली शाह के हरम में बेगमात की खातिरदारी के लिए रखा गया था, लेकिन उनकी खूबसूरती और अक्लमंदी पर फ़िदा होकर नवाब ने उसे अपने हरम में शामिल कर लिया। बेटा होने पर नवाब ने उसे 'महल' का दर्जा दिया। एक ब्रिटिश पत्रकार डब्ल्यू एच रसेल के मुताबिक़ बेगम अपने शौहर नवाब वाजिद अली शाह से कहीं ज़्यादा क़ाबिल थीं। वाजिद अली शाह ने भी इसे मानने में कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं की।
बेगम हजरत महल की हिम्मत का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने मटियाबुर्ज में जंगे-आज़ादी के दौरान नज़रबंद किए गए वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी। योजना का भेद खुल गया, वरना वाजिद अली शाह शायद आज़ाद करा लिए जाते। इतिहासकार ताराचंद लिखते हैं कि बेगम खुद हाथी पर चढक़र लड़ाई के मैदान में फ़ौज का हौसला बढ़ाती थीं।